तेरा कीआ मीठा लागै, हरि नामु पदारथु नानक मांगै
निशंक न्यूजए कानपुर।

गुरूद्वारा कीर्तनगढ़ गुमटी नं0-5 में गुरू सेवक जत्था द्वारा पंचम पिता श्री गुरू अरजन देव जी महाराज जी का 421वाँ महान शहीदी दिवस के अन्तिम दिन कथावाचक ज्ञानी मंदीप सिंह जी संगरूर पंजाब ने बताया कि गुरू को जहांगीर ने 30 मई 1606 ई० में लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान “यासा व सियासत” कानून के तहत लोहे की गर्म तवी पर बैठाकर शहीद कर दिया गया। गुरू जी के शीश पर गर्म गर्म रेत डाली गयी। आप विनम्रता के पुंज थे एवं जिसमें दरबार साहिब (अमृतसर) से आये भाई साहिब भाई स्वरूप सिंह जी रूप जी ने कीर्तन “जत्यउ जिन्ह अरजुन देव गुरू, फिरि संकट जोकि गरभ न. आयउ” एवं “भानि मथुरा कछु भेद नहीं, गुरू अरजुनु परतरत्य हरि” एवं “तखति बैठा अरजन गुरू, सतिगुरू का खिवै चंदोआ” एवं “गुरू मेरे संगि सदा है नाले, सिमरि-सिमरि तिसु सदा सम्हाले”।

होनहार को सिरोपा देकर सम्मानित किया
दीवान में होनहार यशप्नील सिंह गुजराल को सिरोपा देकर सम्मानित किया गया एवं समस्त जत्थाबंदियों को सिरोपा देकर सम्मानित किया गया। गुरू का अटूट लंगर भी हुआ जिसमें हजारों लोगों ने लंगर छका एवं मीठे शरबत का भी छबील लगायी गयी। सेवा में प्रमुख रूप से प्रधान दविन्दर सिंह सागरी (टीटू), ज्ञानी मदन सिंह जी, मोहन सिंह झास, भूपिन्दर सिंह तलूजा, दविन्दर सिंह सचदेवा, गुरूदीप सिंह गाँधी, जसपाल सिंह पनेसर, जसमिन्दर सिंह झास, सुरजीत सिंह बग्गा, मीतू सागरी, तरविन्दर सिंह, मक्खन सिंह गुरूसेवक जत्थे के सभी मेम्बरान उपस्थित रहे।