कानपुर, सरस वाजपेयी
भारतीय समाज में रोटी का संबंध सबसे प्रगाढ़ कहा गया है, समाज में समरसता के लिए हमेशा से रोटी का अादान-प्रदान महत्वपूर्ण माना जाता है। इस महत्व को समझते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा जातीय एकता और समरसता को बढ़ाने के लिए हर घर से रोटी संग्रह का अभियान शुरू किया गया है। संघ के पदाधिकारी भी मानते है कि इस तरह के अभियान से समाज में जातीयता के नाम से घोले जा रहे विष को समाप्त किया जा सकता है।
घरों से रोटी एकत्र करते स्वयंसेवक
संघ द्वारा शुरू किए गए इस रोटी संग्रह कार्यक्रम में संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक अपने क्षेत्र में जाकर दस घरों से रोटी एकत्र करेगा। इस अभियान के तहत संघ का हर सदस्य बिना जातीय भेदभाव के 100 रोटियों का संग्रह करेगा। रोटी संग्रह में किसी भी तरह का अगड़ा पिछड़ा और दलित सामाजिक भेदभाव को शामिल नहीं किया जाएगा। इस अभियान से संघ समाज में पैठ बना चुकी जातीय पहचान की दीवार को पूरी तरह गिराना चाहता है।
आरएसएस का महत्वाकांक्षी अभियान
अभी हाल ही में विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा देश में जातीय जनगणना कराने का दबाव सरकार पर बनाया जा रहा था। उसकी काट में केन्द्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना कराये जाने को स्वीकृति प्रदान की गयी। वैसे तो इस जातीय जनगणना की मांग के पीछे विपक्षी दलों द्वारा सरकार को जातीय विभाजन से कमजोर करना ही बताया गया है। लेकिन इन सब राजनीतिक कारणों से इतर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रबुद्ध वर्ग ने एक नया और महत्वाकांक्षी अभियान शुरू करने का काम किया है। जो कहीं न कहीं विपक्ष की जातीय जनगणना की राजनीतिक मांग से उत्पन्न समाजिक विघटन की स्थितियों को कमजोर करेगा।
समरसता और एकजुटता को बढ़ावा देना उद्देश्य
इस अभियान के तहत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पदाधिकारी अपने क्षेत्र के प्रत्येक घर से 10 रोटियों का संगृह करेंगे और इसको आपस में मिल बांटकर उपयोग में लायेंगे। संघ से जुड़े लोगों का कहना है कि इस कार्यक्रम से मकसद समाज में जातीय विघटन की परिस्थितियों को कमकरने का है। राष्टीय स्वयं संघ से लोग कहते है कि संघ का काम समाज में समरसता और एकजुटता को बढ़ावा देना है, और इस तरह के कार्यक्रम से जातियों की आपसी वैमनस्ता को खत्म किया जा सकता है। संघ से करीबी नाता रखने वाले कहते है सामाजिक समरसता के हिसाब से इस तरह का कार्यक्रम बहुत मददगार साबित हो सकता है।
उद्देश्य सुनकर न नहीं करता कोई
उनका कहना है कि जातिय जनगणना की राजनीतिक मांग से संघ का किसी तरह का विरोध या सहमति नही है और इसीलिए संघ कभी भी जातीय जनगणना के बारे में कोई अर्नगल बात नही करता। जातीय जनगणना का भी अपना महत्व है, जिसे सरकार ने चालू करने का काम किया है। लेकिन संघ द्वारा हर घर से रोटी लेने का कार्य समाज में समरसता एक बड़ा उदाहरण है। संघ के शाखाओं में सक्रिय रहने वाले प्रमुख लोग कहते है कि वो जिस घर में भी जाते है उनके उद्देश्य को समझकर किसी भी घर से न नहीं होती। कभी कभी तो लोग घर में रोटी न होने पर बनवा कर देने की बात भी कहते है। संघ पदाधिकारियों के अनुसार किसी भी घर से रोटी लेते समय न तो उसकी जाति और स्थिति की जानकारी ली जाती है बल्कि कोशिश ये की जाती है कि रोटी संग्रह के इस महत्वपूर्ण कार्य को आम लोगों तक पहुंचाया जा सके जिससे समाज में जाति की बढ़ती हुई खाई बांटी जा सके।