आचार्य पवन तिवारी
संस्थापक अध्यक्ष ज्योतिष सेवा संस्थान
छठ पूजा इस साल 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाया जाएगा यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है और इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है इसके बाद आते हैं खरना, संध्या अर्घ्य, और पर्व का समापन उषा अर्घ्य और पारण।
देवी छठी मैया सूर्य देव की बहन और शक्ति स्वरूपा हैं छठी मैया की पूजा करने से परिवार की रक्षा, स्वास्थ्य, सफलता और लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है यह ब्रह्मा जी की मानस पुत्री या प्रकृति का छठा अंश हैं।
नहाए- खाए

नहाए- खाए छठ पूजा का पहला दिन होता है छठ पूजा के पहले दिन घर, नदी या तालाब में स्नान किया जाता है इस बार नहाए-खाए 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा नहाए -खाए के दिन सूर्योदय, सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 45 मिनट पर होगा।
पूजा का पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन से छठ पर्व की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन व्रतधारी सुबह पवित्र नदी में स्नान कर नए वस्त्र धारण करती है और सात्विक भोजन ग्रहण करती है। नहाय-खाय के दिन मुख्य तौर पर चने की दाल, कद्दू या लौकी और अरवा चावल का भात बनाया जाता है।
इन सभी भोजन को पवित्र अग्नि में घी और सेंघा नमक से तैयार किया जाता है। नहाय-खाय में बनने वाला कद्दू-भात का प्रसाद शरीर, मन और आत्मा के शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
खरना

खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है इस बार खरना शनिवार 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा सूर्योदय 6 बजकर 30 मिनट और सूर्यास्त 5 बजकर 45 मिनट पर होगा छठ के दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है दिनभर बिना जल और अन्न के रहने के बाद, शाम को सूर्यास्त के समय गुड़ और चावल की खीर या पूड़ी का प्रसाद खाया जाता है इसी के साथ 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत होती है।
षष्ठी- संध्या अर्घ्य
षष्ठी या छठ पूजा का तीसरा दिन छठ पूजा का मुख्य दिन है इस दिन व्रती नदी या तालाब के किनारे घाट पर इकट्ठा होते हैं शाम के समय सूर्यास्त होते ही व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और छठी मैया की पूजा करते हैं इस दिन बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल, नारियल, गन्ना और अन्य पारंपरिक प्रसाद सजाए जाते हैं इस बार षष्ठी सोमवार 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 30 मिनट और सूर्यास्त 5 बजकर 40 मिनट पर होगा।
अस्तचलागामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की पंरपरा,आमतौर पर हम उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, लेकिन छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का उद्देश्य सूर्य देव के साथ उनकी पत्नी प्रत्यूषा को सम्मान देना है।
उषा अर्घ्य और पारण
यह छठ पूजा का अंतिम दिन होता है, इस दिन व्रती सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचते हैं और उगते हुए सूर्य को दूसरा और अंतिम अर्घ्य देते हैं इसके बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है इस बार उषा अर्घ्य और पारण मंगलवार 28 अक्टूबर को होगा सूर्योदय 6 बजकर 30 मिनट और सूर्यास्त 5 बजकर 40 मिनट पर होगा।
उदयगामी यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसे उषा अर्घ्य भी कहते हैं, क्योंकि ऊषा सूर्य देव की पत्नी का नाम है। छठ पर्व में डूबते और उगते सूर्य को इसलिए अर्घ्य दिया जाता है, क्योंकि भगवान सूर्य की पत्नियां यानी ऊषा और प्रत्यूषा की उनकी शक्तियों का मुख्य स्त्रोत है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व का समापन हो जाता है।
