बॉर काउंसिल से नरेश त्रिपाठी को मिली क्लीनचिट

निशंक न्यूज कानपुर।

जज के फर्जी हस्ताक्षर से जजमेंट कांड के मामले में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश त्रिपाठी को आखिरकार हरी झंडी मिल गयी। यूपी बॉर काउंसिल ने अपनी पड़ताल के बाद पूर्व अध्यक्ष नरेशचंद्र त्रिपाठी के साथ पूर्व महामंत्री आदित्य सिंह को क्लीनचिट थमाते हुए जांच से मुक्त कर दिया है। अलबत्ता कचहरी के वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील भल्ला और उनकी भूतपूर्व जूनियर मिथिलेश मिश्रा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए संस्तुति हुई है। इस मामले में कुछ दिन पहले शहर के रसूखदार बिल्डर संजय पंजवानी और विवादित सौदे के मध्यस्थ मनीष सिंह के साथ-साथ प्रदीप झंवर और उनकी पत्नी उषा झंवर के खिलाफ एफआईआर भी लिखी गई है।

झंवर के इकबालिया बयान से बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष को मिली राहत
दरअसल, नवाबगंज में करोड़ो की कोठी की हिस्सेदारी को लेकर चाचा-भतीजे के झगड़े में हालिया एफआईआर में मुल्जिम बनाए गए प्रतिवादी प्रदीप झंवर के शपथपत्र के मुताबिक, सिविल वाद संख्या 342 / 21 में नरेशचंद्र त्रिपाठी और आदित्य सिंह द्वारा कोई पैरवी कभी नहीं हुई है। यूपी बॉर काउंसिल ने अपनी पड़ताल में पाया कि, उपर्युक्त मुकदमे में नरेशचंद्र त्रिपाठी का वकालतनामा दाखिल हुआ था, लेकिन वह कभी बहस करने अदालत में नहीं गए। बॉर काउंसिल के समक्ष दाखिल शपथपत्र में प्रदीप झंवर ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि, उनके मुकदमे की संपूर्ण पैरवी अधिवक्ता सुनील भल्ला करते रहे हैं। इस मामले में एक अन्य आरोपित अधिवक्ता मिथिलेश मिश्रा ने शपथपत्र में दावा किया है कि, संबंधित मुकदमे में फैसले की नकल निकलवाने के लिए सुनील भल्ला ने कहा था। बॉर काउंसिल को आदित्य सिंह पूर्व में साक्ष्यों के साथ स्पष्ट कर चुके हैं कि, वह फौजदारी के मामलों को देखते हैं, लिहाजा उक्त सिविल वाद से उनका कोई लेना-देना नहीं है।

भल्ला और मिथिलेश पर जल्द होगी कार्रवाई


यूपी बॉर काउंसिल के चेयरमैन शिवकिशोर गौड़ ने 25 मई को संपूर्ण मामले की पड़ताल के बाद फैसला किया है कि, जज के फर्जी हस्ताक्षर से जजमेंट कांड में नरेशचंद्र त्रिपाठी और आदित्य सिंह की कोई भूमिका नहीं है, लिहाजा दोनों अधिवक्ताओं को जांच से मुक्त किया जाता है। काउंसिल ने यह भी स्पष्ट किया है कि, प्रथम दृष्टया पैरवी करने वाले अधिवक्ता सुनील भल्ला और उनकी जूनियर मिथिलेश मिश्रा की भूमिका संदिग्ध है। ऐसे मे दोनों अधिवक्ताओं के खिलाफ अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 35 के अन्तगर्त अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी आवश्यक है। गौरतलब है कि, नवाबगंज में बंगला नंबर 3ए/188 के मालिकाना हक को लेकर आलोक झंवर और लखनऊ निवासी उनके चाचा प्रदीप झंवर के बीच मुकदमेबाजी है। दौरान मुकदमा जज के फर्जी हस्ताक्षर से जजमेंट बनाकर फाइल में नत्थी कर दिया गया था। इस मामले में आलोक की अर्जी पर जेएम कोर्ट ने बीते दिनों विवादित कोठी को खरीदने के इच्छुक बिल्डर संजय पंजवानी के साथ-साथ आलोक के चाचा प्रदीप झंवर, चाची ऊषा झंवर और सौदेबाजी में बिचौलिया की भूमिका निभाने वाले 781 पंक्षी विहार कॉलोनी, लखनपुर सोसाइटी, नवाबगंज निवासी मनीष सिंह के खिलाफ मुकदमा लिखने का आदेश जारी कर दिया। इसके तुरंत बाद नवाबगंज पुलिस ने चारों के खिलाफ गंभीर धाराओं में एफआईआर को दर्ज करा दिया।

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