सरस वाजपेयी
नियुक्ति के नाम पर घालमेल करने के आरोप में निलंबित सीएमओ तथा कई गड़बड़ियों कोे सामने लाकर इन्हें कानपुर से हटाने के लिये शासन को पत्र लिखने वाले जिलाधिकारी के बीच शुरू हुआ विवाद अभी आगे भी चल सकता है। डीएम द्वारा किये गए निरीक्षण में स्वास्थ्य केंद्रों पर लगातार मिल रही गड़बड़ियों तथा उनकी की रिपोर्ट के बाद भले ही सीएमओ को निलंबित कर दिया गया हो लेकिन जिस तरह से निलंबन के बाद सीएमओ ने पत्रकार वार्ता कर कानपुर में तैनात दो डाक्टरों तथा जिलाधिकारी पर गंभीर आरोप लगाए उससे इस बात की चुगली हो रही है कि सीएमओ के पीछे भी कोई है और यह मामला केवल सीएमओ पर कार्रवाई तक सीमित नहीं रहेगा अभी और भी जांच होगी और कुछ लोगों पर कार्रवाई भी। फिलहाल इस प्रकरण के बाद स्वास्थ्य विभाग में चल रहे सिंडीकेट के खिलाफ प्रदेश के 37 जिलों में शासन स्तर पर गुपचुप तरीके से जांच शुरू कर दी गई है। इसमें भी कई के लिपटने की बात कही जा रही है दूसरी तरफ निलंबित सीएमओ ने अपने खिलाफ कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट जाने की बात कही है और कहा जा रहा है कि इसी सप्ताह सोमवार व मंगलवार को वह अदालत की शरण ले सकते हैं।
सीएमओ कार्यालय में तैनात दोनों पत्र के कुछ डाक्टर भी निशाने पर
जानकार लोगों की मानी जाये तो निलंबित सीएमओ हरिदत्त नेमी द्वारा शासन को भेजे गये पत्र में जिस तरह से स्वयं की मानसिक प्रताड़ना किए जाने समाजवादी पार्टी की मानसिकता को लेकर काम करने वाले डाक्टर तथा अक्सर विवादों में रहने वाले तथा पूर्व में अपनी तैनाती के दौरान मलेरिया विभाग के एक कर्मचारी से मारपीट करने के कारण चर्चा में आये डाक्टर पर गम्भीर आरोप लगाये गये और यह भी कहा गया कि इन डाक्टरों ने ही निजी स्वार्थ के लिए जिलाधिकारी के कान भरे उससे इस बात का भी संकेत मिल रहा है कि इन डाक्टरों पर भी आने वाले समय में कारवाई हो सकती है। इनमें एक डाक्टर के संबंध में कहा जा रहा है कि वह करीब 20 साल से ज्यादा समय से अपनी राजनीतिक पकड़ के चलते कानपुर में तैनात है जबकि दूसरे डाक्टर के संबंध में चिकित्सा विभाग के सूत्रो का कहना है कि वह भाजपा के एक पूर्व सांसद व पूर्व केन्द्रीय मंत्री को अपना चचिया ससुर बताकर स्वास्थ्य विभाग के अफसरों पर दबाव बनाये रहते है। तमाम विवादों के चलते उनका पूर्व में दूसरे जनपद में तबादला भी हुआ लेकिन कुछ माह में ही वह अपना तबादला कानपुर में ही कराने में सफल रहे। इन पर चतुर्थ श्रेणी कार्मचारियों के साथ मारपीट व अभ्रदता करने के भी आरोप लगते रहे है। इधर जिलाधिकारी के पक्ष में खड़े होने वाले कुछ लोग सीएमओ के खास रहे दो डाक्टरों पर कार्रवाई कराने की तैयारी में ताकत लगाए हैं।
पूर्व विधायक का साला चला रहा सिंडीकेट
स्वास्थ्य विभाग से जु़ड़े जानकार लोगों की मानी जाये तो विभाग में पिछले काफी समय से एक पूर्व विधायक का साला सिंडीकेट चला रहा है। अधिकारियों तथा शासन पर उसकी पकड़ का असर यह बताया जा रहा है कि वर्तमान में प्रदेश के करीब तीन दर्जन जिलों में इस सिंडीकेट से जु़ड़े डाक्टर ही प्रभावशाली कुर्सियों पर बैठे है। कानपुर में डीएम व सीएमओ के बीच हुए विवाद के बाद यह सिंडीकेट सार्वजनिक हुआ तो शासन स्तर पर 37 जिलों में अधिकारियों की तैनाती के साथ ही पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग में हुए तबादलों के संबंध में भी जांच शुरू की गयी है। माना जा रहा है कि इस सिंडीकेट का विरोधी गुट इस विवाद की आड में ही सिंडीकेट को तोड़ने के प्रयास में लग गया है। इस गुट ने भी वर्तमान सिंडीकेट तोड़ने के लिए लखनऊ से लेकर दिल्ली तक अपनी गोटे बिछानी शुरू कर दी है।
बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना पर बढ़ी रार

कानपुर। जिलाधिकारी व सीएमओ के बीच चले विवाद में भाजपा के विधायक भी पत्रवार के चलते आमने-सामने आए। इस मामले में सीएमओ के निलंबन के बाद जिस तरह से सीएमओ के पक्ष तथा खिलाफत में पत्र लिखने वाले भाजपा विधायकों के समर्थक सोशल मीडिया पर एक दूसरे की आलोचना करते नजर आये उससे यह इस मामले में वह कहावत चरितार्थ होते दिखा कि बेगानी शादी में अब्दुला दीबाना। सीएमओ के पक्ष में पत्र लिखने वाले एक कद्दावर नेता के समर्थक द्वारा सोशल मीडिया में और इसपर एक प्रमुख नेता के समर्थक द्वारा बेगानी शादी में अब्दुला दीबाना जैसी टिप्पणी करने के बाद सोशल मीडिया पर जो रार बढ़ी वह आगे और बड़ा रूप ले सकती है। भाजपा के तमाम नेता-कार्यकर्ता खुली-दबी जुबान से महेश त्रिवेदी और अभिजीत सांगा की जीत बताने की कोशिश में जुटे हैं, जबकि महाना-मैथानी-पाठक कैंप में सन्नाटा है।
बड़ा संकेत दे रही सीएमओ के पक्ष में लिखे पत्रों की एक भाषा

डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह तथा निवर्तमान सीएमओ हरिदत्त नेमी के बीच चले विवाद में जिस तरह से सीएमओ के पक्ष में लिखे गये पत्रों की भाषा लगभग एक जैसी ही रही वह इस बात की संकेत दे रही है कि इस पूरे मामले में सीएमओ के पीछे शासन स्तर पर कोई प्रमुख व्यक्ति भी है जिसमें सीएमओ को पत्र की भाषा बताई और एक जैसी भाषा में ही उनके पक्ष में तीन प्रमुख विधायकों विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, सुरेंद्र मैथानी तथा विधान परिषद सदस्य अरुण पाठक द्वारा पत्र लिखे गये। यह भाषा इस बात का भी संकेत दे रही है कि सीएमओ के पक्ष मे पर्दे के पीछे कोई ऐसा व्यक्ति भी है जो शासन स्तर पर इन तीनों विधायकों पर संबंधों अथवा राजनीतिक पकड़ के जरिये अपना प्रभाव रखता है।
महाना के कैंप कार्यालय में थी सीएमओ की नजदीकियां

राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा है कि निलंबित डॉ. हरिदत्त नेमी ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना कैंप कार्यालय में बैठने वालों से अपनी निकटता का फायदा उठाते हुए अपने समर्थन में पत्र लिखवाने के बाद गोविंदनगर विधायक सुरेंद्र मैथानी और स्नातक क्षेत्र विधायक अरुण पाठक से संपर्क किया। दोनों माननीयों के दरबार में हरिदत्त यह बताने-समझाने में कामयाब हुए कि, जिलाधिकारी का चिकित्सा विभाग में हस्तक्षेप खामख्वाह और पूर्वाग्रह से ग्रसित है। नतीजा यह हुआ कि, मैथानी और पाठक के दफ्तर से सिफारिश पत्र जारी हुए तो भाषा हूबहू सतीश महाना के कैंप आफिस से जारी सिफारिश पत्र जैसी थी। एक जैसी भाषा के सिफारिशी पत्रों को शासन ने गंभीरता से लिया और लॉबिंग का दोषी मानते हुए हरिदत्त नेमी को निलंबित करने के साथ जांच का आदेश जारी कर दिया।
विधायकों में लगी कार्रवाई का श्रेय लेने की होड़

बीते दिवस सीएमओ डॉ. हरिदत्त नेमी के निलंबन और ट्रांसफर के बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर विजय भव:, जय अभिजीत, जय महेश के स्लोगन फुदकने लगे। क्या यह विजयघोष है… इस सवाल पर बिठूर विधायक अभिजीत सांगा ने कहाकि, भ्रष्ट सीएमओ का निलंबन और तबादला मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का उदाहरण है। उन्होंने किसी प्रकार के वर्चस्व की जंग से इंकार करते हुए कहाकि, चिकित्सा महकमे में निकम्मेपन के खिलाफ जिलाधिकारी की पहल सार्थक थी, जिसे जनता ने समर्थन दिया। किदवई नगर विधायक महेश त्रिवेदी ने कहाकि, सरकारी अस्पतालों में भ्रष्टाचार की गंदगी के खिलाफ जिलाधिकारी मोर्चे पर मुस्तैद थे। हमारे पास सीएमओ का पाप का पुलिंदा आया था, इसी नाते मुख्यमंत्री को बिंदुवार जानकारी उपलब्ध कराई थी, जिसके परिपेक्ष्य में सीएमओ निलंबित हुए हैं और जांच के आदेश भी हुए हैं।
अधिकारियों के विवाद को ठीक नहीं मानते तमाम भाजपाई

सीएमओ के निलंबन के बाद भाजपाई खेमे में जीत-हार के रूप में नफा-नुकसान के समीकरण समझने में टोलियां जुटी हैं। पूर्व महापौर रवींद्र पाटनी ने सीएमए के पक्ष-विपक्ष में मोर्चेबंदी को दुर्भाग्यपूर्ण और नुकसानदेह बताया। उन्होंने कहाकि, संवैधानिक पद पर आसीन चेहरे को मामले में हस्तक्षेप से परहेज करना चाहिए था। वरिष्ठ भाजपा नेता सुरेश अवस्थी ने कहाकि, मोर्चेबंदी कतई उचित नहीं था। जिलाधिकारी की चिट्ठी पर्याप्त थी, इसके बाद किसी को समर्थन के लिए सिफारिश नहीं करनी चाहिए थी। वरिष्ठ भाजपा नेता दीप अवस्थी का कहना है कि, जिलाधिकारी अच्छा कार्य कर रहे हैं, लिहाजा उनका समर्थन किया जाना चाहिए। कार्यकर्ता वंदना मिश्रा कहती हैं कि, अब सीएमओ के लिए चिट्ठी लिखने वाले बिजली-पानी और जर्जर सड़कों के लिए क्या खत लिखेंगे। इसके अलावा भी इस मामले में सोशल मीडिया पर एक दूसरे को समर्थको को घेरने के लिये तमाम तरह की टिप्पणियां की जा रही हैं।