हर-हर महादेव के जयकारों के साथ दशासन का पूजन

अमित गुप्ता।

कानपुर के दशासन मंदिर में पूजा अर्चना करते श्रद्धालु।

कानपुर। देश में स्थित दशासन रावण के पांच मंदिरों में एक कानपुर के दशासन मंदिर में गुरुवार को दशासन की पूजा करने के लिये हजारों श्रद्धालु पहुंचे। इन लोगों ने हर-हर महादेव के जयकारे लगाकर तथा दशासन की मूर्ति के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाकर पूजा अर्चना की। सुबह खोले गये दशासन के इस मंदिर के दरवाजे रात को लकड़ी के पटरों को जड़कर बंद कर दिया गया। इस दौरान पूरा दिन हर-हर महादेव के जयकारों के साथ शिव स्त्रोत का पाठ भी कई भक्तों द्वारा किया गया। इस दौरान लोगों द्वारा भंडारा भी कराया गया जिसमें कई लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।

कैलाश मन्दिर शिवाला में दशानन का मन्दिर

जानकारों की मानी जाये तो भारत में दशानन रावण के पांच मन्दिर है। इनमें सबसे प्रमुख मन्दिरों में एक दशानन का मन्दिर एेतिहासिक कानपुर के कैलाश मन्दिर शिवाला में स्थित है। इस मन्दिर को डेढ़ सौ साल से पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि विजयदशमी के दिन इस मंदिर में पूरे विधिविधान से रावण का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रंगार किया जाता है उसके बाद पूजन के साथ रावण की स्तुति कर आरती की जाती है। कानपुर में बने इस मंदिर में तबसे आज तक निरंतर रावण की पूजा होती है, लोग हर वर्ष इस मंदिर के खुलने का इन्तजार करते है और मंदिर खुलने पर यहाँ पूजा अर्चना बड़े धूम धाम से करते है। पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना के साथ रावण की आरती भी की जाती है। कानपुर में मौजूद रावण के इस मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि यहाँ मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती है, और लोग इसी लिए यहाँ दशहरे पर रावण की विशेष पूजा करते हैं। यहां दशहरे के दिन ही रावण का जन्मदिन भी मनाया जाता है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि रावण को जिस दिन राम के हाथों मोक्ष मिला उसी दिन रावण पैदा भी हुआ था।

सुबह से ही जुटने लगे श्रद्धालु, जलाए दीपक

वर्ष में केवल एक दिन दशहरा पर ही इस मंदिर के पूजा अर्चना के लिये खुलने के कारण गुरुवार को सुबह से ही इस मंदिर में दर्शन के लिये लोग पहुंचने लगे। यहां पहुंचने वाले दशासन की मूर्ति के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाने के साथ ही हर-हर महादेव के नारे लगा रहे थे। यहां मौजूद लोगों का कहना था कि वह लोग कई वर्ष से दशासन के मंदिर में पूजा करने के साथ ही दीपक जला रहे हैं। कहा जाता है कि दशासन की मूर्ति के सामने दीपक जलाकर पूजा अर्चना करने से भगवान शिव का आशीर्वाद जल्दी मिलता है। सुबह से रात करीब आठ बजे तक मंदिर में पूजा करने वालों की भीड़ लगी रही।

भगवान राम ने कहा था कि दशासन जैसा ज्ञानी कोई नहीं होगा

ब्रह्म बाण नाभि में लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया। यह वह समय था जब राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरो की तरफ खड़े हो कर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो, क्योकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा। रावण का यही स्वरूप पूजनीय है और इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर कानपुर में रावण के पूजन का विधान है।

भगवान विष्णु ने रावण का उद्धार करने के लिए लिया धरती पर अवतार

कैलाश मंदिर शिवाला कानपुर में स्थित दशासन मंदिर में पूजा करते श्रद्धालु।

ग्रंथों में रामायण का एक अपना अलग महत्व है जिसमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने लंका पति रावण , लंकेश और दशानन कई नामों से प्रख्यात है , रावण जो भोलेनाथ जी के अनन्य भक्तों में एक है जिसने भोलेनाथ को खुश और मनाने के लिए अपने 10 सर काट कर उनको अर्पित किए जिस पर भोलेनाथ ने उसको मनवांछित फल दिया और रावण को अपनी भक्ति व आशीर्वाद दिया लेकिन जैसा कि विधि के विधान में लिखा है की जब ताकत हद से ज्यादा होती है तो वो अहंकार के रूप में बदल जाती है ,तीनों लोकों में रावण से ज्यादा ज्ञानी , बुद्धिमान , ताकतवर और शक्तिशाली कोई नहीं था ,जिसकी वजह से राक्षसों का तीनों लोक में बहुत ज्यादा अत्याचार था , यहां तक ऋषि मुनि और धर्मात्माओं को भी राक्षस उनकी हत्या और नरसंहार कर रहे थे ।पूरे ब्रह्माण्ड में त्राहि त्राहि मची हुई थी तब देवताओं और बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने विष्णु भगवान के पास जा कर प्रार्थना की कि हे प्रभु हम सबको रावण के अत्याचार से बचाए तब भगवान विष्णु ने उन सभी देवताओं को आश्वाशन दिया और कहा मै धरती में अयोध्या के राजा दशरथ के यहां पुत्र बन के जन्म लूंगा और उसके बाद रावण का वध कर देवताओं ऋषि मुनियों और तीनों लोको को रावण के अत्याचारों व कुरीतियों मुक्त कराऊंगा और तब मर्यादा पुरूषोतम भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या क राजा दशरथ के यहां जन्म लिया और शुरुवात हुई रामायण की जिसका विश्लेषण तुलसीदास जी ने रामायण ग्रंथ को लिखा जिसमें प्रभु श्री राम चंद्र जी के जन्म से रावण के वध के साथ उनके जीवन की सभी लीलाओं का वर्णन किया ।असत्य पर सत्य की जीत की गाथा को रामायण नामक ग्रन्थ नाम से लिखा गया है ।

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