इस मंदिर में लकड़ी से बनी है भगवान सूर्य की मूर्ति

वेद गुप्ता

आज 23 नवंबर को रविवार है और रविवार को भगवान सूर्य का दिन कहा जाता है। इसलिये आज भगवान सूर्य के मंदिर की ही चर्चा की जा रही है। उत्तराखंड में स्थित भगवान सूर्य के इस मंदिर में रोज ही हजारों लोग दर्शन करने पहुंचते हैं। रविवार को मंदिर में पहुंचने वाले भक्तों की संख्या ज्यादा होती है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर सूर्य भगवान की मूर्ति किसी धातु या पत्थर से निर्मित नहीं है बल्कि यह मूर्ति बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है जो‌ अपने आप में अद्भुत व अनोखी है। इसीलिए इस सूर्य मंदिर को “बड़ आदित्य मंदिर” भी कहा जाता है।

वास्तु और शिल्पकला का अद्भुत नमूमा

सूर्य मंदिर की वास्तुकला व शिल्पकला का एक अद्भुत नमूना है। मुख्य सूर्य मंदिर के अतिरिक्त इस जगह पर 45 छोटे-बड़े और भी मंदिर है। यहां पर भगवान सूर्य देव के अलावा शिव, पार्वती, गणेश जी, लक्ष्मी नारायण, कार्तिकेय व नरसिंह भगवान की मूर्तियां भी स्थापित है। यह उत्तराखंड का ऐसा एक अकेला मंदिर हैं। जहां पर बड़ के भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और कहा तो यह जाता है कि उड़ीसा के कोणार्क के सूर्य मंदिर के बाद यही एकमात्र प्राचीन कटारमल सूर्य मंदिर हैं।

पुरातत्व विभाग ने किया है संरक्षित

भारतीय पुरातत्व विभाग ने कटारमल सूर्य मंदिर को “संरक्षित स्मारक” घोषित किया है। इसीलिए अब इस मंदिर की देखरेख तथा इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व विभाग ने ले ली है । इस मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार लकड़ी का बना हैं और उसमें की गई नक्काशी भी उच्च कोटि की काष्ठ कला का नमूना है। वर्तमान में यह प्रवेश द्वार नई दिल्ली स्थित ”राष्ट्रीय संग्रहालय“ में रखा गया है।

पहुंचते हैं देश विदेश के पर्यटक

इसकी अद्भुत वास्तु कला व शिल्प कला, भव्यता अपने वैभवशाली गाथा के बारे में अपने आप बहुत कुछ कहता है। कुमाऊं में स्थित सभी मंदिरों में (सभी प्राचीन व नवीन मंदिरों) यह सबसे ऊंचा व सबसे विशाल मंदिर है। प्रकृति की खूबसूरत वादियों के बीच बसा यह मंदिर पर्यटकों का मन बरबस ही मोह लेता है।

यह हमारे महान भारतीय संस्कृति को तो दिखाता ही है साथ में उत्तराखंड के राजाओं के गौरवशाली इतिहास का भी बखान अपने दर्शन से ही कर देता है। स्थानीय लोग व दूर-दूर से पर्यटक कटारमल सूर्य मंदिर पर भगवान सूर्य देव के दर्शन करने के लिए तथा उनका आशीर्वाद लेने के लिए पूरे वर्ष भर आते रहते है।ऐसा माना जाता है कि श्रध्दा व सच्चे मन से मांगी गयी मनोकामनाओं को सूर्य देव अवश्य पूरी करते हैं।

मंदिर के संबंध में प्रचलित है यह कथा

इस मंदिर से प्रचलित एक कथा भी है। कहा जाता है कि उत्तराखंड के शांत हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में ऋषि मुनि सदैव अपनी तपस्या में लीन रहते थे, लेकिन असुर समय-समय पर उन पर अत्याचार कर उनकी तपस्या भंग कर देते थे। एक बार एक असुर के अत्याचार से परेशान होकर दूनागिरी पर्वत, कषाय पर्वत तथा कंजार पर्वत रहने वाले ऋषि मुनियों ने कोसी नदी के तट पर आकर भगवान सूर्य की आराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें दर्शन दिए तथा उन्हें असुरों के अत्याचार से भय मुक्त किया। साथ ही साथ सूर्य देव ने अपने तेज को एक वटशिला पर स्थापित कर दिया।

तभी से भगवान सूर्यदेव यहां पर वट की लकड़ी से बनी मूर्ति पर विराजमान है। आगे चलकर इसी जगह पर राजा कटारमल ने भगवान सूर्य के भव्य मंदिर कटारमल सूर्य मंदिर का निर्माण किया। जिसे कटारमल सूर्य मंदिर कहा गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *