Politics मोदी की आंधी में परिवारवाद को बढ़ावा

सरस वाजपेयी

बिहार में नीतिश कुमार की अगुवाई में नई सरकार का गठन हो गया। बिहार का पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह की अगुवाई में लड़ा गया। कमान नीतिश कुमार के भी हाथ में थी। विधानसभा चुनाव में एनडीए ने जबरदस्त प्रदर्शन कर विरोधी दलो को तो जमीन पर ला दिया। लेकिन इस चुनाव की आड में बिहार में परिवारवाद को बढ़ावा मिल गया। आने वाले समय में विरोधी दल भाजपा के सबसे मजबूत हथियारों में एक परिवारवाद मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गृहमंत्री अमित शाह को घेरने की तैयारी में जुट गयी है।

परिवार वाद को मुद्दा बनाती रही है भाजपा

राजनीति के जानकारो की मानी जाये तो भारतीय जनता पार्टी लम्बे समय से परिवारवाद को ही मुद्दा बनाती रही है। मुख्य विरोधी दलो में एक कांग्रेस को भाजपा राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में परिवारवाद के नाम पर ही घेरती रही है। जिसका नतीजा यह निकला की 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी परिवारवाद भ्रष्ट्राचार तथा मंहगाई के आधार पर केन्द्र सरकार से यूपीए को हटाकर एनडीए की सरकार बनाने में सफल हुई। इसी तरह यूपी की राजनीति में भाजपा अपने मुख्य विरोधी समाजवादी पार्टी पर परिवारवाद का आरोप लगाकर उसे कटघरे में घेरती रही।

बिहार में दिया परिवारवाद को बढ़ावा

बिहार में शपथ ग्रहण के बाद यह बात सामने आ गयी कि मोदी शाह की आंधी में सरकार का जो आम गिरे उसका सबसे ज्यादा लाभ राजनीति के दो धुंरधर केन्द्रीय मंत्री जीतन राम मांझी तथा उपेन्द्र नाथ कुशवाहा ने उठाय़ा। केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान भी अपने लोगो को आगे बढ़ाने में सफल रहे लेकिन बिहार की राजनीति में सक्रिय रहने वाले जीतन राम मांझी व उपेन्द्र नाथ कुशवाहा ने अपने परिवार को ही राजनीतिक मजबूती देने का काम किया और इसमें एनडीए के प्रमुख दलो भारतीय जनता पार्टी तथा जेडीयू के अगुवाकारो की परोक्ष सहमति भी रही।

मांझी व कुशवाहा के पुत्र बने मंत्री

बिहार की राजनीति में सक्रिय रहने वाले जीतन राम मांझी के राजनीतिक दल (हम) के खाते में जो सीटे आयी उसमें केन्द्रीय मंत्री मांझी ने अपने परिवार के ही लोगो को टिकट दिया। जिसमें उनका पुत्र पुत्रवधु व समधी परिवार के लोग शामिल थे। केन्द्रीय मंत्री जीतन राम मांझी अपने परिवार के लोगो को विधायक बनवाने के साथ ही अपने पुत्र को विहार मंत्रिमण्डल में भी शामिल कराने में सफल हो गये। इसी तरह रालोमो नेता उपेन्द्र नाथ कुशवाहा इस चुनाव में मिली सीटो में एक से अपनी पत्नी को विधायक बनाने में सफलता हासिल कर ली। इसके साथ ही गठबंधन के अगुआकार भारतीय जनता पार्टी तथा जेडीयू के नेताअों पर दबाव बनाकर उन्होंने अपने पुत्र को मंत्री बनवा लिया। जबकि उनका पुत्र न तो एमएलए है न एमएलसी मतलब वह अभी किसी भी सदन विधानसभा अथवा विधान परिषद का सदस्य नही है।

मुद्दा बनाने की तैयारी में विपक्षी दल

बिहार की राजनीति से जु़ड़े लोगो की मानी जाय तो बिहार सरकार के गठन में जिस तरह से एनडीए के घटक दलो द्वारा परिवारवाद को बढ़ावा देकर अपने परिवार के लोगो को विधायक तथा पुत्रो को मंत्रिमण्डल में स्थान दिलाया गया। उसे अब भाजपा के खिलाफ अस्त्र बनाकर परिवारवाद के भाजपा के राजनीतिक हथियार की धार को मंद करने की तैयारी की जा रही है। अगर विपक्षी दल अपने इस अभियान में सफल होते है तो आने वाले चुनावो में भाजपा के लिए वह काफी हद तक मुश्किल खड़ी करने में सफल हो सकते है।

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