इस temple में कन्या के रूप में पूजी जाती हैं मां पार्वती

वैसे तो भारत में देवी मां के कई मंदिर हैं इन मंदिरों में मां के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। मनोवांछित फल पाने के लिये भक्त इन मंदिरों में मां की आराधना करते हैं। इन मंदिरों में कन्याकुमारी के समुद्र तट पर एक ऐसा मंदिर भी है जहां कन्या के रूप में मां पार्वती की पूजा की जाती है। समुद्र तट पर स्थित इस मंदिर को कुमारी देवी का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में जाने पर आपको भारत की प्राकृतिक धरोहर के मनोहारी दृष्य भी देखने को मिल सकते हैं।

भगवान परशुराम ने की थी मूर्ति की स्थापना

बताया जाता है कि देवी कन्याकुमारी की मूर्ति की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी मन्दिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं। कन्याकुमारी में स्थित कुमारी अमन मन्दिर के गर्भ ग्रह में माँ भगवती दुर्गा की प्रतिमा है , जिनके अन्य नाम देवी बाला और भद्रकाली भी है यहाँ ब्रह्मचारियों और संन्यासियों को केवल मन्दिर के गर्भगृह के द्वार तक जाने की अनुमति है ।

मां पार्वती ने यहां की थी तपस्या

इस मन्दिर के बारे में मान्यता है की माँ माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए तपस्या की थी मन्दिर के गर्भगृह में केवल महिलाएँ ही जा सकती है यहाँ भगवती के कन्या रूप की पूजा होती है। यह मन्दिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है , जहाँ देवी सती की रीढ़ की हड्डी गिरी थी। यह मन्दिर 3000 साल से भी अधिक पुराना है और मजबूत पत्थरों की दीवारों से घिरा हुआ है।

शक्ति पीठों में एक हैं यह मंदिर

कुछ विद्वानों के मतानुसार कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग (पीठ) गिरा था। इसकी शक्ति है सर्वाणी और शिव को निमिष कहते हैं। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि यहाँ माँ का उर्ध्वदंत गिरा था। कन्याश्रम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। यह मन्दिर देवी कन्याकुमारी को समर्पित है , जिन्हें कुमारी अम्मन के रूप में पूजा जाता है। मन्दिर परिसर में सूर्य , गणेश , अयप्पा , बाला सुंदरी और विजया सुंदरी को समर्पित मन्दिर भी हैं।

मंदिर में प्रवेश के पहले लें भगवान गणेश का आशीर्वाद

प्रचलित कथा के अनुसार देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बच गए दाल-चावल बाद में कंकर बन गए। आश्चर्यजनक रूप से कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार और रंग-रूप के रंग बिरंगे कंकर बड़ी मात्रा में देखे जा सकते हैं।मन्दिर के पास ही भगवान गणेश का मन्दिर भी है और कहा जाता है कि कुमारी देवी के द्वार में प्रवेश करने से पहले भगवान गणेश का आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए।

18वीं सदी का पवित्र स्थान है

कन्याकुमारी मन्दिर में 18वीं सदी का पवित्र स्थान भी है जहाँ पर्यटक , देवी के पद चिन्हों को देख सकते हैं। मन्दिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है , क्योंकि मन्दिर में स्थापित देवी के आभूषण ( नाक की नथ के हीरे )की रोशनी से समुद्री जहाज इसे लाइटहाउस समझने की भूल कर बैठते है और जहाज को किनारे करने के चक्‍कर में दुर्घटनाग्रस्‍त हो जाते है।

(लेखक वेद गुप्ता कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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