वेद गुप्ता
पूर्णिमा की श्राद्ध आज रविवार को ही है। पूर्वजों को याद करने तथा इनकी सेवा करने वाले इस पर्व को हर एक को पूरी श्रद्धा व आस्था के साथ मनाना चाहिये यह तो सभी मानते हैं और इस पर एक मत भी रहते हैं लेकिन श्राद्ध पक्ष यानि पितृ पक्ष में नई वस्तुओं की खऱीदारी करनी चाहिये या नहीं गया श्राद्ध करने वालों को पानी देना चाहिये या नहीं इस पर अभी भी लोग एक मत नही हो पा रहे हैं। कर्मकांड के जानकार पंडितों यहां इस बात पर जानकारी लेने व इस पर तर्क देने वाले पिछले कुछ समय से ज्यादा लोग पहुंच रहे हैं।
श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों में हम अक्सर दो तरह की बातें सुनते हैं। एक तो यह कि इन 16 दिनों में कोई खरीदी नहीं की जानी चाहिए अन्यथा अशुभ होता है और दूसरी यह कि जब हमारे पूर्वज पथ्वी पर हमें आशीर्वाद देने आते हैं तो हमें कोई भी नई वस्तु खरीदते देखकर खुश ही होते हैं अत: इन 16 दिनों में खरीदी अवश्य की जानी चाहिए। हालांकि पहली बात को मानने वाले लोग अधिक हैं और दूसरी बात को मानने वाले कम हैं।
पितृ पक्ष पर प्रियजनों से मिलने पृथ्वी पर आते हैं पूर्वज

शास्त्रों में माना गया है कि श्राद्ध पक्ष में मृत्यु के देवता यमराज आत्मा को कुछ दिनों के लिए यमलोक से मुक्त कर देते हैं और वो पितृ पक्ष के दिनों में अपने प्रियजनों के पास पृथ्वी पर आते हैं।
पहली मान्यता वालों का पक्ष है कि श्राद्धपक्ष का संबंध मृत्यु से है इस कारण यह अशुभ काल माना जाता है। जैसे अपने परिजन की मृत्यु के पश्चात हम शोक अवधि में रहते हैं और अपने अन्य शुभ, नियमित, मंगल, व्यावसायिक कार्यों को विराम दे देते हैं, वही भाव पितृपक्ष में भी जुड़ा है।
यह भी मानते हैं कई लोग
जबकि दूसरा पक्ष मानता है कि 16 की संख्या शुभता का प्रतीक होती है। दूसरी बात पितरों का पृथ्वी पर आना अशुभ कैसे हो सकता है? वे अब सशरीर हमारे बीच नहीं है किसी और लोक के निवासी हो गए हैं अत: वे पवित्र आत्मा हैं। उनका सूक्ष्म रूप में आगमन हमारे लिए कल्याणकारी है। जब हमारे पितृ हमें नवीन खरीदी करते हुए देखते हैं तो उन्हें प्रसन्नता होती है कि हमारे वंशज सु्खी और संपन्न हैं। अगर हमारी समृद्धि बढ़ रही है तो ऐसे में उनकी आत्मा को भला क्यों क्लेश होगा?
श्राद्ध पक्ष पितरों की शांति और प्रसन्नता के लिए मनाया जाने वाला परंपरागत पर्व है। श्राद्ध के दिनों में खरीददारी करना एवं अन्य शुभ कार्य करना मंगलकारी एवं लाभदायक है। क्योंकि पितृ हमेशा गणेश आराधना और देवी पूजा के बीच में आते हैं। पितरों के आभासी उपस्थिति में यदि किसी वस्तु की खरीददारी की जाए तो उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। पितरों का आशीर्वाद अत्यधिक फलदायक रहता है।
पितृ पक्ष में अनैतिक व अमानवीय कार्य से बचें
पूर्वजों द्वारा किए गए त्याग के प्रति आदरपूर्वक कृतज्ञता निवेदित करना ही श्राद्ध कहलाता है। इन 16 दिनों में अनैतिक, आपराधिक, अमानवीय और हर गलत कार्य से बचना चाहिए ना कि शुभ और पवित्र कार्यों से। अत : इन 16 दिनों यह भ्रम त्याग देना चाहिए कि यह दिन अशुभ हैं। बल्कि यह दिन सामान्य दिनों से अधिक शुभ हैं क्योंकि हमारे पूर्वज हमारे साथ हैं, हमें देख रहे हैं।
पितृपक्ष २०२५ तिथि एवं महत्व ।।
पितृ पक्ष २०२५ के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्म किए जाते हैं, इस समय पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा रखते हैं, इस अवधि में पवित्र नदियों में स्नान करना और जरूरतमंदों को दान देना विशेष फलदायी माना जाता है, पितृ पक्ष में विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितरों की कृपा जीवन में सुख-शांति लाती है।
इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत ०७ सितंबर २०२५, रविवार को हो रही है, भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि ०७ सितंबर को देर रात ०१:४१0 बजे प्रारंभ होगी और इसी दिन रात ११:३८ बजे समाप्त हो जाएगी, ऐसे में ०७ सितंबर से ही पितृ पक्ष की विधिवत शुरुआत मानी जाएगी, पितृ पक्ष का समापन २१ सितंबर २०२५ को सर्व पितृ अमावस्या के दिन होगा, पितृ पक्ष २०२५ की तारीखें निम्नलिखित हैं।
रविवार, ०७ सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
सोमवार, ०८ सितंबर- प्रतिपदा श्राद्ध
मंगलवार, ०9 सितंबर- द्वितीया श्राद्ध
बुधवार, १० सितंबर- तृतीया श्राद्ध, चतुर्थी श्राद्ध
गुरुवार, ११ सितंबर- पंचमी श्राद्ध, महा भरणी
शुक्रवार, १२ सितंबर – षष्ठी श्राद्ध
शनिवार, १३ सितंबर- सप्तमी श्राद्ध
रविवार, १४ सितंबर- अष्टमी श्राद्ध
सोमवार, १५ सितंबर- नवमी श्राद्ध
मंगलवार, १६ सितंबर- दशमी श्राद्ध
बुधवार, १७ सितंबर- एकादशी श्राद्ध
गुरुवार, १८ सितंबर- द्वादशी श्राद्ध
शुक्रवार, १९ सितंबर- त्रयोदशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध
शनिवार, २० सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध
रविवार, २१ सितंबर- सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध।
पितृपक्ष का महत्व-
पितृपक्ष, जिसे श्राद्धपक्ष भी कहा जाता है, एक १६ दिनों की अवधि है जो हिंदू धर्म में पूर्वजों को समर्पित है, यह भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है, इस दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक कर्म किए जाते हैं, इन दिनों पितर पृथ्वी पर अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा लेकर आते हैं, जो संतान श्रद्धा भाव से उनका स्मरण और तर्पण करती है, उन्हें पितरों की कृपा प्राप्त होती है, इससे पितृ दोष दूर होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
सुखी जीवन के लिये पितृ पक्ष को मानना आवश्यक
पितृऋण से मुक्ति पाने के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है, इस काल में गंगा स्नान, ब्राह्मण भोज और दान करना पुण्यदायी होता है, पितरों की संतुष्टि से वंश में समृद्धि, संतान सुख और कुल की उन्नति संभव होती है, इसलिए पितृ पक्ष को श्रद्धा और आस्था से मनाना अत्यंत आवश्यक है।