कानपुर में है दशानन का मंदिर, दशहरा को होते हैं दर्शन

वेद गुप्ता।

आज दशहरा है। आपको बता दें कि कानपुर में भी दशानन का एक मंदिर है। कोतवाली थानाक्षेत्र में कैलाश मंदिर (शिवाला) में स्थित इस दशानन के इस मंदिर को केवल एक दिन दशहरा के दिन ही दर्शनों के लिये खोला जाता है। यहां हजारों लोग पूजा करने पहुंचते हैं दीपक जलाते हैं। इसके बाद इस मंदिर के मुख्य द्वार को लकड़ी के पटरों से जडकर बंद कर दिया जाता है। कहा जाता है कि रावण का जन्म और मोक्ष दशहरे को हुई।

दूध से कराया जाता स्नान होता है श्रंगार

पूरे देश में विजयदशमी में रावण का प्रतीक रूप में वध कर चाहे उसका पुतला जलाया जाता हो,,,,लेकिन उत्तर प्रदेश में कानपुर एक ऐसी जगह है जहा दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं यहाँ पूजा करने के लिए रावण का मंदिर भी मौजूद है जो केवल वर्ष में दशहरे के मौके पर खोला जाता है। रावण का ये मंदिर उद्दोग नगरी कानपुर में मौजूद है,विजयदशमी के दिन इस मंदिर में पूरे विधिविधान से रावण का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रंगार किया जाता है उसके बाद पूजन के साथ रावण की स्तुति कर आरती की जाती है।

ब्रह्म बाण नाभि में लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया। यह वह समय था जब राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरो की तरफ खड़े हो कर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो, क्योकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा।रावण का यही स्वरूप पूजनीय है और इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर कानपुर में रावण के पूजन का विधान है।

1868 में बनाया गया था मंदिर,हर दशहरा को होती पूजा

सन 1868 में कानपुर में बने इस मंदिर में तबसे आज तक निरंतर रावण की पूजा होती है। लोग हर वर्ष इस मंदिर के खुलने का इन्तजार करते है और मंदिर खुलने पर यहाँ पूजा अर्चना बड़े धूम धाम से करते है। पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना के साथ रावण की आरती भी की जाती है। कानपुर में मौजूद रावण के इस मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि यहाँ मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती है और लोग इसी लिए यहाँ दशहरे पर रावण की विशेष पूजा करते हैं। यहाँ दशहरे के दिन ही रावण का जन्मदिन भी मनाया जाता है,,,, बहुत कम लोग जानते होंगे कि रावण को जिस दिन राम के हाथों मोक्ष मिला उसी दिन रावण पैदा भी हुआ था।

पवित्र परंपरा शुभता के प्रतीक नीलकंठ के दर्शन

नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो’, इस लोकोक्ति के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है। दशहरा पर्व पर इस पक्षी के दर्शन को शुभ और भाग्य को जगाने वाला माना जाता है। जिसके चलते दशहरे के दिन हर व्यक्ति इसी आस में छत पर जाकर आकाश को निहारता है कि उन्हें नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाएं। ताकि साल भर उनके यहां शुभ कार्य का सिलसिला चलता रहे। इस दिन नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन-धान्य में वृद्धि होती है, और फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत्‌ होते रहते हैं। सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो वह देखने वाले के लिए शुभ होता है।

कहते है श्रीराम ने इस पक्षी के दर्शन के बाद ही रावण पर विजय प्राप्त की थी। विजय दशमी का पर्व जीत का पर्व है। दशहरे पर नीलकण्ठ के दर्शन की परंपरा बरसों से जुड़ी है। लंका जीत के बाद जब भगवान राम को ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था। भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की एवं ब्राह्मण हत्या के पाप से खूद को मुक्त कराया। तब भगवान शिव नीलकंठ पक्षी के रुप में धरती पर पधारे थे।

नीलकण्ठ अर्थात् जिसका गला नीला हो। जनश्रुति और धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शंकर ही नीलकण्ठ है। इस पक्षी को पृथ्वी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि और स्वरूप दोनों माना गया है। नीलकंठ पक्षी भगवान शिव का ही रुप है। भगवान शिव नीलकंठ पक्षी का रूप धारण कर धरती पर विचरण करते हैं।

किसानों का मित्र :- वैज्ञानिकों के अनुसार यह भाग्य विधाता होने के साथ-साथ किसानों का मित्र भी है, क्योंकि सही मायने में नीलकंठ किसानों के भाग्य का रखवारा भी होता है, जो खेतों में कीड़ों को खाकर किसानों की फसलों की रखवारी करता है।

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