निशंक न्यूज नेटवर्क
अयोध्या। प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या मंगलवार को खुशी के रंग में में सराबोर रहा। यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राम मंदिर के शिखर पर जैसे ही भगवा धर्म ध्वज फहराया वैसे ही रामनगरी में उल्लास की लहर दौड़ने के साथ “जय श्रीराम” का जयघोष गूंज उठा। ऐसा लगा कि पूरे शहर में जैसे त्रेता युग का समय एक बार फिर जीवंत हो गया हो। ध्वज फहराने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि आज की अयोध्या 21वीं सदी के विकसित भारत की रीढ़ बनकर उभर रही है।
पीएम ने कहा कि आज राम मंदिर के शिखर पर धर्म-ध्वजा की स्थापना हुई है। इसका भगवा रंग त्याग की लौ है, इस पर चमकता सूर्य संकल्प की अटलता है, कोविदार वृक्ष रघुकुल की उस परंपरा का प्रतीक है जो स्वयं कष्ट सहे पर दूसरों को सुख दे। यह ध्वज केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं, यह सत्य की विजय का घोष है, वचन की पवित्रता का संदेश है— ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’। यह धर्म-ध्वज आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा कि जो कहा, वही किया जाए, जो संकल्प लिया, उसे पूरा करके ही दम लिया जाए। आज रामलला अपने भव्य सिंहासन पर विराजमान हैं, और उनके मस्तक पर लहराती यह धर्म-ध्वजा नए भारत के नवजागरण की पहली किरण बन गई है।
अगले दस वर्षों में गुलाम सोच से हो जाएंगे मुक्त
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भी गुलामी वाली सोच हमारे मन में गहरे बैठी हुई है। हमने भारतीय नौसेना के नए झंडे से उस औपनिवेशिक प्रतीक को पूरी तरह हटा दिया। यही दासता की मानसिकता थी जिसने भगवान श्रीराम को भी खारिज करने की कोशिश की। भारत की मिट्टी के हर कण में राम बस्ते हैं, लेकिन इस सच्चाई को भी मानसिक गुलामी ने काल्पनिक कहकर नकार दिया। आने वाले एक हजार साल तक भारत की नींव मजबूत तभी बनेगी, जब अगले दस वर्षों में हम मैकाले द्वारा थोपी गई इस गुलाम सोच से पूरी तरह मुक्त हो जाएंगे।
सदियों पुराना स्वप्न हुआ साकार : मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने इस अवसर पर भावुक स्वर में कहा- “आज का दिन हम सभी के जीवन की सार्थकता का दिन है। जिन अनगिनत लोगों ने इस पावन कार्य के लिए अपने प्राण तक अर्पण कर दिए, उनकी आत्माएं आज अवश्य शांति और गर्व का अनुभव कर रही होंगी। अशोक सिंहल जैसे महान संत-नेताओं को भी ऊपर से यह दृश्य दिखाई दे रहा होगा और उनकी आत्मा को शांति मिली होगी।
आज राम मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण हो चुका है। वह भगवा ध्वज, जो कभी प्राचीन काल में रामराज्य की अयोध्या में लहराया करता था, आज फिर से उसी गरिमा के साथ फहरा रहा है। इस पवित्र ध्वज पर रघुकुल का आदि चिह्न कोविदार (कुशासन) वृक्ष अंकित है। यह वृक्ष रघुवंश की त्यागमयी शासन-परंपरा का प्रतीक है—जो स्वयं कठोर धूप में खड़ा रहकर भी सबको छाया देता है, अपने फल भी दूसरों को सौंप देता है।
ध्वज पर विराजमान सूर्य एक ही पहिए वाला है—यह दर्शाता है कि कितनी ही विघ्न-बाधाएं आएं, संकल्प कभी नहीं डगमगाता। जिन पीढ़ियों ने यह स्वप्न देखा था, उन्होंने शायद कल्पना भी नहीं की होगी कि मंदिर उनके सपने से भी कहीं अधिक भव्य, दिव्य और अलौकिक बनेगा। आज वह स्वप्न साकार हो गया। यह केवल एक मंदिर का निर्माण नहीं, बल्कि सनातन भारत की आत्मा का पुनर्जागरण है।”
सीएम योगी के संबोधन में झलका आत्मविश्वास
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस जोश और आत्मविश्वास के साथ संबोधन किया, वह देखते ही बनता था। उन्होंने कहा कि राम मंदिर के शिखर पर लहराता केसरिया ध्वज नए, सशक्त और आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक है। पांच सौ वर्ष बीत गए, समय बदला, शासक बदले, पर जन-जन की आस्था न कभी डगमगाई, न कभी थमी। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व में संकल्प आगे बढ़ा, तो पूरे देश में एक ही नारा गूंजता रहा— “रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे।”
ध्वज का अद्भुत प्रतीकात्मक स्वरूप
राम जन्मभूमि मंदिर के गगनचुंबी शिखर पर फहराया गया यह ध्वज 10 फीट ऊंचाई और 20 फीट लंबाई वाला समकोण त्रिभुजाकार है। इस पर तेजोमय सूर्य की आकृति बनी है, जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के तेज, पराक्रम और जीवनदायी शक्ति का प्रतीक है। साथ ही कोदंड (कोविदारा) वृक्ष की छवि अंकित है और बीच में पवित्र ‘ॐ’ चिह्न सुशोभित है, जो सनातन संस्कृति की अनादि ध्वनि और सर्वोच्च चेतना का संदेश देता है। यह ध्वज केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं, अपितु विजय, श्रद्धा और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का जीवंत घोषणापत्र है।
