वेद गुप्ता
भाद्रपद शुक्ल एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जानते हैं। यह पद्मा/ जयंती एकादशी भी कहलाती है। यह पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं है। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भगवान् विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें।
जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।
भाद्रपद शुक्ल एकादशी 3 सितंबर को है परिवर्तनी एकादशी
त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों और याचनाओं से प्रतिदिन भगवान का पूजन किया करता था। नित्य विधि पूर्वक यज्ञ आयोजन करता और ब्राह्मणों को भोजन कराता था। वह जितना धार्मिक था उतना ही शूरवीर भी। एकबार उसने इंद्रलोक पर अधिकार स्थापित कर लिया। इस कारण सभी देवता एकत्र होकर सोच-विचारकर भगवान विष्णु के पास गए। देवगुरु बृहस्पति सहित इंद्रा देवता प्रभु के निकट जाकर हाथ जोड़कर वेद मंत्रों द्वारा भगवान की स्तुति करने लगे।
तब भगवान विष्णु ने उनकी विनय सुनी और संकट टालने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए उन्होंने वामन रूप धारण करके अपना पांचवां अवतार लिया और राजा बलि से सब कुछ दान स्वरूप ले लिया। भगवान वामन का रूप धारण करके राजा बलि द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ में पहुँचे और दान में तीन पग भूमि माँगी। इस पर राजा ने वामन का उपहास करते हुए कहा कि इतने छोटे से हो, तीन पग भूमि में क्या पाओगे। लेकिन वामन अपनी बात से अडिग रहे।
इस पर राजा ने तीन पग भूमि देना स्वीकार किया और दो पग में धरती और आकाश माप लिए। इस पर वामन ने तीसरे पग के लिए पूछा कि राजन अब तीसरा पग कहाँ रखूँ, इस पर राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। क्योंकि वह पहचान गए थे कि वामन कोई और नहीं स्वयं भगवान विष्णु हैं। तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और वामन भगवान् ने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर वामन भगवान् ने कहा कि हे बलि ! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूँगा।
इसलिये भाद्र पक्ष शुक्ल एकादशी को माना गया है परिवर्तिनी एवं पार्शव एकादशी
विरोचन पुत्र बलि से कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर वामन भगवान् की मूर्ति स्थापित हुई। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के निंद्रा काल में करवट बदलते है, इसलिये निद्रामग्न भगवान के करवट परिवर्तन के कारण ही अनेक शास्त्राें में इस एकादशी काे परिवर्तिनी एवं पार्शव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
लेखक वरिष्ट पत्रकार हैं फोन 9415042171
