वेद गुप्ता
दधीचि जयन्ती 2025,भाद्रपद शुक्ल अष्टमी
दधीचि जयंती हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। उन्होंने वृत्रासुर नामक दैत्य को मारने के लिए इंद्र के वज्र के निर्माण हेतु अपनी हड्डियाँ दान कर दी थीं। इस दिन को महर्षि दधीचि के महान त्याग के रुप में मनाया जाता है तथा ऋषि दधीचि के परोपकार, बलिदान और धर्म की रक्षा के दृढ़ संकल्प को याद किया जाता है।
महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना था इंद्र का वज्र
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार वृत्रासुर नामक एक शक्तिशाली असुर ने देवलोक पर कब्ज़ा कर लिया था और देवताओं को वहां से खदेड़ दिया था। इस संकट से मुक्ति पाने के लिए देवराज इंद्र ने ब्रह्मा जी से सलाह ली। जिन्होंने उन्हें बताया कि, केवल महर्षि दधीचि की हड्डियों से बने वज्र से ही वृत्रासुर का वध किया जा सकता है। महर्षि दधीचि को जब ये पता चला तो उन्होंने लोकहित और धर्म की रक्षा के लिए अपना शरीर त्याग कर अपनी अस्थियाँ इंद्र को दान कर दीं।
इंद्र ने इन अस्थियों से वज्र का निर्माण किया, जिससे वृत्रासुर का वध हुआ और देवताओं को अपना देवलोक वापस मिल गया। इस तरह महर्षि दधीचि ने परोपकार और धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया तभी से ये दिन महान दानवीरता और निस्वार्थ भावना का प्रतीक दिवस बन गया।

अष्टमी के दिन ही ॠषि दधीचि का जन्म
शस्त्र की महत्ता दधीचि ऋषि ने धर्म के हित में अपनी हड्डियों का दान कर दिया था
🏹 उनकी हड्डियों से तीन धनुष बने- १. गांडीव, २. पिनाक और ३. सारंग !
🏹 जिसमे से गांडीव अर्जुन को मिला था जिसके बल पर अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीता !
🏹 सारंग से भगवान राम ने युद्ध किया था और रावण के अत्याचारी राज्य को ध्वस्त किया था !
🏹 पिनाक भगवान शिव जी के पास था जिसे तपस्या के माध्यम से खुश रावण ने शिव जी से मांग लिया था ! परन्तु , वह उसका भार लम्बे समय तक नहीं उठा पाने के कारण बीच रास्ते में जनकपुरी में छोड़ आया था !
इसी पिनाक की नित्य सेवा सीताजी किया करती थी ! पिनाक का भंजन करके ही भगवान राम ने सीता जी का वरण किया था !
ब्रह्मर्षि दधिची की हड्डियों से ही “एकघ्नी नामक वज्र” भी बना था , जो भगवान इन्द्र को प्राप्त हुआ था !
इस एकघ्नी वज्र को इन्द्र ने कर्ण की तपस्या से खुश होकर उन्होंने कर्ण को दे दिया था! इसी एकघ्नी से महाभारत के युद्ध में भीम का महाप्रतापी पुत्र घतोत्कक्ष कर्ण के हाथों मारा गया था ! और भी कई अश्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ था उनकी हड्डियों से !

लेकिन दधिची के इस अस्थि-दान का उद्देश्य क्या था…???
क्या उनका सन्देश यही था कि उनकी आने वाली पीढ़ी नपुंसकों और कायरों की भांति मुंह छुपा कर घर में बैठ जाए और शत्रु की खुशामद करे….??? नहीं..
कोई ऐसा काल नहीं है जब मनुष्य शस्त्रों से दूर रहा हो..
हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ से ले कर ऋषि-मुनियों तक का एक दम स्पष्ट सन्देश और आह्वान रहा है कि….
”हे सनातनी वीरो.शस्त्र उठाओ और अन्याय तथा अत्याचार के विरुद्ध युद्ध करो !”
बस आज भी सबके लिए यही एक मात्र सन्देश है !
राष्ट्र और धर्म रक्षा के लिए अंततः बस एक ही मार्ग है !