लक्ष्य निर्धारण में सृजन रखे स्वार्थ नहीं

अपने लक्ष्य निर्धारण के समय हमेशा सृजन का भाव ही दिमाग में रखना चाहिए तय होना चाहिए की काम वह क्यों कर रहा हैं अगर काम करने के पहले ही स्वार्थ का भाव दिमाग में होगा तो इससे नुकसान ही मिलेगा ! उदाहरण के तौर पर मकड़ी अपने जाले को अपने रस से बुनती हैं लेकिन उसका मकसद इस जाले में छोटे कीटों को फंसाकर इनका भक्षण करने का होता हैं नतीजा मकड़ी का जाला देखते ही इसे साफ़ कर दिया जाता इसके साथ ही मकड़ी का भी अंत हो जाता हैं दूसरी तरफ चिड़िया भी अपना घोसला पूरी मेहनत से बनाती हैं लेकिन चिड़िया के न रहने पर भी इसे कोई तुरंत नष्ट नहीं क्यों की चिड़िया अपना घोसला किसी को फसा कर मारने के लिए नही बल्कि बच्चो के सुरक्षित पालन के लिए बनाती हैं उसका भाव सृजन का होता हैं और मकड़ी का भाव स्वार्थ का !

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पंडित निशंक बाजपेई