महाभारत काल में पितामह भीष्म ने दी थी श्राद्ध की जानकारी

आचार्य पवन तिवारी

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ज्योतिष सेवा संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष आचार्य पवन तिवारप

सबसे पहले पितृ पक्ष यानि श्राद्ध का उल्लेख महाभारत काल में मिलता है, जहाँ भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के बारे में कई बातें बताई हैं। उन्होंने बताया कि महर्षि निमी को श्राद्ध का उपदेश देने वाले प्रथम व्यक्ति महा तपस्वी अत्री थे। उस उपदेश को सुनने के बाद महर्षि निमि ने श्राद्ध करना शुरू किया और उन्हें देखकर अन्य ऋषियों ने भी श्राद्ध करना शुरू कर दिया, जिससे लगातार श्राद्ध का भोजन प्राप्त करने से उनके सभी पूर्वज संतुष्ट रहने लगे।

श्राद्ध के दौरान अग्नि देव से की जाती है प्रार्थना

ऋग्वेद के अनुसार, अग्नि मृतकों को पितृलोक तक पहुँचाने में सहायक होती है। श्राद्ध के दौरान अग्नि से ही प्रार्थना की जाती है कि वह वंशजों के दान और भोजन को पितृगणों तक पहुँचाकर मृतात्मा को भटकने से रक्षा करें। ऐतरेय ब्राह्मण में अग्नि का उल्लेख उस रज्जु के रूप में किया गया है जिसकी सहायता से मनुष्य स्वर्ग तक पहुँचता है। वहीं, पुराणों के अनुसार, पितृ पक्ष या श्राद्ध से मिल रहे भोजन से जब देवताओं और पूर्वजों को अपच हो गई, तो इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए ब्रह्माजी के पास गए। तब ब्रह्माजी ने कहा कि अग्निदेव ही उनका कल्याण करेंगे क्योंकि अग्नि तत्व भोजन के पचाने के लिए बेहद जरूरी है। जब वो अग्निदेव क पास गए, तो अग्निदेव ने देवताओं और पूर्वजों से कहा कि अब से हम सभी श्राद्ध में एक साथ भोजन करेंगे। मेरे साथ रहने से तुम्हारा अपच भी दूर हो जाएगा। इसलिए, तब से श्राद्ध का भोजन अग्निदेव को दिया जाता है और फिर पूर्वजों को दिया जाता है। श्राद्ध में अग्निदेव को देखकर दैत्य और ब्रह्मा राक्षस भी भोजन दूषित नहीं कर पाते, और कभी हो भी जाये, तो अग्नि सब कुछ शुद्ध कर देती है।

मृत्यु की तिथि पर किया जाना चाहिये श्राद्ध

पितृ पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है। इस साल श्राद्ध पक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू हो रहा है और 21 सितंबर को श्राद्ध पक्ष समाप्त होगा। श्राद्ध कर्म मृत्यु तिथि के आधार पर किया जाता है। जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु हुई थी, पितृ पक्ष के उसी दिन उसका श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी को अपने पूर्वज की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो वे अमावस्या के दिन सर्वपितृ श्राद्ध कर सकते हैं। यह तिथि उन सभी पितरों के लिए होती है जिनकी मृत्यु तिथि मालूम न हो।

दोपहर में होता है श्राद्ध पूजा का उपयुक्त समय

धार्मिक शास्त्रों में श्राद्ध पूजा का सबसे अच्छा समय दोपहर को है। दोपहर के समय योग्य ब्राह्मणों की सहायता से मंत्रोच्चारण कर श्राद्ध पूजा करें। पूजा के बाद जल से तर्पण करें और भोजन में से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग करके पहले उन्हें खिलाएं। अगर संभव हो तो गंगा नदी के किनारे जाकर श्राद्ध कर्म करें। गंगा तट पर किया गया श्राद्ध सबसे अधिक फलदायी होता है। अगर ऐसा न कर पाएं तो घर पर भी विधिपूर्वक श्राद्ध कर सकते हैं। इस बात का खास ध्यान रखें कि जिस दिन श्राद्ध करें, उस दिन ब्राह्मण भोज जरूर कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें।

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