सुबकता रह गया प्याज

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संसद में शोरशराबे की बीच नहीं उठ सका मुद्दा

प्रश्न डालने वाले सांसद उलझ गए दूसरे मामलों में

शैलेश अवस्थी

प्याज के चढ़ते दाम पर समूचे देश में चीख-पुकार मचाने वाले विपक्ष के महारथी संसद में कुछ स्वहित मुद्दों में उलझ गए और प्याज एक बार फिर हाशिए पर चला गया। स्पीकर ओम विरला प्याज पर प्रश्न डालने वालों का नाम पुकारते रह गए और शोऱशराबे की बीच उनकी आवाज दबकर रह गई।

पिछले दो महीने से प्याज के चढ़ते दाम आम आदमी की मुसीबत बने हैं। दिल्ली में तो प्याज के भाव 100 रुपये किलो तक पहुंच गए। कानपुर में भी प्याज 80 रुपये किलो तक बिक गया। अभी भी दाम 60-70 रुपये से नीचे नहीं आए हैं। देखा जाए तो प्याज के साथ चटनी-रोटी खाकर न जाने कितने गरीब, किसान और मजदूर अपना पेट भरते हैं। हां, रईसों के लिए किसी पकवान के स्वाद बढ़ाने वाला हो सकता है और उन्हें इसके बढ़े दाम देने में भी परहेज नहीं है। विपक्ष के नेता प्याज पर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। सरकार भी चेती और एक लाख टन प्याज आयात का फैसला किया। पर दिक्कत यह है कि टेंडर प्रक्रिया और फाइलों की मंद गति से देर हुई और अब कहीं एक हजार टन प्याज आयात का आर्डर दिया जा सका है। निर्यात पर भी रोक की बात कही है। इस कारण प्याज के दाम कुछ कम जरूर हुए हैं, मगर इतना नहीं कि गरीब उसे अपनी भोजन थाली में उसे शामिल कर सकें।

यह भी सही है कि इस बार प्याज का उत्पादन खपत के मुकाबले कम है। इस कारण दाम बढ़ना लाजिमी माना जा सकता है, लेकिन अचानक दाम सातवें आसमान पर पहुंच जाना भी गले नहीं उतरता है।

सवाल यह भी है कि क्या जमाखोर और मुनाफाखोर सक्रिय नहीं हैं। इन पर प्रभावी सरकारी कार्रवार्ई क्यों नहीं की गई। यदि एसा होता तो शायद गुप्त गोदामों में छिपा प्याज बाहर आता और दाम खिसक कर नीचे आ जाते। यह किसी से छिपा नहीं है कि नेटयुग के ये मुनाफाखोर किस तरह आंखों से काजल चुराना जानते हैं। सूचना सब है पर एक्शन क्यों नहीं होता, आज यह सवाल उछल रहा है। बात केवल प्याज की ही नहीं, अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की भी है।

कल लोकसभा का शीतसत्र शुरू हुआ तो मुद्दा प्याज का भी था। इसके लिए दो सांसदों ने प्रश्न डाले थे और उन्हें स्वीकर ओम विरला की तरफ से अनुमति भी थी। लेकिन इसके पहले ही सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की एसपीजी सुरक्षा हटाए जाने के मुद्दे पर कांग्रेसी उबल पड़े। हंगामा इस कदर बरपा कि सांसद शोर मचाते वेल तक पहुंच गए। मुद्दा जेएनयू में फीस बढ़ोतरी का भी था। इन दोनों मुद्दों पर विपक्ष सरकार को घेरने लगा और कोलाहल बढ़ने लगा। इस बीच स्वीकर ओम विरला लगातार उन सांसदों के नाम पुकारते रहे, जिन्होंने प्याज पर सवाल डाला था। पर शोर इस कदर कि प्याज की बात नगाड़खाने में तूती बन गई। इस सब की वजह से आम आदमी की परेशानी वाला मुद्दा कुछ निजी सवालों पर फिर भारी पड़ गया।

संसद भी जनता के पैसे से चलती है। एक दिन की संसदीय कार्यवाही में लाखों-करोड़ों खपते हैं। तो क्या यहां सार्थक बहस नहीं होनी चाहिए ? क्या शोरशराबा  करने से ही पता चलता है कि विपक्ष अपनी भूमिका निभा रहा है ? जनहित के मुद्दों पर सरकार के साथ क्यों नहीं रह सकते ? गड़बड़ी पर सत्ता के कान पकड़िये, लेकिन अपनी सार्थक भागीदारी, जिम्मेदारी और जबावदेही भी तय कीजिए। लोकतंत्र के मंदिर संसद में आत्मा में हाथ रखकर बात कीजिए। तर्क कीजिए, कुतर्क नहीं, सत्य के प्रहरी बनिए, झूठ को सच बनाने की कोशिश मत कीजिए। नेटयुग में आपके कारनामे जनता देख रही है। इसका मौन खतरनाक है और वक्त आने पर इसकी बुलंद आवाज आपको सुनने काबिल नहीं छोड़ेगी। इसलिए जरूरी है कि विपक्ष अपनी भूमिका निभाए और सत्ता पक्ष भी उसकी बात ध्यान से सुनकर उस पर मजबूत फैसले ले।