प्रभात त्रिपाठी
कौन कहता है कि आसमा में सुराख नही होता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। कुछ ऐसी ही हिम्मत दिखाई कानपुर डबल पुलिया में फल का ठेला लगाने वाले की 14 साल की बेटी ने। जिसने मुफलिसी और गरीबी को अपने लक्ष्य के आड़े नहीं आने दिया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हेपकीडो बॉक्सिंग में गोल्ड जीतकर दुनिया मे भारत का परचम लहरा दिया।

अगर दिल मे कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है। कुछ ऐसा ही जज्बा देखने को मिला कानपुर की संजना कश्यप में। एक छोटे से घर मे रहकर अमरूद के ठेले में बाप के साथ नौकरी करने वाली संजना ने इसी महीने की 2 तारीख को भूटान में हुई अंतर्राष्ट्रीय हेपकीडो बॉक्सिंग प्रतियोगिता में 42 खिलाड़ियों के बीच सब जूनियर कैटेगरी में देश का प्रतिनिधित्व करते हुए गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया । संजना ने भूटान के खिलाड़ी को हराकर देश के लिए गोल्ड जीता है।

गोल्ड जिनते के बाद संजना यही नही रुकना चाहती है वो अब एशियाड के लिए तैयारी कर रही है और उसकी ख्वाहिश है कि देश के लिए और बड़े मंच पर गोल्ड जीते और देश का नाम रोशन करे।
संजना का परिवार गरीबी और मुफलिसी के बीच अपना जीवन यापन कर रहा है। संजना के माता पिता फलों का ठेला लगाकर अपने परिवार का पेट पालते हैं। संजना भी जब समय मिलता है तो अपने माता पिता के साथ उनके काम मे उनकी मदद करती है। संजना शुरू से ही अपने खेल में काफी तेज थी। संजना ने नेशनल और स्टेट लेवल पर कई गोल्ड मेडल जीते। हालांकि उसके माता-पिता भले ही उसकी आर्थिक रूप से उतनी मदद नहीं कर सके, लेकिन उसकी इस प्रतिभा को पास पड़ोस के लोगो ने भली भांति पहचाना। लोगों का सहयोग मिला तो उसने कभी हिम्मत नहीं हारी। संजना के पिता फूलचंद का कहना है कि उनके एक बेटा भी है लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को कभी बेटे से कम नही समझा।
भूटान में हुई अंतर्राष्ट्रीय हेपकीडो बॉक्सिंग प्रतियोगिता में संजना का जब नेशनल लेवल पर सेलेक्शन हुआ तो संजना के परिजनों के पास इतने रुपये नही थे कि वो उसे भूटान भेज सके। लेकिन कहते है जब आप खुद हिम्मत करते है तो लोग आप की मदद के लिए आगे आ जाते है। कुछ ऐसा ही हुआ लोग आगे आये और संजना की मदद की।
निशंक न्यूज़