प्रधानमंत्री के लड़खड़ाने पर अभद्र टिप्पणी उचित नहीं
हंसी उड़ाना शर्मनाक, सुरक्षा में खामी की जांच जरूरी
शैलेश अवस्थी
कानपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल कानपुर दौरे के दौरान जब स्टीमर से उतर कर अटल घाट की सीढ़ियां चढ़ रहे थे, तभी उनका उनका संतुलन बिगड़ गया और वह लड़खड़ा गए। बस, सोशल मीडिया के “शूरवीरों” को मौका मिल गया और सबने अपने तरीके इस दृश्य पर उंगलियां चला दी। किसी ने हास्य देखा, किसी ने व्यंग्य किया तो कोई शालीनता की सीमा पार कर गया। किसी के लड़खड़ाने पर आह नहीं, वाह निकले तो इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है।
अभद्र और अशोभनीय टिप्पणी करने वाले भूल गए कि नरेंद्र मोदी हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं और वह कानपुर में हमारे मेहमान भी हैं। सोशल मीडिया के किसी प्लेटफार्म पर अनियंत्रित उंगलियां चलाते वक्त जेहन में नहीं आया कि क्या हमारे पिता कभी नहीं लड़खड़ाए, क्या हमारी मां को हमारे सहारे की जरूरत कभी नहीं पड़ी और क्या हम खुद कभी नहीं गिरे ? दुख तो तब हुआ जब मीडिया से जुड़े चंद लोगों ने भी इस दृश्य का मजाक उड़ाया। प्रधानमंत्री के जरा से लड़खड़ाने पर हंसना क्या अपने पिता या किसी बुजुर्ग का उपहास करना नहीं है ? ये कैसे संस्कार हैं ? अपनी संस्कृति में अतिथि तो देवता का रूप होता है। तो नरेंद्र मोदी की हंसी उड़ाना क्या देवत्व का अपमान नहीं है ?
जरा सोचिये, प्रधानमंत्री यहां गंगा के लिए आए थे। एक प्रयास है गंगा को अविरल और निर्मल करने का। प्रधानमंत्री या उनकी सरकार की आलोचना की जा सकती है, यह हर भारतीय का अधिकार है, होनी भी चाहिये और गाहे-बगाहे इसमें कोई चूकता भी नहीं है। यह ठीक है, लेकिन क्या कभी अपने कर्तव्य पर ध्यान दिया है ? कर्तव्य मतलब धर्म और संस्कार। यदि संस्कार को आत्मसात करते तो अपने प्रधानमंत्री की हंसी उड़ाने के बजाय चिंता होती कि कहीं उन्हें चोट न लगी हो।

सवाल तो उस जिम्मेदार महकमे और उससे जुड़े अधिकारियों पर उठने चाहिए, जिन पर प्रधानमंत्री की सुरक्षा का दायित्व था। जब पता था कि अटल घाट की एक सीढ़ी ऊंची है, तो फिर फिक्र क्यों नहीं की गई ? तैयारी पर करोड़ों फूंकने वाली सरकारी टीम क्या सीढ़ी दुरुस्त नहीं करवा सकती थी ? कल प्रधानमंत्री बच गए, लेकिन कभी कोई भी गिर सकता था। उस सीढ़ी पर “सावधान, सीढ़ी ऊंची है”, चेतावनी लिखकर अपने काम को पूरा समझ लिया गया। अरे क्या प्रधानमंत्री हर सीढ़ी पर चेतावनी पढ़ते चलते ? कम से कम इतना तो कर सकते थे कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा टीम को पहले ही सचेत कर देते, ताकि सीढ़ी के पास पहुंच कर सुरक्षाकर्मी सतर्क हो जाते और तब शायद यह “बैड-सीन” टल जाता। सारी दुनिया में हंसी तो उस टीम ने उड़वा दी जिस पर प्रधानमंत्री के सकुशल दौरे का जिम्मा था। गहन जांच होनी चाहिए। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री के सीढ़ी पर लड़खड़ाने पर टिप्पणी करने वाले अंतरमन में झांककर देखें तो वह खुद अपनी ही नजर में गिरे नजर आएंगे। याद कीजिये अपने पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा भी एक बार लड़खड़ा गए थे, तब भी सुरक्षा टीम ने उन्हें संभाला था। एसी घटनाएं होती रहती हैं। कौन है एसा तो कभी गिरा, फिसला या लड़खड़ाया नहीं होगा ? कभी गिरते को उठा कर देखो, कभी झुक कर किसी को सहारा देकर देखो, कभी लड़खड़ाने पर किसी को थाम कर देखो। आपका रेशा-रेशा संवर जाएगा और आप निखर जाओगे। हंसे तो कभी इस तरह डूबोगे कि तिनके का सहारा भी नहीं मिलेगा। प्रधानमंत्री के पैर ऊंची सीढ़ी के कारण लड़खड़ाए हैं तो क्या, लेकिन वह दुनिया के नजरों में बहुत ऊपर हैं। करोड़ों के चहेते हैं, देश ने उन्हें सिरआंखों पर बैठाया है। यदि एसा नहीं होता तो उनके नेतृत्व में भाजपा 300 पार नहीं होती। कुछ लोग यह लेख पढ़कर कह सकते हैं कि मैं नरेंद्र मोदी के कसीदे पढ़ रहा हूं, तो यह उनकी भूल है। मैं तो बात कर रहा हूं, संस्कार की, अतिथि के अभिनंदन की और अपने प्रधानमंत्री के सम्मान की।