इस एनकाउंटर से बहुतेरी बहन-बेटियों को मिला सुकून
जनतंत्र में “पब्लिक ओपीनियन” की कद्र करनी ही होगी
शैलेश अवस्थी
आज न जाने कितनी उन लड़कियों और महिलाओं को भी किसी हद तक सुकून मिला होगा, जो कभी न कभी यौन उत्पीड़न की शिकार बनी हैं। वे कभी डर, कभी संकोच, कभी लोकलाज तो कभी समाज के ” माइंडसेट” की वजह से चुप रह गई होंगी। कभी-कभी तो मजबूरी में अपनों ने ही मुंह बंद रखने की हिदायत दी होगी, लेकिन आज जब हैदराबादकांड के चारो आरोपी ढेर कर दिए गए तो हैवानियत का शिकार उस महिला चिकित्सक की आत्मा की शांति के साथ इन सबको भी चैन मिला होगा।
सुबह जब देश ने आंख खोली तो उसे बलात्कारकांड के चारो आरोपियों के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की खबर मिली। इसके बाद समूचे भारत में उत्सव का माहौल बन गया। किसी के मन में यह सवाल नहीं था कि वे दरिंदे कैसे मारे गए ? आज तो हर खामोश जुबां भी मुखर थी और समूचे भारत की लड़कियों का एक ही स्वर था…”पुलिस जिंदाबाद…इंसाफ ऑन द स्पॉट”…। किसी ने पुलिस टीम पर फूल बरसाए तो कई बहनों ने पुलिस वालों की कलाइयों में राखी बांधी। पुलिसवालों ने साबित कर दिया कि राखी के धागों की लाज किस तरह रखी जाती है। यह पहला मौका है जब एनकाउंटर पर किसी पुलिस टीम का पूरे देश ने इस तरह अभिनंदन किया हो। यदि जनता के रक्षक वाकई रक्षाबंधन का भावार्थ समझते हों तो शायद कोई बुरी नजर बहनों पर उठ ही नहीं सकती। इन चारों को भी उसी ठौर मृत्यु दंड मिला, जहां उस बेबस महिला डाक्टर ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ा था। मानों उसकी दर्दनाक चीखों ने उन चारों को वहीं खींच लिया और फिर बदला पूरा हुआ।
लोकतंत्र में जनभावना सर्वोपरि है तो फिर दुष्कर्म के आरोपियों के साथ इस सलूक पर सवाल क्यों ? हैदराबाद में महिला चिकित्सक से दुष्कर्म और हत्या के बाद पिछले आठ दिन से पूरे देश में दुख, दर्द और आक्रोश का माहौल था। जिस संसद में कानून बनते हैं, वहां सांसद जया बच्चन ने भी कह दिया था कि “एसे दरिंदों को जनता के हवाले कर देना चाहिए।“ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कह दिया था कि वह सख्त से सख्त कानून और सजा के पक्ष में हैं। हर कोई तत्काल इंसाफ की बात कर रहा था। जनतंत्र “पब्लिक ओपीनियन” से चलता है तो फिर क्या यह एनकाउंटर जनता की आवाज नहीं है ?

मेनका गांधी ने इस एनकाउंटर पर सवाल उठाए हैं। वे इसे भयानक कहती हैं। वह कहती हैं कि यह ठीक नहीं हुआ। अरे भई, वह भी अरसे से संसद में बैठ रही हैं। यौन उत्पीड़न के न जाने कितने मामले उन्होंने सुने होंगे। न जाने कितने कानून उनके समर्थन से बने होंगे। उन्हें तो जानवरों तक के दर्द तक से हमदर्दी है। मैं नहीं कहता कि उन्हें उस महिला चिकित्सक के साथ हुई घटना से दुख नहीं पहुंचा होगा, लेकिन एसे वक्त जब पूरा देश इस एनकाउंटर के समर्थन में खड़ा है, तब क्या वे जले पर नमक नहीं छिड़क रहीं ? उनके सवाल पर बहस हो सकती है, लेकिन मानवता के खिलाफ एसे जघन्यकांड पर कैसा मानवाधिकार। महाभारत में भगवान कृष्ण पर भी पक्षपात के आरोप लगे थे। अर्जुन ने गांडीव किनारे रख युद्ध से इनकार कर दिया था। तब कृष्ण ने कहा था कि धर्मयुद्ध से पीछे मत हटो, याद करो जब भरी सभा द्रौपदी का चीरहरण हुआ था, तब तुम्हारे यही चाचा, ताऊ और पितामह भी मौजूद थे। क्या तुम्हें द्रौपदी का करुण क्रंदन याद नहीं। और फिर अर्जुन की समझ में आ गया था। उसके बाद अंजाम सबको मालूम है। रामचरित मानस में भी लिखा है..”जब-जब होए धरम की हानी, बाढैं असुर महाअभिमानी, तब तब प्रभु धरि मनुज शरीरा”…। तो फिर जिसने उस डाक्टर बेटी की मार्मिक बेबस चीखों को मससूस न किया हो, वह खामोश ही रहे तो बेहतर, वरना देश का गुस्सा उसे इतिहास के कूड़ेदान में फेंक देगा।
हैदराबाद की वह पुलिस टीम ने जिसने मुठभेड़ में हैवानों को मार गिराया है, वह यह भी जानती होगी कि उस पर सवाल उठेंगे, उसे कठघरे में खड़ा किया जा सकता है, राजनीति हो सकती है, वह इस राजनीति के शिकार हो सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने जो बहादुरी दिखाई, उसका अभिनंदन किया जाना चाहिए। उनकी यह जांबाजी शायद किसी भी बहन और बेटी के लिए सुरक्षा की गारंटी है। यह संदेश है समाज के दरिंदों के लिए है कि बेटी पर बुरी नजर डाली तो यही हश्र होगा।
किसी इलाके में एक दमदार थानेदार आ जाता है तो बदमाश इलाका छोड़ देते हैं। यह होता है थानेदार का रसूख और कानून का खौफ। जाहिर है कि यदि नीयत साफ हो और इच्छा शक्ति दमदार हो तो ऊंची कुर्सी पर विराजमान “माननीय “ जनता की पीड़ा हर सकते हैं। इतिहास गवाह है जब अत्याचार हद तोड़ देते हैं तो कुदरत का कानून काम करता है। तब कोई शक्ति अवतरित होती है जो अत्याचारियों का दमन कर समाज को निडर बनाती है। अब शायद वह समय आ गया है। हुक्मरानों को जरूर सोचना होगा। यौन उत्पीड़न के मामलों पर सख्त कानून “तत्काल आवश्यकता” है और इस पर तुरंत कार्यवाही होनी चाहिए। मांग उठ रही है कि कुछ अन्य देश, जहां बलात्कार पर तत्काल कठोर दंड का कानून है, यहां भी उसी तर्ज पर इंसाफ हो। हुक्मरान जान लें, यदि उन्होंने जनभावना नहीं समझी तो इंसाफ सड़कों पर होगा। तब शायद गेहूं के साथ घुन भी पिस जाए, जो किसी सभ्य समाज के लिए उचित नहीं।