विकास वाजपेयी
पार्टियों की वोटरों के साथ बेरुखी और प्रत्याशियों के जनता से किए वादों पर खरा न उतारना अब नोटा के रूप में भारी पड़ता दिखाई देने लगा है। और अब भी यदि प्रमुख राजनीतिक दलों ने जनता की इस भावना को तवज्जों नहीं दिया तो वो समय दूर नहीं जब नोटा मतलब #noonethanother को ही विजयी घोषित करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
ये कहने की जरूरत शायद इस लिए भी दिखाई देने लगी है क्योंकि कानपुर के गोविंदनगर विधानसभा उपचुनाव में नोटा ने 4 धुरंधर प्रत्याशियों को भी बुरी तरह धूल चटा दी। इन प्रत्याशियों की ज़मानत जब्त होने की बात छोड़िए ये सब मिलकर भी नोटा का मुकाबला करने में फिसड्डी साबित हुए।
गोविंदनगर विधानसभा उपचुनावों में नोटा को 996 वोट मिले और यदि चार निर्दलीयों को देखा जाए तो वो उन पर बुरी तरह हावी रहा है। इसमें एक प्रत्याशी के विषय मे काफी चर्चा है जिनका नाम डॉ वीएन पाल है। डॉ पाल लगभग 2 दशकों से सामाजिक सरोकारों और राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रहे है मेयर से लेकर राष्ट्रपति के चुनावों में भी ताल ठोकते रहे है लेकिन एक बार फिर वोटरों ने उनको बुरी तरह जमीन दिखा दी है उनकी जमानत की बात छोड़िए आपको ताज्जुब होगा कि डॉ पाल को मात्र 250 वोटों से संतोष करना पड़ा है।
वही सुरेन्द्र कुमार चंद्रा की हालत तो सबसे बुरी रही उनको मात्र 172 मतों से ही संतोष करना पड़ा। इसी क्रम में राकेश कुमार त्रिपाठी को 393 तो पेशे से अधिवक्ता योगेंद्र अग्निहोत्री को 311 वोट देकर लोगो ने उनको जमीनी हकीकत से रूबरू करा दिया।
कुल मिला कर लोगो को अभी भी किसी निर्दलीय प्रत्याशी पर भरोसा जमता नहीं दिखाई पड़ता है। और ये इस पैमाने को नापने का एक महत्वपूर्ण पैमाना हो सकता है कि लोग इन प्रत्याशियों से अधिक विश्वास अब नोटा पर करने लगे है।