मरीज बिकते हैं बोलो खरीदोगे ?

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विकास वाजपेयी
प्रदेश में योगी सरकार मरीजो और खासकर गरीब लोगों के इलाज के लिए कई योजनाओं का एलान करती रही है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना से कइयों को इलाज में मदद मिलती रही है। लेकिन इन सब योजनाओं को धराशायी करने के लिए सरकारी अस्पताल के अधिकारी से लेकर वार्डबॉय तक कोई कसर छोड़ने को तैयार नहीं है।
सरकारी योजनाओं और मदद को धता बताते हुए सरकारी अस्पतालों के वार्डबॉय और कर्मचारियों ने इसमे भी पैसे कमाने का जुगाड़ खोज निकाला है। कानपुर के लाला लाजपतराय अस्पताल यानी हैलेट की इमरजेंसी सेवा के ब्लॉक के सामने आपको निजी अस्पताल के दलाल झुंड मिल जाएंगे, जिनकी खरीदारी का सिलसिला भी चलते हुए मिल जाएगा। हैलेट और आसपास के अस्पतालों से आने वाले ठीक और स्वस्थ होने की चाहत में आने वाले मरीजों से आकस्मिक सेवा के कर्मचारियों और वार्डबॉय से संपर्क करके निजी अस्पतालों के दलाल फिर उनकी खरीददारी करते है। जिसमे मरीजों को ये बताया जाता है कि अस्पताल का बेड खाली नहीं है और वेंटिलेटर भी मिलना मुश्किल है यदि मरीज की जान बचानी है तो इसको तुरंत दूसरे अस्पताल में लेकर जाना पड़ेगा।


अब खेल शुरू होता है दलालों का जिनकी गाड़ी मरीजो को निजी अस्पताल में ले जाने के लिए तत्पर रहती है और जैसे ही मरीज या उसके परिजन ने थोड़ी सी भी हामी भरी तो मरीज सीधे निजी अस्पताल में भर्ती मिलेगा।
ये मामला तब खुला जब कानपुर की अकबरपुर की लोकसभा से बीजेपी सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने एक मरीज की हैलेट में भर्ती करने की सिफारिश की। शहर के चकेरी निवासी राम करण कुशवाहा को सिर में गंभीर चोट लगने के नाते सांसद महोदय की सिफारिश पर हैलेट ले जाया गया। पहले तो वार्डबॉय ने उनको देखा और फिर इमरजेंसी के कर्मचारियों ने परिजनों को वेंटिलेटर और बेड न होने की सलाह दी। फिर क्या था मरीज को ये निजी अस्पताल के दलाल तुरंत कल्याणपुर के एक निजी अस्पताल में लेकर दाखिल हो गए। एक दिन में उनसे 14000 का बिल भी वसूल कर लिया गया । आननफानन में परिजन फिर उनको लेकर हैलेट पहुंचे और पूरे मामले की लिखित जानकारी भी दी। परिजनों का कहना है कि जब उनको लगा कि निजी अस्पताल में इस तरह से इलाज में वो पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे तो उन्होंने इसकी लिखित शिकायत आकस्मिक सेवा अधिकारियों से की मामला अस्पताल अधीक्षक प्रोफेसर आर के मौर्य के पास पहुँच गया है। अब देखना ये है कि सरकारी अस्पतालों से इस दलालों के मजबूत रैकेट को अस्पताल का प्रशासन किस तरह तोड़ता है या फिर पहले की तरह सरकार की गरीबो के लिए बनी योजनाओं का इसी तरह मखौल उड़ाया जाता रहेगा।