विकास वाजपेयी
आखिरकार तीन दिन बाद एक बार फिर देवेन्द्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा राज्यपाल को सौप दिया। हलांकि उनका ये इस्तीफे का पत्र उस समय मिला जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधानमंड़ल दल के नेता और शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने चाचा की मानमुनौवल के बाद उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा राज्यपाल को भेजा। जानकारों के मुताबिक तीन दिन पहले तक केंद्र और महाराष्ट्र भारतीय जनता पार्टी इस प्रयास में रहे थे कि खुद की 105 सीट और कुछ निर्दलीय विधायकों के साथ अजीत पवार की एनसीपी के सहयोग से मपाराष्ट्र की बाजी मारी जा सकती है, लेकिन आखिरकार शरद पवार के प्रयासों से अजीत पवार वापस पार्टी और परिवार के साथ चले गए।
इस घटनाक्रम में देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफा सौपने के पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ग्रहमंत्री अमित शाह के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक की गयी। जानकार बताते हैं कि इस बाठक के बाद देवेंद्र फडणवीस ने राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी को अपना इस्तीफा सौप दिया। वैसे कल शाम को हुए धटनाक्रम में ये साफ होने लगा था कि भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश में सरकार गठन का सपना बिखर सकता है जब शिवसेना के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेसपार्टी और कांग्रेस ने 162 विधायकों की परेड़ कराई थी।
राजनीतिक विश्लेशक मानते है कि भारतीय जनता पार्टी किसी तरह प्रदेश में शिवसेना और कांग्रेस को एक पाले में खड़ा करके राज्य के लोगों को विचारधारा का संदेश देना चाहती थी और जिस तरह तीन दिनों में धुर विरोधी शिवसेना और कांग्रेस का साझा बयान लोगों के सामने आया तो आने वाले समय में प्रदेश में विचारधारा की लड़ाई की धार और मजबूत होते देखी जा सकती है। वहीं कांग्रेस की विचारधारा पर प्रश्न चिन्ह साफ लगते दिखाई देते है, क्योंकि कांग्रेस को अपने बड़े वोट बैंक मुसल्मानों को देश के दूसरे राज्यों में भी जवाब देना होगा और उस समय कांग्रेस को ये जवाब देना भारी पड़ेगा कि आखिर सत्ता प्राप्ति के लिये उसने घोर हिन्दुत्व वादी पार्टी के साथ बैठना उचित क्यो समझा। वहीं इस घटनाक्रम से भारतीय जनता पार्टी की छवि खराब हुई है। जिस तरह पार्टी एनसीपी के नेता अजीत पवार को पूरे इलेक्शन कैम्पेन में भ्रष्ट बताती रही उसी के साथ सरकार बना बैठी।