दस्यू फूलन ने 20 लोगों को लाइन में खड़ा कर मारी थी गोली
पांच आरोपियों पर शुरू हुआ केस, एक की हो चुकी मौत
निशंक न्यूज
कानपुर। देश के सबसे चर्चित बेहमई हत्याकांड पर आज 39 साल बाद कानपुर देहात दस्यू प्रभावित क्षेत्र के स्पेशल जज की अदालत से फैसला आना था। लेकिन इससे पहले दोषी डकैतों के वकील गिरीश चंद्र दुबे ने अदालत में पुर्नविचार याचिका दाखिल की। कहा- लिखित बहस व रूलिंग अदालत में दाखिल होना शेष है। जिस पर सुनवाई होना बाकी है। यदि कोर्ट याचिका को स्वीकार कर लेता है तो फैसले की तारीख स्थगित हो सकती है।
दोषियों के वकील गिरीश चंद्र दुबे ने कहा- आज फैसला आने की उम्मीद नहीं है। क्योंकि आज जो तारीख लगी है, उसमें लिखित बहस के लिए लगी हुई है। अग्रिम तारीख अभी लगना बाकी है, उसी दिन फैसला आएगा। कुछ रूलिंग व लिखित बहस दाखिल करनी है। वहीं, डीजीसी राजू पोरवाल ने कहा- आज तीन बजे तक फैसले की नई तारीख आ सकती है। इस फैसले पर सबकी निगाहे टिकी हुई हैं। फैसले को लेकर सुबह से ही बेहमई गांव के लोगों का अदालत में जमावड़ा लगा है।
35 आरोपियों में से पांच पर केस शुरू हुआ था
14 फरवरी 1981 को फूलन देवी और उसके 35 साथियों ने कानपुर के बेहमई गांव में 20 लोगों को लाइन में खड़ा कर उन्हें गोली मार दी थी। यह ऐसा मामला है, जिसमें 35 आरोपियों में से सिर्फ 5 पर केस शुरू हुआ। इनमें श्याम बाबू, भीखा, विश्वनाथ, पोशा और राम सिंह शामिल थे। राम सिंह की 13 फरवरी 2019 को जेल में मौत हो गई। पोशा जेल में बंद है। तीन आरोपी जमानत पर हैं। इस केस में सिर्फ 6 गवाह बनाए गए थे। अब 2 जिंदा बचे हैं। मुख्य आरोपी फूलन देवी की मौत हो चुकी है, इसलिए केस से उनका नाम हटा दिया।
बेहमई कांड ने फूलन को बैंडिट क्वीन बनाया
फूलन के पिता की 40 बीघा जमीन पर चाचा ने कब्जा किया था। 11 साल की उम्र में फूलन ने चाचा से जमीन मांगी। इस पर चाचा ने फूलन पर डकैती का केस दर्ज करा दिया। फूलन को जेल हुई। वह जेल से छूटी तो डकैतों के संपर्क में आई। दूसरी गैंग के लोगों ने फूलन का गैंगरेप किया। इसका बदला लेने के लिए फूलन ने बेहमई के 20 लोगों को गोलियों से भून दिया था। इसी घटना के बाद फूलन देवी बैंडिट क्वीन कहलाने लगी।
1983 में आत्मसमर्पण, फिर सांसद और अंत में हत्या
साल 1983 में फूलन देवी ने मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया था। एक दशक बाद साल 1993 में फूलन जेल से बाहर आईं। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें मिर्जापुर लोकसभा सीट से दो बार चुनाव लड़ाया और दोनों बार सांसद भी बनीं। 2001 में शेर सिंह राणा ने फूलन देवी की दिल्ली में उनके घर के पास हत्या कर दी थी।
इस केस में इतनी देरी क्यों हुई?
डीजीसी राजू पोरवाल बताते हैं कि 14 फरवरी 1981 को मुकदमा दर्ज हुआ। घटना के बाद बड़े स्तर पर कार्रवाई हुई। एनकाउंटर हुए और कई डकैत ऐसे गिरफ्तार हुए, जिनका नाम बेहमई कांड की एफआईआर में नहीं था। तब शिनाख्त करवाई गई। गवाहों को जेलों में ले जाकर पहचान करवाई गई। उस शिनाख्त के आधार पर एक के बाद एक आरोप पत्र दाखिल होते रहे। उसमें लंबा समय लगा। ट्रायल की यह प्रक्रिया है कि जब तक सभी आरोपी नहीं इकठ्ठा होंगे, तब तक आरोप तय नहीं होंगे। ऐसे में कभी कोई गायब रहता, तो कभी कोई बीमार रहता तो कभी किसी तारीख पर किसी आरोपी की मौत की खबर आ जाती थी। कई ऐसे भी आरोपी रहे, जिनके बारे में जानकारी तो मिली, लेकिन वे फरार हो गए। 2012 में यह केस मेरे पास आया। आरोपियों की फाइल अलग करवाई और फरार लोगों की संपत्ति की कुर्की की करवाई। 5 आरोपियों के खिलाफ अगस्त 2012 में आरोप तय हुए। तब तक 33 साल बीत चुके थे। गवाहों को लाना और जिरह कराना मुश्किल था।