बीजेपी के जाल में खुद फ़सती जा रही है कांग्रेस

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विकास वाजपेयी
देश भावनात्मक रूप से बदल रहा है। फेसबुक व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया के अन्य दूसरे माध्यमों से लोगो की जटिल सोच का पैमाना आसानी से नापने को मिल जाता है। जिन मुद्दों पर साधारण भारतीय गली चौराहे पर भी बोलने से कतराता था या संकोच करता था उन संवेदनशील मामलों पर लोग बेबाकी से अपनी राय का इजहार करने लगे है, और ये सब कोई रातोंरात नहीं हुआ। लोग अपने व्यक्तिगत मामले को दबाकर समाज के पहलू पर दोटूक होने को तैयार हो रहे है

इन सब मामलों में लोग काफी समय से बिना प्रतिक्रिया करते हुए नज़र जरूर रख रहे थे और जब कभी भी उनको मौका मिला लोगों ने उसका इजहार कर दिया जिसके परिणाम 2019 के नतीजों से लगाया जा सकता है।
आज समाज आंतरिक रूप से मुखर हो रहा है जिसको बीजेपी की नई टीम ने मजबूती से समझने का प्रयास किया है और कहें तो काफी हद तक नरेंद्र मोदी और अमित शाह की इस नई टीम ने उसको चुनाव परिणामों के रूप में धरातल पर उतारा है, और यही एक ऐसा मामला है जब बीजेपी पिछले कुछ वर्षों से खुद के संगठनात्मक मजबूती के साथ साथ मुख्य विपक्षी पार्टी की गलत नीतियों और बिना सोच के बयानों को ही अपनी सफलता का सबसे बड़ा हथियार बनाती रही है।
चायवाला और चौकीदार चोर है जैसे नारों से बीजेपी ने कांग्रेस जैसी पुरानी और समाज के जड़ तक रहने वाली पार्टी को उसी के हथियार से मात दी है।
सत्ता के गलियारों में सबसे लंबे समय से राज करने वाली कांग्रेस पार्टी अपनी मुख्य विपक्षी पार्टी के दाव पेच को समझ ही नहीं सकी और उसके जाल में धीरे धीरे फ़सती चली गई। समस्या कांग्रेस पार्टी के नेताओं के सामने सबसे बड़ी ये है कि भविष्य की तमाम गलतियों से भी उसने कोई सबक नहीं लिया।
भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग काफी समय से खुद को हाशिये पर पाता रहा है। आज़ादी के बाद से ही वर्ग विशेष को वोट बैंक के रूप में इकठ्ठा करने वाली कांग्रेस चाहे इंदिरा गांधी के समय मे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के गठन का मामला रहा हो या फिर राजीव गांधी के समय का शाबानो प्रकरण हो गाहे बगाहे दूसरे बड़े वर्ग की नाराजगी मोल लेती रही और इस सबका फायदा हिंदूवादी सोच वाली बीजेपी धीरे धीरे उठती रही। ये अलग बात है कि हिंदुओं की नाराजगी और यूपीए के 10 सालों के शासन ने 2014 के चुनावों में नरेन्द्र मोदी को एक बेहतरीन मौका दे दिया था जिसको कांग्रेस के रणनीतिकारों ने बाद तक नहीं भाँपा था।


कांग्रेस की हर बात को सूझबूझ से लपकने को तैयार बैठी बीजेपी ने कांग्रेस के लिए ऐसा भावनात्मक जुड़ाव के मुद्दे को बनाया जिसमे कांग्रेस खुदबखुद फ़सती चली गई और यही नही अपनी गलतियों से सबक लेने को इसके नेता आज भी तैयार नहीं दिखते।


कांग्रेस को अब इस बात का आभाष हो जाने की जरूरत है कि किसी भी भावनात्मक जुड़ाव के मुद्दे पर बीजेपी के जाल से बचा जाए। 2014 के चुनाव को याद किया जाए तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणि शंकर अय्यर ने चायवाला शब्द का जो मजाक उड़ाया वो कांग्रेस के लिए उतना ही भारी पड़ा जितना प्रियंका वाड्रा के रायबरेली के प्रचार के समय “नीच” शब्द ने किया था। लेकिन कांग्रेस है कि बीजेपी को असफलता के लिए घेरने के बजाय भावनात्मक मुद्दों के जाल में फस जाती है। बेरोजगारी महगाई, किसानों रोजगार और जीडीपी में गिरावट के मामले में सरकार को घेरने के बजाय कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल लोगों की संवेदना और राष्ट्रीयता के मुद्दे पर बीजेपी को घेरकर खुद उसके जाल में फसने को तैयार दिखते हैं और यहीं कारण है कि मजबूत राष्ट्रीयता और संवेदनशील मामले के अभेद रक्षा कवच में मौजूद बीजेपी उनको अपनी पिच में लड़ने को घसीट लेती है।
हाल ही के धारा 370 के मामले में कांग्रेस और कई विपक्षी पार्टियों ने जिस तरह से अपना पक्ष रखा है उससे देश के एक बड़े हिस्से में रहने वाले लोगों की भावनाओ पर 70 साल पुराने इस संवेदनशील मामले का गलत असर पड़ता दिखाई दिया है और इस पूरे मामले में जनता के बीच पार्टी का गलत नजरिया भी पहुचा है। रही सही कसर रॉफेल विमान को फ्रांस में प्राप्त करने पहुँचे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की पूजा अर्चना की तस्वीरों के बाद की प्रतिक्रियाओं ने पूरी कर दी। शस्त्र पूजन का विधान हिन्दू जनमानस में काफी मत्त्वपूर्ण स्थान रखता है लेकिन कांग्रेस के बड़बोले नेताओं ने इस शस्त्र पूजन के विरोध में जो नित नए बयान दिए उसके बचाव में देश का एक बड़ा तबका खुद जवाब देने के मूड में दिखाई दे रहा है। आखिर ऐसे बयानों की पार्टी को जरूरत ही क्या है जो भावनात्मक रूप से हमेशा दो विचारधाराओं में बटा रहता हो। मल्लिका अर्जुन खड़गे से लेकर लखनऊ से कांग्रेस प्रत्याशी आचार्य प्रमोद कृष्णन तक इस पूरे मामले पर ऊल जलूल बयान बाजी करते हुए नजर आते रहे। किसी एक तबके के नास्तिक होने से एक बड़े समाज को भी उस दिशा में ढकेला नहीं जा सकता। और पार्टी के वरिष्ठ नेता इस तरह के बयानों से बीजेपी को भावनात्मक रूप से जनता के करीब ले आते है। कुल मिलाकर ये ही कहा जा सकता है कि बीजेपी कांग्रेस और दूसरे क्षेत्रीय दलों को अपनी बनाई पिच में खेलने को मजबूर करती है और आज़ादी के पहले से जड़ जमाने वाली पार्टी अपनी दिशा हीनता से जनता के बीच परम्पराविरोधी और राष्ट्र हित की अनदेखी करने वाले दल के रूप में स्थापित करती जा रही है।


कांग्रेस को अब इस बात का आभाष हो जाने की जरूरत है कि किसी भी भावनात्मक जुड़ाव के मुद्दे पर बीजेपी के जाल से बचा जाए। 2014 के चुनाव को याद किया जाए तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणि शंकर अय्यर ने चायवाला शब्द का जो मजाक उड़ाया वो कांग्रेस के लिए उतना ही भारी पड़ा जितना प्रियंका वाड्रा के रायबरेली के प्रचार के समय “नीच” शब्द ने किया था। लेकिन कांग्रेस है कि बीजेपी को असफलता के लिए घेरने के बजाय भावनात्मक मुद्दों के जाल में फस जाती है। बेरोजगारी महगाई, किसानों रोजगार और जीडीपी में गिरावट के मामले में सरकार को घेरने के बजाय कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल लोगों की संवेदना और राष्ट्रीयता के मुद्दे पर बीजेपी को घेरकर खुद उसके जाल में फसने को तैयार दिखते हैं और यहीं कारण है कि मजबूत राष्ट्रीयता और संवेदनशील मामले के अभेद रक्षा कवच में मौजूद बीजेपी उनको अपनी पिच में लड़ने को घसीट लेती है।


हाल ही के धारा 370 के मामले में कांग्रेस और कई विपक्षी पार्टियों ने जिस तरह से अपना पक्ष रखा है उससे देश के एक बड़े हिस्से में रहने वाले लोगों की भावनाओ पर 70 साल पुराने इस संवेदनशील मामले का गलत असर पड़ता दिखाई दिया है और इस पूरे मामले में जनता के बीच पार्टी का गलत नजरिया भी पहुचा है। रही सही कसर रॉफेल विमान को फ्रांस में प्राप्त करने पहुँचे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की पूजा अर्चना की तस्वीरों के बाद की प्रतिक्रियाओं ने पूरी कर दी। शस्त्र पूजन का विधान हिन्दू जनमानस में काफी मत्त्वपूर्ण स्थान रखता है लेकिन कांग्रेस के बड़बोले नेताओं ने इस शस्त्र पूजन के विरोध में जो नित नए बयान दिए उसके बचाव में देश का एक बड़ा तबका खुद जवाब देने के मूड में दिखाई दे रहा है। आखिर ऐसे बयानों की पार्टी को जरूरत ही क्या है जो भावनात्मक रूप से हमेशा दो विचारधाराओं में बटा रहता हो। मल्लिका अर्जुन खड़गे से लेकर लखनऊ से कांग्रेस प्रत्याशी आचार्य प्रमोद कृष्णन तक इस पूरे मामले पर ऊल जलूल बयान बाजी करते हुए नजर आते रहे। किसी एक तबके के नास्तिक होने से एक बड़े समाज को भी उस दिशा में ढकेला नहीं जा सकता। और पार्टी के वरिष्ठ नेता इस तरह के बयानों से बीजेपी को भावनात्मक रूप से जनता के करीब ले आते है। कुल मिलाकर ये ही कहा जा सकता है कि बीजेपी कांग्रेस और दूसरे क्षेत्रीय दलों को अपनी बनाई पिच में खेलने को मजबूर करती है और आज़ादी के पहले से जड़ जमाने वाली पार्टी अपनी दिशा हीनता से जनता के बीच परम्पराविरोधी और राष्ट्र हित की अनदेखी करने वाले दल के रूप में स्थापित करती जा रही है।