यूपी में पुलिस कमिश्नर प्रणाली का सूत्रपात
शैलेश अवस्थी
उत्तर प्रदेश ने भी अब पुलिस कमिश्नर सिस्टम की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। इसे योगी आदित्यनाथ सरकार का बड़ा, कड़ा और साहसिक फैसला भी कह सकते हैं। यह नया सिस्टम प्रभाव में आने के बाद जिलाधिकारी के अधिकारों में कटौती होगी। साथ ही पुलिस कमिश्नर का रुतबा और अधिकार बढ़ेगा। अगर यह प्रयोग सफल हो गया तो कानून व्यवस्था सुधरेगी और अपराध नियंत्रण आसान होगा।
यूपी में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की कोशिश पिछले 40 साल से चल रही थी, पर कभी आईएएस लॉबी तो कभी सरकारी अड़ंगे के चलते यह संभव नहीं हो सका। इसके लिए न जाने कितनी कमेटियां बनीं और न जाने कितनी संस्तुतियां की गईं पर हर बार फाइल ठंडे बस्ते में डाली जाती रही। अब योगी सरकार ने धूल खा रही इस फाइल को निकलवाकर उस पर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए बड़ा फैसला लिया है। पहले चरण में इसे लखनऊ और नोएडा में लागू किया जाएगा।
इस तरह लखनऊ के पहले पुलिस कमिश्नर होंगे सुजीत पांडे और नोएडा के आलोक सिंह। ये दोनों ही आईपीएस को कई जिलों और पुलिस से जुड़े विभागों में काम करने का लंबा अनुभव है। इनकी गिनती तेज तर्रार और सुलझे हुए पुलिस अधिकारियों में है। इन दोनों पर इस नए सिस्टम को सफल बनाने की चुनौती है। इन्हें जिलों के आईएएस अधिकारियों से भी अच्छा तालमेल रखना होगा। दरअसल मानव स्वभाव है कि जब भी उसके अधिकारों में कटौती की जाती है, उसे कुछ झटका सा महसूस होता है। नए सिस्टम को आत्मसात करने, ढलने और आदत बनाने में कुछ वक्त जरूर लगता है। अब नए पुलिस कमिश्नरों को जिलाधिकारियों को साथ लेकर चलना होगा, उन पर छा जाने के बजाय सामजस्य बैठाना होगा और उन्हें यह विश्वास दिलवाना होगा कि वे कमतर नहीं हैं।
जिलाधिकारियों को भी नए सिस्टम में सहयोग करना होगा, यही वक्त की मांग है। उन्हें वर्चस्व की चिंता के बयाज यह विचार करना होगा कि नए सिस्टम में उनका किस तरह बेहतर सहयोग हो सकता है। बदलाव का विरोध बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए। यह नया प्रयोग है और इसमें सरकार के हर अंग से सहयोग अपेक्षित है। कई राज्यों में पुलिस प्रणाली लागू है और बेहतर काम कर रही है। पुलिस प्रणाली लागू होने के बाद जिलाधिकारी पर से काम को बोझ कम होगा। तब वे सरकारी योजनाओं को लागू करवाने, राजस्व इकट्टठा करवाने और जिले के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगे। यह सब करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय होगा।
दूसरी तरफ पुलिस की जवाबदेही बढ़ जाएगी। तब वह नहीं कह सकेगी कि जिला प्रशासन की वजह से चूक हो गई। नए सिस्टम में पुलिस कमिश्नर के पास जूडियशरी के कुछ महत्वपूर्ण अधिकार होंगे। गैंगेस्टर, गुंडाएक्ट, जिला बदर जैसे मामलों में निर्णय ले सकेंगे। शांतिभंग के मामले भी पुलिस कमिश्नर के पास जाएंगे। इन मामलों पर जमानत पर वह ही फैसला लेंगे। कानून व्यवस्था का पूरा जिम्मा होगा। कानून व्यवस्था और विवेचना का काम अलग-अलग पुलिस अधिकारियोंके बीच बांटा जाएगा। तब अपराध की विवेचना में तेजी आएगी और कोर्ट तक मामले जल्दी पहुंचेगे। तब न्याय में तेजी आएगी। जिलों में पुलिस के आंतरिक तबादलों के लिए फाइल डीएम के पास भिजवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बवाल के दौरान बल प्रयोग की अनुमति के लिए भी जिलाधिकारी के दस्तखत की जरूरत नहीं होगी। बार और हथियार के लाइसेंस पुलिस कमिश्नर जारी करेंगे। ट्रैफिक, अग्निशमन जैसे महत्वपूर्ण काम भी इनके पास होंगे। यह सब काम अब पुलिस कमिश्नर करेंगे। पुलिस कमिश्नर एडीजी (पुलिस अपर महानिदेक) रैंक का होगा। जाहिर है कि इतने वरिष्ठ अधिकारी के पास एक लंबा अनुभव होगा।
बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि नया सिस्टम कारगर रहा तो अन्य जिलों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो सकती है और यह होना भी चाहिये। नए सिस्टम की बड़ी चुनौती है जनता से पुलिस के बीच दूरी कम करना। विश्वास का मजबूत पुल बनाना। जिस दिन कोई निर्दोष बिना भय, बिना सिफारिश के थानों में जाकर अपनी बात कह सकेगा, उसे सुना जाएगा और समाधान मिलेगा, उस दिन समझा जाएगा कि बदलाव सफल हुआ। अधिकारों के सदुपयोग से व्यवस्था सुधरेगी और दुरुपयोग के नतीजे नुकसान करेंगे। फिलहाल इस नई व्यवस्था और सरकार के निर्णय पर संतोष जताना चाहिए। धर्य से नजर रखनी चाहिए कि इसके नतीजे क्या होते हैं। सरकार का दायित्व है कि इस नए सिस्टम पर पैनी नजर रखे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं…।