बड़ा कट्कटउआ जाड़ा है भइया, छिपे हैं सूरज दद्दा

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शैलेश अवस्थी

छह बजे सुबह सैर को निकला तो बियावान के बीच इस कदर धुंध छायी थी कि तड़के 4 बजे का भ्रम हुआ। तब तक पार्क में इक्का-दुक्का इंसानी आकृतियां ही नजर आईं। कोई ओवरकोट में तो कोई मुंह तक मफलर लपेटे तो कोई ट्रैक सूट में तेज चलने की कोशिश में था। बस्ती में कुछ महिलाएं एक हैंडपंप पर खड़ी थरथर कांप रही थीं। कनपुरिया शब्दकोश में इसे कहते हैं “कट्कटउआ जाड़ा”।

अखबार में आज के तापमान पर नजर डाली तो लिखा था, सूर्योदय 6.50 पर। लेकिन आसमान पर चौतरफा बदली ने सूरज की किरनों को रोक रखा था। इस कारण सर्द हवाएं मनमानी पर उतर आईं। दिन में 12 बजे तक भी धरती के आंगन में धूप नहीं उतरी थी। हर तरफ सर्दी पर ही चर्चा। कोई कह रहा था कि आज सीजन की सबसे कड़क ठंड है, किसी ने ज्ञान दिया कि इस बार जाड़ा सारे रिकार्ड तोड़ देगा तो कोई बचाव के नुस्खे बखान रहा था। चाय की उन दुकानों में भी भीड़ दिखी, जहां इस वक्त इक्का-दुक्का लोग ही नजर आते थे। आज का न्यूनतम तापमान 11.6 और अधिकतम 16.4 डिग्रीसेल्सियस रिकार्ड किया गया। इसी न्यूनतम और अधिकतम तापमान की नजदीकियों ने सर्दी के तेवर कड़े कर दिए। दरअसल पहाड़ों पर हो रही बर्फवारी और वहां से आ रही सर्द हवाओं ने सर्दी बढ़ा दी है। मौसम विभाग का अनुमान है कि अभी ठंड और बढ़ेगी।

सर्दी सबसे ज्यादा परेशानी हार्ट और सांस के मरीजों को होती है। ब्लड प्रेशर संतुलित रहना भी जरूरी है। ब्रेनस्टोक का खतरा होता है। डाक्टरों का मशविरा है कि खासतौर से बुजुर्गों को सतर्क रहने की जरूरत है। नसें जल्दी सिकुड़ती हैं और कमजोरी के कारण बीमारियों से लड़ना आसान नहीं होता। बुजुर्ग बहुत जरूरी हो, तभी सुबह और शाम बाहर निकलें। खूब पहन ओढ़ कर निकलें। मोजे, टोपी और मफलर जरूर पहनें।

खानपान का खास ध्यान रखें। ठंडी चीजों से परहेज करें। बथुआ, सोया-मेथी, गाजर, अदरख, लहसुन का सेवन करें। बाजरा, मक्के की रोटी खाएं। भुनी शकरकंद का भी कोई जोड़ नहीं। सुबह चाय के बजाय यदि अदरख, तुलसी, दालचीनी, लहसुन और शहद के मिश्रण का गरम पानी पीयें तो स्वाद के साथ स्वास्थ्य भी दुरुस्त रहेगा। रात को सोने से आधा घंटा पहले गुनगुने दूध से साथ जरा सा गुड़ ले लें, तो नींद भी जबरदस्त आएगी और हाजमा भी दुरुस्त रहेगा। जरा भी दिक्कत हो तो डाक्टर से संपर्क करें।

अपने कानपुर में एक कहावत प्रचलित है, “बच्चन से हम बोलित नाहीं, ज्वान लगैं सगभइया, बुड्ढन का हम छोड़ित नाहीं चाहे ओढ़ैं लाख रजइया..।“ बिल्कुल सटीक कहा भइया। तो बच्चन का धर्म है अपने बुजुर्ग की सुरक्षा करना। अगर लगे ठंड तो खाओ शकरकंद। गुड़, मेवा के साथ सोठ मिले लड्डू।

अब वो नजारे नहीं

याद कीजिये, सर्दियां शुरू होने से पहले ही ज्यादातर महिलाएं स्वेटर बुनती नजर आती थीं। आंगन या देहरियों पर आसपास की महिलाएं इकट्ठा होकर सुख-दुख बांटती थीं, किस्से कहानियां सुनाती थीं। अब तो फ्लैट कल्चर है। घरों के भीतर मोबाइल चलाती उंगलियों के बीच सिमट गए हैं रिश्ते-नाते।

याद कीजिये, छतें मिली होती थीं। पापड़ खूखा करते थे, रस्सी पर कपड़े फैले रहते थे, वहीं एक बाल्टी पानी धूप में गरम होने को रख दिया जाता था और फिऱ छत के एक कोने पर ही मालिश और स्नान। कभी पतंग उड़ाई जाती थी तो कभी छत पर किसी के इंतजार में शाम हो जाती थी।

याद कीजिये, फेरी वाले आवाज लगाते थे, “लइया-पट्टी, बड़ी करारी है रे”, “बड़ी भुरररर्रा गजक है”, “सिंघाड़े बड़े करारे”, “गुड़ की चाय गरम”, “भुनी शकरकंद”, “मूंगफली लो”, “लेडीलेसली ऊन, सुइटर सस्ते सस्ते, खिलौने ले लो खिलौने”, “जिनके होएंगे खिलइया, वही लेंगे चिरइया”, “एक रुपइया का चौबीस गज नारा ले जाओ”, “दो रुपिया गज कुतिया छाप मारकीन।“