पीके बहाना दिल्ली बिहार पर निशाना

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पीके के सहारे शाह का कई पर निशाना

भाजपा अध्यक्ष की रणनीति में फंस गये नितीश

केजरीवाल का चुनावी अभियान बना जदयू से बाहर जाने का कारण

अनीता सरस वाजपेयी

वैसे तो किसी नेता को किसी दल से बाहर का रास्ता दिखाना राजनीति में सामान्य घटना है लेकिन जेडीयू के उपाध्यक्ष व चुनाव प्रबंधन का काम देखने वाले प्रशांत कुमार का पार्टी से बाहर किया जाना राजनीति के गलियारे में आने वाले दशक की सबसे पहली व बड़ी राजनीतिक घटना बनकर रह गई। वैसे तो पीके को पार्टी से बाहर निकाला जाना एक पार्टी की मामला है लेकिन राजनीतिक गलियारे में इसके बहुंत से निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। राजनीति के जानकारों की मानी जाए तो पीके वैसे तो जेडीयू से निकाले गये लेकिन अगर चर्चाएं सही हैं तो इस घटना के माध्यम से भाजपा के चाणक्य ने एक तीर से कई निशाने साध लिये। राजनीति के धुर विरोधी अरविंद केजरीवाल को भी बैकफुट पर किया और बिहार की राजनीति में पिछली बार भाजपा को मात देने वाले जेडीयू के बड़बोले नितीश कुमार को भी घेर लिया। ऐसा कर भाजपा ने दिल्ली की सत्ता में आने की राह में  आ रहीं मुश्किले तो कम की हीं जल्द होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में सत्ता तक पहुंचने की अपनी राह भी आसान कर ली।

यह रही भाजपा के चाणक्य की रणनीति

पिछली बार जब केंद्र की सरकार में भाजपा पूरी ताकत के साथ आई थी इसके बाद हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने पूर्ण बहुंमत से जीत दर्ज कर भाजपा नेताओं के सिर पर  चढ़ी जीत की खुमारी को उतार दिया। यहां सत्तर विधायकों की विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 67 विधायक जीतकर पहुंचे और भाजपा नेता टापते रह गये। तमाम रणनीति और केंद्र में भाजपा की सरकार होने के बाद भी उसके विधायकों की संख्या पांच नहीं पहुंच सकी।

इसके बाद विधानसभा की सीट के हिसाब से सबसे बड़े प्रदेशों में एक बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ जिसमें कभी भाजपा के साथ रहने वाले जेडीयू के नितीश कुमार ने राजद के साथ समझौता कर चुनाव लड़ा। दिल्ली चुनाव में पराजय का मुंह देख चुकी भाजपा ने यहां चुनाव जीतने के लिये हर तरह की रणनीति अपनाई लेकिन इस बार बिहार में भाजपा के चाणक्य को मुंह की खानी पड़ी। इसका बड़ा कारण रहे चुनाव प्रबंधन का काम देखने वाले प्रशांत कुमार (पीके)। लोकसभा चुनाव में भाजपा के चुनाव प्रबंधन का जिम्मा उठा रहे पीके इस बार नितीश कुमार की अगुवाई में चुनाव लड़ रहे जेडीयू-राजद गठबंधन के चुनाव प्रबंधन का काम संभाल रहे थे। पीके की रणनीति के चलते भाजपा के किसी बड़े नेता की रैली के तुरंत के बाद नितीश कुमार उसी दिन पत्रकार वार्ता कर भाजपा नेताओं के चुनावी तीरों की धार के कुंद करने में भो करने में सफल रहे और कुछ समय पहले प्रचंड बहुमत के साथ केद्र की सत्ता में आई भाजपा को बड़े प्रदेशों में एक बिहार में पराजय का सामना करना पड़ा। यहां न मोदी का जादू चला न भाजपा के चाणक्य अमित शाह की रणनीति।

पीके ने संभाला आप का चुनाव प्रबंधन

राजनीति के जानकारों की मानी जाए तो इस बार भाजपा किसी भी तरह दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को हराकर सरकार में आना चाहती है लेकिन इस बार भी भाजपा की रणनीति में आड़े आ रहे हैं पीके। यह ऐसे हैं कि इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रशांत कुमार ने आम आदमी पार्टी के चुनाव के प्रबंधन का काम संभाल रखा है और शुरुआती सर्वे इस बात का संकेत दे रहे थे कि दिल्ली में एक बार फिर आम आदमी पार्टी सरकार बना सकती है। ऐसे में भाजपा के थिंक टैक ने दिल्ली चुनाव के पहले पीके को ही घेरने की तैयारी की भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि पीके को विवादित कर दिल्ली जीतने की रणनीति में आ रही बाधाओं को काफी हद तक खत्म किया जा सकता है।

निशाना बिहार पर भी

पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार में भाजपा को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पीके को नितीश कुमार की ही पार्टी से निकलवाने के बाद भाजपा ने नितीश और पीके के बीच दूरियां बहुंत ज्यादा बढ़वा दीं। राजद से नितीश की दूरी पहले ही काफी बढ़ चुकी हैं। रामविलास पासवान भाजपा के साथ हैं। ऐसे में भले ही पीके को जेडीयू से निकलवाने के लिये भाजपा ने भले ही बिहार चुनाव नितीश कुमार की अगुवाई में लड़ने का ऐलान कर दिया लेकिन अगर वर्तमान हालातों में भाजपा के विधायकों की संख्या जेडीयू से ज्यादा हो जाती है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिये भाजपा का रास्ता आसान हो जाएगा और नितीश कुमार पर दबाव बनाया जा सकता है कि जिस दल के विधायक ज्यादा मुख्यमंत्री उसी दल का। इसके साथ ही नितीश के लगातार दबाव के बोझ से भी भाजपा को बचाने में सफलता मिल जाएगी।