पवार के दोनों हाथों में लड्डू, शिवसेना खाली हाथ

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अवाक रह गयी कांग्रेस, उद्धव रह गये सन्न

19 में ही साध लिया 22 पर निशाना

निशंक न्यूज।

नई दिल्ली। राजनीति के घाघ खिलाड़ी शरद पवार की चालें समझ पाना महाराष्ट्र राजनीति की नयी पौध के लिए बहुत मुश्किल है। राजनीति का ये दिग्गज कब और कहां कौनसी चाल चलेगा यह समझ पाना हर किसी के बश की बात नहीं है। सरकार बनने के ताजा घटनाक्रम में राजनीति के इस मराठा क्षत्रप ने ऐसी चाले चलीं कि शिवसेना, कांग्रेस सरकार बनने के बाद अब अवाक रह गये। हलांकि पिछले एक माह से सरकार बनाने की चल रही कवायतों में कई बार ऐसा लगा कि शरद पवार ही वहां पर सक्रिय सारे राजनैतिक दलों को अपने हिसाब से खेल खिला रहे हैं।

दूसरी तरफ भाजपा भी इस मामले में बहुत संभल कर चल रही थी। लेकिन उसके कदमों की गति का नियंत्रण भी इसी मराठा क्षत्रप के हाथों में था। पार्टी ने अपनी रणनीति के तहत शिवसेना को बेनकाब करने और पूरे घटनाक्रम पर सिर्फ निगाह रखने की रणनीति पर ही काम किया। शाह खुद पूरे घटनाक्रम पर लगातार निगाह जमाए हुए थे। शिवसेना के रुख को देखते हुए भाजपा नेतृत्व ने तय कर लिया था कि सत्ता को लेकर शिवसेना जैसी वैचारिक पार्टी की भूख कैसी है, इसे बेनकाब किया जाए।

इसके मुताबिक ही सरकार गठन की आखिरी तारीख से एक दिन पहले तक भाजपा ने अपनी ओर से शिवसेना को मनाने की कोशिश का संदेश दिया। फिर 8 नवंबर को देंवेद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया। भाजपा की रणनीति राष्ट्रपति शासन की ओर जाने की थी । 

भाजपा नेतृत्व को सोमवार रात यह भनक लग चुकी थी कि तीनों दलों में सहमति बनने जा रही है। वे न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर बात करने के लिए समय चाह रहे थे, लेकिन यहां राकांपा ने राज्यपाल से और समय मांग लिया। इसके बाद महज तीन घंटे के भीतर राज्यपाल की सिफारिश से लेकर कैबिनेट की बैठक और राष्ट्रपति के दस्तखत तक हो गए। 

सूत्रों के मुताबिक राज्यपाल को दिन में ही चिट्ठी देकर राष्ट्रपति राज का मौका देना भी भाजपा-राकांपा की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा था, वरना राकांपा शाम तक की मोहलत के खत्म होने का इंतजार कर सकती थी। 

उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी से शरद पवार की 40 मिनट चली मुलाकात भी सरकार गठन के संकेत दे चुकी थी। मोदी-पवार की मुलाकात के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी। पूरी पटकथा इसी बैठक में बनी, लेकिन मोदी-शाह ने गोपनीयता बनाए रखी। राकांपा की ओर से अजित पवार भाजपा की ओर कदम बढ़ाएंगे, न कि शरद पवार। इसी फॉर्मूले पर काम तेज किया गया। भाजपा चाहती थी कि शिवसेना और कांग्रेस दोनों को बेनकाब किया जाए। इसलिए सत्ता के मुहाने पर लाकर शाह ने शह दी और शिवसेना-कांग्रेस मात खा गई।

राजनैतिक विशलेषकों की मानें तो  लोकसभा चुनाव के वक्त भी राकांपा से भाजपा नेतृत्व को गठबंधन करने का संकेत था, लेकिन बदले में शिवसेना को एनडीए से अलग करने की शर्त रखी गई थी। तब भाजपा ने मना कर दिया था। लेकिन शिवसेना के रुख से परेशान भाजपा को इस बार मौका मिला तो देर नहीं की।

वैसे शरद पवार ने अपने इस एक निशाने से जहां एक ओर अपनी पार्टी को राज्य में मजबूती देने का काम किया वहीं साथ हा साथ भविष्य के चुनावों के लिए एक जनाधार वाला साथी पकड़ने की कोशिश की है और एक बड़ी बात यह है कि शरद पवार राज्यसभा कार्यकाल 2022 में समाप्त हो रहा है। भाजपा को साथ लेकर उन्होने अपनी अगली संसदीय पारी सुनिश्चित करने को पूरी मजबूती दी है। क्योंकि केवल शिवसेना और एनसीपी के सहारे सदन में दोबारा पहुंचना बहुत कठिन दिखाई दे रहा था।