जुदा है दिल्ली चुनाव की तस्वीर

0
348

एक तरफ आक्रामकता तो दूसरी तरफ बेहद शांत

एक तरफ बड़ी सेना तो दूसरी तरफ वन मैन शो

एक तरफ राष्ट्रवाद तो दूसरी तरफ स्थानीय मुद्दे

शैलेश अवस्थी

अब नतीजे चाहे जो हों, लेकिन दिल्ली का चुनाव लंबे समय तक चर्चा विषय बनेगा। एक तरफ भाजपा की बड़ी विकराल की गर्जना तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी का केजरीवाल के रूप में वन मैन शो और उनका बेहद शांत अंदाज। एक तरफ आरोपों की बौछार तो दूसरी तरफ उन्हें मुस्कुराकर टाल जाना।

याद कीजिए, ये वही केजरीवाल हैं जो भाजपा और नरेंद्र मोदी का जिक्र एक सांस में कई बार करते थे। कुछ न कर पाने का पूरा दोष उन पर ही मढ़ देते थे। उन पर शब्दों के वाण हरदम चलाते थे। सोशल मीडिया में उनके हर तीर के निशाने पर मोदी ही होते थे, लेकिन पिछले एक साल के भीतर पूरा सीन ही बदल ही गया। कभी-कभी तो वह मोदी की तारीफ भी करते नजर आते हैं। वे तो यहां तक कहते हैं हम दोनों मिलकर दिल्ली को आगे बढ़ाएंगे। उन्हें बहुत उकसाया गया, लेकिन वह शांत रहे और मोदी पर हर सवाल को मुस्कुराकर टाल गए। इस सबसे लगता है कि वह शायद समझ गए हैं कि मोदी की आलोचना करके वह कुछ हासिल नहीं कर सकते, बल्कि नुकसान भी हो सकता है। इसीलिए उन्होंने रणनीति बदली और इसका इस चुनाव में उन्हें भरपूर फायदा भी मिला।

केजरीवाल समझ गए है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर वह घिर सकते हैं और इसीलिए पूरा चुनाव प्रचार दिल्ली तक ही केंद्रित रखा। वह भाजपा पर प्रहार के बजाय सिर्फ अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते रहे। प्रमाण और तथ्यों सहित अपना पांच साल का रिपोर्ट कार्ड आगे की गारंटी के साथ प्रस्तुत किया। स्कूल, चिकित्सा, यातायात, बिजली, पानी और बुजुर्गों की तीर्थयात्रा पर बात करते हैं। वह अपनी आलोचना का जवाब कर बहुत शांत होकर मुस्कुराकर जवाब देते हैं। किसी विरोधी नेता पर टिप्पणी नहीं करते। इस चुनाव की पटकथा खुद उन्होंने ही लिखी, वह ही उसके निर्देशक, निर्माता, डायलाग राइटर और अभिनेता हैं। हां, उनके खास संजय सिंह अपनी टीम सहित रणनीति में भागीदार हैं।

भाजपा की ओर से उन्हें आतंकवादी कहा गया तो केजरीवाल ने बड़े भावुक होकर कहा कि दिल्ली वालों क्या आपका बेटा आतंकवादी है। इसका शायद किसी हद तक असर भी पड़ा। वह शाहीनबाग मुद्दे पर यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि यह उनके हाथ में नहीं। कानून व्यवस्था और पुलिस का मामला है जो केंद्र सरकार के पास है। दूसरी तरफ भाजपा ने पूरा चुनाव लगभग शाहीनबाग मुद्दे पर लड़ा। कभी 370 हटाने की बात तो कभी तीन तलाक तो कभी राम मंदिर को आगे कर चुनाव कि बैतरणी पार करने की कोशिश करती रही। केजरीवाल की विकास उपलब्धियों को झूठा बताती रही, लेकिन इसका कितना असर पड़ेगा, यह तो 11 को ही पता लगेगा। भाजपा ने पूरा चुनाव आक्रामक लड़ा। भाजपा के 300 सांसद, 11 मुख्यमंत्री और न जाने कितने नेता इस चुनाव से जुड़े। गृहमंत्री अमित शाह तो डेरा ही डाले रहे। भाजपा ने इतनी मेहनत तो शायद किसी भी विधानसभा चुनाव में नहीं की। यही कारण है कि भाजपा ने यह चुनाव टक्कर पर खड़ा कर दिया। एक महीने पहले तक तो बयार पूरी तरह केजरीवाल की तरफ बह रही थी।

यह पहला चुनाव है जब एक तरफ विकास मुद्दा है तो दूसरी तरफ राष्ट्रावाद। यदि केजरीवाल की वापसी होती तो वह एक केस स्डटी और ट्रेंड सेटर बनेंगे। तब चुनाव के दौरान विकास भी बड़ा मुद्दा बना करेगा। नेता, मंत्री और जनप्रतिनिधियों को काम करना पड़ेगा और उनके रिपोर्ट कार्ड जनता बांचेगी और तब मुहर लगाएगी। विपक्ष को धार मिलेगी। विपक्ष का एक बड़ा नेता विकल्प के रूप में उभरेगा। बयानबाजी और छींटाकसी पर लगाम लगेगी। राजनीति में बदलाव आएगा। आम आदमी पार्टी की अहमियत बढ़ेगी और वह अन्य राज्यों में विस्तार कर सकती है। कांग्रेस की बात करेंगी तो लगता है कि वह गेम से बाहर है। कोई जीता भी तो उसकी व्यक्तिगत छवि ही काम करेगी। निश्चित रूप से 11 को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे इस तरह सुने और देखे जाएंगे, जैसे 20-20 क्रिकेट के लिए लोग बेताब रहते हैं।