दुनिया को हैरत में डाल दिया था इस किक्रेटर ने
शैलेश अवस्थी
जून 1983…। समूची दुनिया के क्रिकेट प्रेमियों की निगाहें इंग्लैंड में खेले जा रहे वर्ल्ड कप पर जमी थीं। फाइनल से पहले भारत का मुकाबला जिंबावे से था। जब मात्र 17 रन के स्कोर पर भारत का पांचवा विकेट गिर गया, कपिल देव बाथरूम में नहा रहे थे। वह फटाफट निकले और लगभग दौड़ते हुए क्रीज पर जा डटे। विश्व विजेता बनने के उनके जज्बे ने उनकी कलाइयां फौलादी कर दीं, गेंद भुनगे सी नजर आने लगी और फिर जो हुआ, उसने भारतीय क्रिकेट का इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया। कपिल देव ने 175 नॉट आउट बनाकर 266 का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया और जिंबावे को 31 रन से हराकर वर्ल्ड कप जीतने की मजबूत नीव रख दी। फाइनल में दो बार की चैंपियन वेस्टइंडीज को हराकर क्रिकेट में भारत को पहला वर्ल्ड कप दिलवा दिया। आज कपिल देव का जन्म दिन है और वह 61 साल के हो गए हैं।
तब सुनील गवास्कर जैसे दिग्गज खिलाड़ी को किनारे कर बीसीसीआई ने वर्ल्ड कप के लिए कपिल देव पर भरोसा जताया था। उन्हें कप्तानी सौंपी थी। कपिल देव ने इस चुनौती को अवसर बनाया और अपने साथी खिलाड़ियों की इस तरह हौसलाअफजाई की कि उन्होंने अपने समय की दिग्गज वेस्टइंडीज टीम को ढेर कर दिया। तब क्रिकेट में न तो इतना ग्लैमर था, न ही इतना पैसा और न ही इतने साधन। चकाचौंध भी नहीं थी। किसी को यकीन नहीं था कि यह टीम फाइनल तक पहुंच भी पाएगी। वह जमाना था इयान बाथम, रिचर्ड हेडली और इमरान खान जैसे गेंदबाजों का। इन सबके बीच कपिल एसा चमके कि सबको पीछे छोड़ दुनिया की आंखों का तारा बन गए।

कहते हैं कि जिनके हौसले बुलंद होते हैं, जिनमें विनम्रता होती है, जो अपनी नहीं, साथियों की सोचते हैं, देश की सोचते हैं, सिर्फ लक्ष्य की तरफ की आंख होती है, वे साधन-संसाधनों का रोना नहीं रोते। वह साधन-संसाधन खुद क्रिएट कर लेते हैं और फिर सफलता खुद उनके मेहनतकश कदमों की निशां तलाशती हुई उनके गले में विजय की माला पहनाती है। कपिल देव के बारे में एसा कहा जा सकता है। वर्ल्ड कप खेलने के दौरान कुछ खिलाड़ी तो घूमने-फिरने का प्लान बना चुके थे, उन्हें यकीन ही नहीं था कि उनके यश की पटकथा तैयार हो चुकी है। लेकिन कपिल देव को यकीन था और इसकी ठोस वजह भी थी। वह एसे कप्तान थे जो आगे बढ़कर जरूरत पर बल्ला और गेंद दोनों थामने की कुव्वत रखते थे। जब कपिल देव की टीम वर्ल्ड कप उठाकर मैदान में घूम रही थी, तब उसके साथ पूरा भारत गर्व से प्रफुल्लित था। टीम के स्वागत के लिए भारत में पलक पांवड़े बिछा दिए गए थे।
कपिल देव 1978 को क्वेटा में पाकिस्तान के खिलाफ डेव्यू किया था और आखिरी मैच न्यूजीलैंड के खिलाफ 19 मार्च 1994 को खेला। इस दौरान कुल 131 टेस्ट मैच खेले, 5248 रन बनाए और 434 विकेट लिए। 225 वनडे मैचों में 3783 बन बनाए और 253 विकेट लिए। आलराउंडर खिलाड़ी का यह रिकार्ड आज तक कायम है। कपिल देव का क्रीज पर होने का मतलब, रन बनने ही हैं। उन्हें खेलते हुए देखना मनोरंजन भी होता था। उनका नटराज शॉट बहुत दमदार और मशहूर था। गेंट हिट करते वक्त उनका एक्शन एसा होता था, जैसे नटराज की मुद्रा और फिर गेंद बाउंड्री के बाहर। कपिल देव अपने साथियों के बीच पा जी नाम से पुकारे जाते थे। सेविंग क्रीम के लिए उन पर फिल्माया विज्ञापन भी बहुत आकर्षक बन पड़ा था।

मैंने कपिल देव को कानपुर के ग्रीनपार्क में खेलते हुए देखा है। वह चाहे बल्लेबाजी कर रहे हों, या गेंदबाजी, उन्हें खेलते देखने का रोमांच जबरदस्त होता था। गर्ल्स पैवेलियन खचाखच भरा रहता था। स्कूल कालेजों में छुटटी कर दी जाती थी। पूरा स्टेडियम घंटे-घड़ियाल और शंख से गुंजाएमान हो जाता था। तब स्टेडियम में इतने सुरक्षा इंतजाम नहीं होते थे। इतने टेलीविजन चैनल नहीं थे। दूरदर्शन पर झिलमिल स्क्रीन पर मजा किरकिरा हो जाता था। हर कान ट्रांजिस्टर पर सटे रहते थे। कपिल देव को क्रिकेट प्रेमियों और देश ने जितना प्यार दिया, वह विरलों को ही मिल पाता है। उन्होंने जीतने का कौशल सिखाया और यही कारण है कि वह आज की पीढ़ी के भी चहेते क्रिकेटर हैं।
कपिल देव पर बन रही फिल्म-“83” भी खासी चर्चा में है। यह फिल्म वर्ल्ड कप 83 पर फोकस है। खास बात यह कि इसकी बहुत शूटिंग भी किक्रेट उन मैदानों में हुई है, जहां कभी कपिल देव ने चौवे-छक्के लगाए थे और अपनी गेंदबाजी से विश्व के महान बल्लेबाजों का नचाया था। यहां एक बतानी और जरूरी है कि कपिल देव में गजब का स्टैमिना था, वह तेज धावक थे और शायद यही वजह है कि वह कभी रन आउट नहीं हुए। जी हां, इसी तरह वह दुनियां के किसी भी किक्रेट प्रेमी के दिल से कभी आउट नहीं हो सकते। आने वाली पाढ़ियां शायद हैरान होंगी कि एक एसा भी कप्तान था, जिसने सीमित साधनों में भारत को विश्व में सबसे ऊपर खड़ा कर दिया। हैप्पी बर्थ कपिल देव, तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार…।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं….