जन्मदिन पर बहुत याद आ रहे हैं “नीरज“
शैलेश अवस्थी
वह जब गीत पढ़ता था, तो तरुणाई झूम उठती थी, संवेदनाएं मुखर हो जाती थीं, श्रोता मंत्र-मुग्ध हो जाते थे, लड़कियां कभी सुबकने लगतीं तो कभी सुध-बुध ही खो बैठती थीं। उसके गीतों में करुणा थी, दर्द था, बेचैनी थी, भक्ति थी, प्रेम था, उमंग था और जिंदगी थी। 90 साल की उम्र में भी लड़कपन था, बांकपन था, वह बड़े नाम वाला था, बदनाम भी हुआ, लेकिन 70 साल तक हरदिल अजीज रहा, या यूं कहें कि दिलों में राज किया।
यहां हम बात कर रहे हैं प्रेमगीतों के राजकुमार गोपालदास नीरज की। 4 जनवरी 1925 को इटावा के पुरावली गांव में पैदा हुए नीरज की जैसी जिंदगी रही, वैसा ही लिखा। उनके गीतों में दर्शन, अध्यात्म, भक्ति, प्रेम, विछोह, पीड़ा और विद्रोह की झलक है, जिन्हें पिरो दें तो एक सुंदर माला बनती है, जो सदियों तक जपी जाएगी। उनकी जिंदगी के सफर का एक बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव कानपुर रहा। वह उनका कड़े संघर्ष का दौर था। वह खुद मानते थे कि इस शहर में उन्होंने अपनी जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं लिखीं। “स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गए श्रृंगार सभी बाग के बबूल से…और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे, कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे”…,जैसे कालजयी गीत की रचना यहीं की।
नीरज जब मात्र छह साल के थे, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। उनकी मां की छाप उन पर पड़ी। मां भजन गातीं और भगवान की भक्ति में लीन रहतीं। नीरज भी बचपन में उनसे सुनते और भजन गाते। जीविका के लिए वह मेहनत-मजदूरी करते और स्कूल में पढ़ने भी जाते। छठीं क्लास में नेचर स्टडी के विषय में नीरज फेल हो गए। उदास नीरज आंखों में आंसू भरे शिक्षक के पास गए और मजबूरी बताते हुए कहा कि नंबर बढ़ा दें, वरना उनके पास दोबारा फीस भरने के पैसे नहीं हैं। शिक्षक ने कहा कि मैं नंबर तो नहीं बढ़ाउंगा, लेकिन तुम्हारी फीस भर दूंगा। कहा कि यदि अभी नंबर बढ़ा दिए, तो जिंदगी के हर मोड़ पर ग्रेस मार्क्स की जरूरत पड़ेगी। सीख दी कि हमेशा नंबर-वन रहना, जहां रहना नंबर-वन बनकर रहना, नंबर-2 की कोई जगह नहीं है तुम्हारे जीवन में। नीरज ने इस सीख को सिरमाथे लिया और फिर हमेशा प्रथम पास होते रहे।
प्रारंभिक शिक्षा के बाद कानपुर के डीएवी कालेज में उच्च शिक्षा ग्रहण की। जीवन यापन के लिए सड़कों पर कलम कापियां बेचीं, गंगा में गोते लगाकर पैसे निकाले, रिक्शा भी चलाया। 1942 में कवि सोहनलाल द्वेदी की अध्यक्षता में हुए कवि सम्मेलन में पहली रचना पढ़ी तो श्रोता “वंस मोर” कह उठे। इसके बाद दिल्ली में कविता पढ़ी तो उनकी ख्याति बढ़ी, लेकिन जीवन चलाने के लिए टाइपिस्ट की नौकरी की और फिर कुछ समय तक सूचनाधिकारी भी रहे। कवि काका हाथरसी के मशविरे पर नौकरी छोड़ दी और कवि सम्मेलनों पूरी तरह रम गए। इस बीच 1954 में लखनऊ रेडियो में कवि सम्मेलन में उनका पढ़ा गीत कारवां गुजर गया, सुनाया गया तो उनकी लोकप्रियता विदेशों तक फैल गई। यह गीत बाद में “नई उमर की नई फसल” फिल्म के लिए मोहम्मद रफी की आवाज में रिकार्ड किया गया।
1960 में नीरज मुंबई पहुंचे और निर्माताओं के अनुरोध पर फिल्मों में गीत लिखने शुरू किए। देखते ही देखते वह इंदीवर, साहिर, शैलेंद्र जैसे स्टार कवियों में शुमार हो गए। फिल्मों के लिए कोई डेढ़ सौ गीत लिखे और सभी हिट। मेरा नाम जोकर, शर्मीली, प्रेम पुजारी, कन्यादान, पहचान फिल्म में उनके लिखे गीतों ने धूम मचा दी। “मिलते हैं दिल यहां, मिल के बिछड़ने को”,…”ओ मेरी शर्मिली आओ न, तड़पाओ न”,…”बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं, आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं”,…”जैसे राधा ने माला जपी श्याम की, मैंने ओढ़ी चुनरिया तेरे नाम की”,….”शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब”,…”बादल बिजली चंदन पानी, एसा अपना प्यार”,….”जीवन की बगिया महकेगी,…दिल आज शायर है, गम आज नगमा है”,…”ए भाई जरा देख के चलो”,…”फूलों के दिल से, दिल की कलम से, तुझको लिखी रोज पाती”,…”रंगीला रे तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन, छलिया रे, न बुझे है किसी जल से ये जलन”,….”वो परी कहां से लाउं तेरी दुल्हन जिसे बनाउं”,…”देखती ही रहो प्राण दर्पण न तुम, प्यार का ये महूरत निकल जाएगा”,… “प्रेम के पुजारी हम हैं, रस के भिखारी”,…। जैसे गीत भला कौन भूल पाएगा।
फिल्मों से इतर जो नीरज ने लिखा, जितना लिखा, वो भी डूब कर लिखा। “इतना बदनाम हुए हम तो इस जमाने में”,…”खश्बू से आ रही इधर जाफरान की, खिड़की खुली आज फिर उनके मकान की”,…”तुम शहजादी रूपनगर की, मैं पीड़ा की राजकुंवर हूं, हो गया यदि प्यार, मिलन कहां होगा”,…”वहीं ढूंढना नीरज को जहां वालों, जहां दर्द की बस्ती कोई नजर आए”,…”ओ हर सुबह जगाने वाले, ओ हर शाम सुलाने वाले, इतना दुख देना था, तो फिर मुझे नयन मत देता”,…”आंसू जब सम्मानित होंगे, मेरा नाम लिया जाएगा”,…”हम तो मस्त फकीर”,…”शब्द झूठे हैं, सभी सत्य कथाओं की तरह, वक्त बेशर्म है वेश्या की अदाओं की तरह”,…”मौत मर जाती है पल भर के लिए, जब हाथों मैं जाम लेता हूं,”…”जब लौट के चले जाएंगे सावन की तरह, याद बहुत आएंगे प्रथम प्यार के चुंबन की तरह”,… “तुम चहल-पहल व्याहुली अटारी सी, मैं सूनापन विधवा के आंगन का”,…। इन गीतों में जीवन के हर रंग दिखते हैं।
नीरज ने मीर की गजलों को उसी अंदाज में चूमा, जैसे सूर के पद गुनगुनाकर झूमते थे। गीतों में उर्दू शब्दों का इस्तेमाल इस तरह किया कि यूं लगा जैसे इसके बिना गीत पूरा ही नहीं हो रहा। हिंदी गजल का नीरज ने अनोखा प्रयोग किया। वह हिंदू और उर्दू को एक जिस्म की दो आंख कहते थे। जब मैं अमर उजाला कानपुर में था, मैंने नीरज का इंटरव्यू लिया था, जो 14 फरवरी 2014 को वेलेंटाइन डे पर प्रकाशित हुआ था। इसमें नीरज ने अपनी जिंदगी के हर पन्ने खोल दिए थे। उन्होंने कहा था कि वह एक वक्त लेखिका कुंदन के प्यार में पागल हो गए थे। विछोह हुआ तो अवसाद में डूब गए। किसी तरह संभले। उस पर कई गीत लिखे। वह प्रेम को जीते थे, कद्रदान थे, उसका सम्मान करते थे। उन्हें प्रेमपत्र लिखने वाली लड़कियों की संख्या हजारों में थी।एक प्रशंसिका ने उन्हें इतने पत्र लिखे कि उस पर एक पूरी किताब बन गई।
उनके गीतों की संवेदना दिल को झझकोरने वाली है। कानपुर के केके कालेज में वह जब गीत पढ़ रहे थे, तब मैंने कुछ लड़कियों को सुबकते देखा। वे सम्मोहित थीं, मंत्रमुग्ध थीं। उनका फिल्मीकृत मृत्युगीत पढ़कर कुछ युवतियों ने तो खुदकुशी तक कर ली थी। उसके बाद उनका यह गीत प्रतिबंधित कर दिया गया था। कानपुर की डाक्टर चांद कुमारी से नीरज की नजदीकियां चर्चा में थीं। इस सवाल पर नीरज ने मुझे बताया था कि चांद को वह मां की तरह प्रेम करते थे, अपने गीतों का एक संग्रह उनके नाम कर दिया तो दुनियां ने आरोप जड़ दिए। कानपुर में विश्वमित्र समाचारपत्र के संपादक देवदत्त मिश्र ने उनकी बहुत मदद की। कानपुर की पाती में नीरज ने लिखा है…”जानती है मेस्टन रोड की सड़क, मेरी साइकिल ने कितने ट्यूब बदले हैं”…। नीरज का जीवन खुली किताब था। मंचों के पीछे जाम लड़ाने में कोई संकोच नहीं, बीड़ी के कश लेते हुए दर्शन, ज्योतिष और देश दुनिया पर बहस करते देखे जाते थे।
नीरज ने कविसम्मेलन को गांव से अमेरिका और कई देशों तक पहुंचाया। न जाने कितने लड़के, लड़कियों का रोमांस नीरज के गीत पढ़कर या सुनाकर या लिखकर परवान चढ़ा। उन्हें फिराक, जोश, जिगर, कतील जैसे शायरों का प्यार मिला तो दिनकर और हरिवंशराय बच्चन का सानिध्य भी। नीरज के गीतों में चांद, नदी, गांव, पनघट, जंगल, बिंदी, बादल, बिजली, चंदन, चांदनी, शबनम, मोती, सागर, गागर, चुनरी, आंचल, दुपहरी, छांव शब्दों का खूब जिक्र हुआ। 2018 में नीरज ने दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन उनके गीत अमर रहेंगे। एसे में दिनकर का एक गीत याद आ रहा है जो उन्होंने गीतकार की मृत्यु शीर्षक से लिखा था…
“जब गीतकार मर गया, चांद रोने को आया
चांदनी मचलने लगी कफन बन जाने को
मलयानिल ने शव को कंधे पर उठा लिया
वन ने भेजे चंदन श्रीखंड जलाने को…।“
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं…।