जब हेमा मालिनी संसद में बोलीं, बंदरों से बचाइये

0
965

चिराग पासवान और बंदोपाध्याय ने भी सुर मिलाए

सार्थक सवाल का सार्थक समाधान भी होना चाहिये

शैलेश अवस्थी

सर…। मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन में बंदरों ने बहुत उत्पात मचा रखा है। कभी किसी का चश्मा तो कभी किसी का बैग छीन कर नौ-दो ग्यारह हो जाते हैं। कभी दुकानों से खाने-पीने का सामान उठा लेते हैं तो कभी किसी पर इस तरह झपटते हैं कि उसे जान बचाना मुश्किल होता है। कुछ कीजिये ताकि मुसीबत बने इन बवाली बंदरों से छुटकारा मिले। बेहतर हो कि इनके लिए मंकी सफारी बनवा दीजिये। तब बंदर भी खुश और बांके बिहारी भक्त भी बेफिक्र हो जाएंगे।

यह व्यथा कथा मथुरा से सांसद हेमामालिनी ने कल संसद में सुनाई और स्पीकर से गुहार की कि इस बड़ी मुसीबत से निजात दिलाने का इंतजाम करवा दें। हेमा मालिनी ने मुस्कुराते हुए यह भी कहा कि यह आवाज वह बहुत संकोच और हिम्मत करके उठा रहीं हैं। डर था कि कहीं मजाक न बन जाए, लेकिन जब मथुरा वृंदावन में बंदरों की यह शरारत नजदीक से देखी तो उनसे रहा नहीं गया। हेमा के सुर में सुर मिलाते हुए लोजपा सांसद चिराग पासवान ने भी कहा कि बंदरों का आतंक इस कदर है कि वे तो अब घरों के भीतर घुस आते हैं। टीएमसी सांसद संदीप बंदोपाध्याय ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से लेने को कहा।

हेमा मालिनी को इस मामले में धन्य़वाद देना होगा कि उन्होंने यह बड़ी समस्या संसद में न केवल उठाई, बल्कि इसका समाधान भी बताया। न जाने कितने राजनेता और अफसर बांकेबिहारी के दरबार में माथा टेकने जाते हैं और बंदरों के उत्पात से दो-चार भी होते हैं, लेकिन उनके जेहन में कभी समाधान नहीं सूझा। मेरा अपना भी अनुभव है। मैं अपनी पत्नी के साथ वृंदावन गया था। पलक झपकते ही पहले पत्नी का पर्स और फिर मेरा चश्मा मेरी आंखों से झपट ले गया बंदर। यह देखकर वहां मौजूद कुछ लोग परेशान होकर अपने बैग और चश्मे संभालने लगे। उसी दौरान स्थानीय कुछ युवक ठहाके लगाने लगे। उसमें एक मेरे पास आया और फुसफुसाया कि आपका सब सामान वापस दिलवा देंगे, पर आपको 200 रुपये बंदरों के भोजन को देने होंगे। पत्नी से अनुरोध पर मैने 200 रुपये उस युवक के हाथ में रखे। उसने 10 रुपये की फ्रूटी खरीदी और छत की मुंडेर पर बैठे बंदरों को इशारा किया। वह बंदर उछलता कूदता पास के चबूतरे पर आया। जैसी ही उसे फ्रूटी मिली, उसने पर्स और चश्मा चबूतरे पर रखा और तत्काल तिड़ी हो गया। अब माजरा मेरी समझ में आ चुका था।

दरअसल उत्पाती बंदरों की आड़ में कुछ स्थानीय लोगों ने इसे धंधा बना लिया है। चालाक बंदर भी उन्हें पहचान गए हैं। उन्हें अपने पसंद की खाने-पीने की चीजें मिल जाती हैं और स्थानीय लोगों को बैठे-बैठाए नोट। मैंने दो दिन वृंदावन प्रवास के दौरान कई नजारे देखे। झपटा-झपटी में कभी कभी तो कोई जख्मी भी हो जाता है।

यह समस्या अकेले मथुरा, वृंदावन की नहीं है, कई धर्मिक स्थलों की है। अयोध्या, काशी, कानपुर ( पनकी हनुमान मंदिर) और यहां तक दिल्ली में भी। संसद परिसर में बंदरों से निपटने के लिए तो लंगूर की ड्यूटी लगाई गई थी। कानपुर में तो कई घटनाएं ऐसी हुईं कि बंदरों से बचने के चक्कर में लोग छत से कूद गए और उनकी जान चली गई। दरअसल जंगल खत्म होते जा रहे हैं। निर्माण के चलते लगातार पेड़ काटे जा रहे हैं। बंदर ही नहीं, कई और पशु-पक्षियों का भी यही हाल है। बंदर भोजन की तलाश में रिहायशी इलाकों में घुस आते हैं। भूख के कारण ये हिंसक हो जाते हैं। बुदेलखंड में अन्ना प्रथा के तहत न जाने कितने कमजोर गोवंश को बेसहारा छोड़ दिया जाता है और अब तो यूपी की यह एक बड़ी समस्या बन गई है। ये छुट्टा पशु कभी लहलहाती फसल नष्ट कर देते हैं तो कभी सड़कों पर दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।

ऐसे में हेमामालिनी ने यह सार्थक सवाल उठाया है और इसका सार्थक हल निकालना भी जरूरी है। इस पर राज्य सरकारों को भी कोई योजना तत्काल बनानी होगी, वरना संसद में उठाया गया सवाल फाइलों तक ही सीमित रह जाएगा। यूपी की योगी सरकार ने गोवंश के लिए कई गोशालाओं का निर्माण करवाया है, पर अभी यह नाकाफी है। उम्मीद की जाती है कि भगवान राम और हनुमान भक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्याथ अब बंदरों से बचाने के पुख्ता इंतजाम करेंगे। साथ ही बंदरों को सुरक्षित रखने के लिए कोई मुकम्मल योजना बनाएंगे।