बड़ा सवाल, क्या इसी तरह निर्मल रहेगी मोक्षदायिनी
नमामि गंगा परियोजना की समीक्षा, स्टीमर पर घूमे
प्रधानमंत्री के साथ रही मंत्रियों और अफसरों की टीम
शैलेश अवस्थी
कानपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद एसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने कानपुर में गंगा किनारे पूरी सरकार को खड़ा कर दिया और जवाबदेही के साथ तय किया अब गंगा को उसका वास्तविक स्वरूप लौटाएंगे। मोदी ने न सिर्फ नमामि गंगे परियोजना की गहन समीक्षा की, बल्कि खुद स्टीमर “बजड़ा” में आसन जमाया और उस पर कोई ढाई किलोमीटर चलकर गंगा पर विहंगम दृष्टि भी डाली। साथ में मौजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बड़े अफसरों से गंगा पर बात करते रहे। सबकुछ बड़ा सुहाना रहा। अब बड़ा सवाल यह है कि मोदी को दिखाने के लिए कानपुर की गंगा को जिस तरह संवारा गया, उस तक पहुंच रही हर गंदगी को रोका गया और घाटों को जिस तरह सजाया गया, क्या आगे भी सबकुछ एसा ही रहेगा ?
2014 में जब नरेंद्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ने पहुंचे तो गंगा की ओर मुखातिब होकर कहा था कि “मुझे मां गंगा ने बुलाया है। इन्हें फिर अविरल निर्मल करेंगे।“ इसके बाद “नमामि गंगे परियोजना साकार” हुई। इसी कड़ी में आज कानपुर में गंगा से कोई दो किलोमीटर दूर चंद्र शेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “नमामि गंगे परियोजना” की समीक्षा की। इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी के अलावा बंगाल और झारखंड के मुख्यमंत्रियों की प्रतिनिधि मौजूद थे। इसके अलावा केंद्र, राज्य के कई कैबिनेट, राज्य मंत्री, यूपी के कई कैबिनेट, राज्यमंत्रियों के अलावा नमामि गंगा परियोजना से जुड़े सभी बड़े अधिकारी मौजूद थे।

कोई डेढ़ घंटे चली बैठक के दौरान नरेंद्र मोदी के सामने नमामि गंगा परियोजना का प्रस्तुतीकरण किया गया। अब तक की प्रगति देख मोदी ने संतोष जताया और साथ ही आदेश दिया कि किसी भी हाल में इस परियोजना को पूरी तरह अंजाम तक पहुंचाना है। इसमें किसी भी हालत में कोताही नहीं बरती जाए। इसके बाद मोदी गंगा बैराज के अटल घाट पहुंचे। वहां वह वाराणसी से खासतौर पर मंगवाए गए बंजड़ा नाम के शानदार स्टीमर पर सवार हुए वहां पहुंचे जहां कभी 120 साल पुराना सीसामऊ नाला गिरता था। यह नाला कानपुर की गंगा के माथे पर दाग जैसा था। अब इस बदनाम नाले को बंद कर वहां अब सेल्फी प्वाइंट बना दिया गया है। योगी ने उन्हें इसकी विस्तार से जानकारी दी। गंगा पर सफर के दौरान मोदी कभी मुस्काते, कभी कुछ बोलते तो कभी चौतरफा नजर डालते रहे। आसपास घाटों पर दूर मौजूद जनता भी मोदी का वैभव और रूतबा देख कभी खुश तो कभी हैरान होती रही।
कानपुर में बहती फिलहाल अविरल, निर्मल गंगा को देख जहां मोदी गदगद थे, वहीं कनपुरिये हैरान थे। हैरान इसलिए कि अभी कुछ महीने पहले की ही तो बात है, जब गंगा में कालिमा दिखती थी, आचमन भी नहीं कर सकते थे, घाटों पर गंदगी पसरी थी, एक दर्जन नाले गंगा में अविरल गंदगी उड़ेल रहे थे। न जाने कितने कारखानों का जहर समा रहा था। लेकिन पिछले दो महीने से जिस तरह सरकारी टीम ने गंगा को निर्मल बनाने की रातदिन कवायद की, यह देख तो भगीरथ याद आ गए। इस पूरी सजावट, बनावट और दिखावट पर करोड़ों रुपये बहा दिए डाले गए। मोदी को खुश जो करना था और इसमें किसी हद तक सरकारी अमला सफल भी रहा। बांधों से हजारों क्यूसिक पानी कानपुर की गंगा के लिए छोड़ा गया, नालों को अस्थायी रूप से टैप कर दिया गया, घाटों की गंदगी को बटोरा गया और फिर मोदी के राहों पर चौतरफा फूल बिखेर दिए गए।
यह सब देख गंगा भी कुछ देर के लिए इतरा गई होंगी, पर अगले ही पल मायूस भी हो गई होंगी कि यह चांदनी कितने दिन की है ? सवाल है कि क्या कानपुर की गंगा वैसी ही निर्मल और घाट वैसे ही गुलजार रहेंगे, जैसे आज मोदी ने देखे ? क्या अफसरों की टीम गंगा की नियमित रखवाली अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करेंगी ? क्या हर उस गुनाहगार को सजा मिलेगी, जो गंगा की अविरलता और निर्मलता में बाधा बनेगा ? क्या नमामि गंगा परियोजना पूरी ईमानदारी, निष्ठा और आस्था से काम करेगी ? यदि एसा हुआ तो तय मानिये कानपुर मोदी को कभी नहीं भूलेगा और उनके लिए ताजिंदगी पलक पावंडे बिछाता रहेगा। तब निश्चित रूप से मोदी “आज के भगीरथ कहलाएंगे।“ यदि मोदी के कानपुर से जाने के बाद यह कहावत चरित्रार्थ हुई कि “गुजरा गवाही-लौटा बाराती” तो गंगा का मन दुखेगा और करोड़ों लोगों की आस्था चोटिल होगी। एक बार फिर कानपुर की जनता कहेगी कि यह सब प्रधानमंत्री को दिखाने का “सरकारी इवेंट” था।