क्यों भई चाचा, ना… भतीजा

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व्यंग्य

शैलेश अवस्थी

नेता बोल बहादुर के बड़े भइया चतुरगिरी ने उन्हें अपने पास बुलाया और राजनीति के गुणा-भाग समझाते हुए बोले कि देखो, मेरा यह विकट बिहारी यानी तुम्हारा दुलारा भतीजा राजनीति में शोध करने के बाद बड़ी उपाधि लेकर विदेश से लौटा है। इसकी बड़ी इच्छा है कि तुम्हारे काम में हाथ बटाएं। इस बार इसे टिकट देकर चुनाव में उतार दो और इसके कंधों पर भी जिम्मेदारी डालो ताकि ‘राजनीति पुराण’ नजदीक से पढ़े और हमारा नाम आगे बढ़ाए। बोल बहादुर दो मिनट के लिए पत्थर जैसे हो गए और फिर अपने को संभाला।

भारतीय राजनीति में भतीजों की ‘कटु कुशल कारीगरी’ देख रहे बोल बहादुर सकपका और घबरा गए। भाषणों में लंबी लंबी छोड़ने वाले बोल बहादुर को जैसे सांप सूंघ गया। भतीजा…..राजनीति में……यानी जीते जी अपनी राजनीतिक कब्र खुद ही खोदनी होगी। मन तो हुआ कि बड़े भइया से कह दें कि कौन भतीजा ? किसका भतीजा ? मेरा कोई भतीजा-वतीजा नहीं है, मैं नेता हूं, मुझे रिश्ते-नातों से क्या लेनादेना, मैं तो बस लेता हूं, देता कहां हूं। लेकिन बड़े भइया का पुत्र मोह और राजनीतिक हलकों में उनकी पक्की पकड़ के मद्देनजर बोल बहादुर कुछ उदास हो गए। पर अगले ही पल अपने चेहरे पर मासूम मुस्कुराहट के साथ बोले भइया, इतने काबिल विकट को राजनीति की गंदी मंडी में दाखिला क्यों दिलवा रहे हो। इसे तो कारोबार में उतारो। चतुरगिरी बोल बहादुर की चतुराई समझ गए और व्यंग्य वाण चलाया, हां भई सच है, कुछ मेरे पाले विषधरों ने ही तो गंदगी फैलाई है। तभी तो कह रहा हूं कि आस्तीन के सांपों के सफाए के लिए विकट की इंट्री जरूरी है।

चतुरगिरी छोटे भाई के चेहरे पर पसीने की बूंदें देख सहजता का नाटक करते हुए बोले, अरे घबरा क्यों रहे हो, ये वैसा नहीं है, इस भतीजे पर भरोसा करो, तुम्हें मजबूती देगा, अपने पुरखों की बनाई पार्टी की कमान घर में ही रहे तो इसमें तुम्हें खुश होना चाहिये। अब बोल बहादुर अड़ गए और उनके मुंह से कष्टित स्वर फूटा, नहीं….नहीं…..नहीं, इसकी जगह सौ-पचास और वरदान मांग लो पर विकट को हमसे दूर ही रखो…उफ। इतना कहकर वह बिना भतीजे की तरफ नजर डाले, वहां से ईईईईईईई….करते निकल गए। चिंता में सभी कार्यक्रम में रद कर दिए और तांत्रिक जड़ियल स्वामी के पास पहुंच गए। उनके चरणों पर सिर रखकर बोले, तत्काल ‘भतीजा मुक्ति हवन’ कीजिये, वरना कहीं ऐसा न हो कि वह पार्टी पर कब्जा कर बुढ़ौती में हमें गुमनामी की अंधेरी गलियों में पटक दे।

मौका ताड़ तांत्रिक जड़ियल ने इधर तो बोल बहादुर से आर्शीवाद की मुद्रा में कहा कि जाइये और चैन की नींद सो जाइये। उनके वहां से विदा लेते ही भतीजे को संदेश भिजवा दिया कि चाचा आए थे। तुम्हें निपटाना चाह रहे हैं। बचाव चाहिए तो ‘गच्चा यज्ञ’ करवा लो, यही उसकी काट है। यानी चाचा और भतीजे दोनों सेट। उधर, बोल बहादुर अड़ियल की महिमा पर भरोसा कर चैन से सो गए और कुछ देर बाद अर्धबेहोशी में ही बड़बड़ाने लगे। मैं तो तबाह हो गया….वर्षों की कमाई चौपट हो गई…. ले गया….ले गया… ले गया। दौड़ कर पत्नी आईं और बोल बहादुर को जोर से हिलाया और तब वह हकबका कर उठ बैठे। पसीने-पसीने हो गए। चीखने लगे विकट बागी हो गया, बागी हो गया, मैं तो खतम। पत्नी ने जोर से चकोटी काटी और चीखी होश में आओ नेताजी। बोल बहादुर ने इधर, उधर देखा, दो घूंट पानी पीया और तब समझे में आया कि भयानक सपना देखा था। पत्नी से बोले सपने में देखा कि विकटवा ससुरा बागी हो गया। वह हमारे विधायकों के साथ पांच सितारा होटल में दावत उड़ा रहा है। कल तक मेरे साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले मेरे ही दल के नेता मेरे ही खिलाफ सूबेभर में पोस्टर लगा रहे हैं। हाय दइया, ये क्या हो रहा है। पत्नी ने आंखें गोल-गोल घुमाईं और बोलीं, तड़के का सपना है, सच न हो जाए।

बस, फिर बोल बहादुर जी को नींद नहीं आई। तत्काल नहाया और पूजा में बैठ गए। आरती की लौ पर हथेली रखकर कसम खाई कि चाहे जान चली जाए, भतीजे को कभी पार्टी दफ्तर की चौखट में कदम नहीं रखने दूंगा, चाहे भइया नाराज हों या भौजी। वो नौबत नहीं आने दूंगा कि मेरी बेटी को अपने व्हाट्सअप स्टेटस पर रोता हुआ मैसेज डालना पड़े। वो वक्त नहीं आने दूंगा कि भतीजा मेरे खून-पसीने से सींची हुई पार्टी से मुझे रूखसत कर दे। उसे मौका ही नहीं दूंगा कि वो मुझसे अलग दल बनाकर सत्ता के लिए किसी और से हाथ मिला ले। अब बोल बहादुर ‘राजनीति में भतीजों से मिलीं दर्द कथाएं’ नामक पुस्तक लिख रहें हैं। उनका तर्क है कि राजनीति के बाजार यह पुस्तक ‘बेस्ट सेलर’ बनेगी। आमीन…।