क्यों नहीं तोड़ सके केजरी की “वॉल”

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यूं हुआ दिल्ली चुनाव में चमत्कार

शैलेश अवस्थी

दिल्ली के चुनाव से ज्यादा चर्चा अरविंद केजरीवाल और उनके राजनीतिक कौशल की हो रही है और आज के माहौल में यह जरूरी भी है। एक तरफ तन, मन और धन के साथ गन की भी बात, तो दूसरी तरफ सिर्फ काम की बात। राजनीतिक पंडित भी चकित हैं केजरीवाल के चमत्कार से। न तो अंकगणित काम आई, न तो अर्थशास्त्र और न ही केमिस्ट्री।

भारत के राजनीतिक इतिहास में पहली बार हुआ कि जब कोई दल दोबारा इतने जबरदस्त बहुमत के साथ सत्ता में आया हो और वह अभी अपने खुद के दम पर। याद कीजिए एक तरफ भाजपा के 50 केंद्रीय मंत्री, 250 से अधिक सांसद, पांच मुख्यमंत्री और न जाने कितने नेता। कभी देश के गद्दरों को, गोली मारो……,हिंदुस्तान-पाकिस्तान का मुकाबला, करंट शाहीनबाग तक, जैसी आक्रामक भाषा इस्तेमाल की गई तो कभी केजरीवाल को आतंकवादी तक कह डाला गया। कभी उन्हें बेईमान कहा गया तो कभी झूठा। कभी उन पर दिल्ली को बरगलाने के आरोप लगे तो कभी नकारा साबित करने की कोशिश की गई।

इन सब के बीच केजरीवाल ने संयम नहीं खोया, वह बिल्कुल मजबूत दीवार जैसे इरादे लिए अपने विकास के एजेंडे से चिपके रहे। नेता वही जो जनता की नब्ज समझ ले और केजरीवाल इसमें सफल रहे। वे समझ गए थे कि मोदी की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि यदि उनके समर्थकों को नाराज कर दिया तो दिल्ली हाथ से निकल जाएगी। उन्होंने कभी भी मोदी का जिक्र ही नहीं किया। कई मौकों पर उनकी तारीफ करते देखे गए और उनका यह सूत्र काम कर गया। वह कहते रहे कि दिल्ली का बेटा तो केजरीवाल है। दूसरी बात यह कि वह उन्होंने हिंदुत्व का चोला इस सफाई से पहना कि भाजपा की तरकश से यह तीर भी चुपके से निकाल लिया। वह हनमान चालीसा पढ़ते दिखे, हनुमान मंदिर जाते दिखे, लेकिन शाहीनबाग मुद्दे पर गृहमंत्री को जिम्मेदार बताते रहे और यह समझा ले जाने में वह सफल भी रहे।

दिल्ली के मुस्लिम मतदाता समझ गए थे कि विकल्प तो केजरीवाल ही हैं और इसी कारण कांग्रेस से बिल्कुल किनारा कर लिया। इसका फायदा केजरीवाल को मिला। वह मुसलिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार के लिए भी कम ही गए। वहां कमान मुसलिम नेताओं और प्रत्याशियों ने संभाली और बंपर जीत मिली। केजरीवाल ने आतंकवादी के आरोप की काट भावनात्मक हथियार से की। वह बोले मैं दिल्ली का बेटा हूं। क्या कोई बेटा बच्चों को शिक्षा दिलवाता है, क्या तीर्थयात्रा करवाता है, क्या बिजली-पानी का इंतजाम करता है, क्या इलाज करवाता है। यह मार्मिक बातें काम कर गईं।

केजरीवाल और उनकी टीम सिर्फ अपने काम प्रमाण सहित गिनाती और दिखाती रही। वह बताते रहे कि यदि विकास का पहिया इसी तरह चलाते रहना है तो आम आदमी पार्टी को जितवाना जरूरी है। वह बिल्कुल शांत रहे। हर वार का जवाब मुस्कुरा कर शांत होकर देते रहे। किसी भी बाहरी नेता को प्रचार के लिए नहीं बुलाया। न तो किसी फिल्म स्टार की मदद ली और न ही किसी विपक्षी दल के नेता की। यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही केजरीवाल हैं तो भाजपा के लिए कभी जहर उगलते थे। पानी पी-पी कर मोदी को कोसते थे। उनके बदले रूप और रणनीति ने दिल्ली चुनाव की फिजा उनके हक में कर दी। दिल्ली वालों की केमेस्ट्री केजरीवाल से बन गई। इसकी काट भाजपा बिल्कुल नहीं कर पाई। भाजपा का चुनाव प्रचार शाहीनबाग, अनुच्छेद 370, तीन तलाक और राम मंदिर के इर्द-गिर्द ही रहा।

इस एतिहासिक जीत के बाद केजरीवाल राजनीति के आकाश में वह चमकते सितारे हैं, जिस तक पहुंचने के लिए हर कोई सपना देख रहा है। वह ट्रेंड सेटर बनकर उभरे हैं। धर्म, जाति, बयानों, आरोपों और प्रत्यारोपों की राजनीतिक करने वाले नेताओं को विचार करना होगा। उन्हें अपनी रणनीति बदलनी होगी और शायद यह भारतीय राजनीति के लिए बेहतर होगा। अच्छा हो कि हर दल और नेता काम के आधार पर प्रतिस्पर्धा करे, जनता के बीच रहे, उसकी तकलीफ, दिक्कतें करीब से समझे, उसे अपनेपन का अहसास दिलवाए, अपने घर के दरवाजे हमेशा खुले रखे। राजाओं की तरह नहीं, लोकतंत्र में सेवक की तरह वर्ताव करे और सरल सुलभ हो। जनता पर पैठ और भरोसा बनाने के लिए लोभ, मोह छोड़ना होगा और तब जनता नेता को सिरआंखों पर बैठाएगी बिल्कुल अरविंद केजरीवाल की तरह….।