कांग्रेस को फिर याद आया कानपुर

0
477

सत्ता की वापसी के लिए बड़े आंदोलन का आगाज होगा

शहर अध्यक्ष पर के दावेदार भीड़ इकट्टा करने के लिए जुटे

निशंक न्यूज

कानपुर। सूबे की सत्ता में वापसी का सपना देख रही कांग्रेस ने इस कवायद का आगाज एक बार फिर कानपुर से ही करने की पुरजोर तैयारी की है। इस कड़ी में 2 दिसंबर को जनता से जुड़े मुद्दों पर योगी सरकार के खिलाफ बड़े प्रदर्शन के जरिए अपना दम दिखाना चाहती है। इसके लिए पार्टी के पदाधिकारियों और नेताओं को रूपरेखा बता दी गई है। वे कार्यकर्ताओं को मोटीवेट कर रहे हैं। शहर अध्यक्ष के दावेदारों से कहा गया है कि ज्यादा से ज्यादा भीड़ लाएं ताकि उनके आवेदन पर खासतौर पर विचार किया सके। इतिहास गवाह है कि जब-जब कांग्रेस पर संकट आया, राष्ट्रीय नेतृत्व ने पार्टी को फिर से खड़ा करने और सत्ता तक पहुंचने के लिए सरकार के खिलाफ कानपुर से ही बिगुल फूंका।

किसी जमाने में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का डंका बजता था। वह अपराजेय समझी जाती थी। पर 28 साल पहले जो दुर्दिन शुरू हुए, उससे अभी तक नहीं उबर सकी है। यह भी सही है कि कांग्रेस सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। अब प्रियंका गांधी ने यूपी पर फोकस किया है और वह नए सिरे से पार्टी को खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं। अजय कुमार लल्लू को प्रदेश की कमान सौंपकर वह उनसे लगातार संपर्क में हैं। लल्लू ने जिलों के दौरे शुरू कर दिए हैं। मुद्दों पर मुखर भी हैं। जनसंपर्क कर रहे हैं, लेकिन हर दिन कभी गुटबाजी तो कभी अडंगेबाजी उनके सामने चुनौती बनकर खड़ी हो जाती है। अब 2 दिसंबर को कानपुर में बड़ी भीड़ जुटाकर ताकत दिखाने की कोशिश की जाएगी। तय हुआ है कि तिलकहाल से जुलूस निकलेगा, जो मेस्टन रोड, नई सड़क, परेड, बड़ा चौराहा होते हुए सिविल लाइंस मंडलायुक्त कार्यालय पहुंचेगा और यहां सरकार को संबोधित ज्ञापन सौंपा जाएगा। इसमें जनसमस्याओं का जिक्र होगा।

जब इंदिरा गांधी आईं

बात 1977 के बाद की है, जब आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली। इंदिरा गांधी खुद चुनाव हार गईं। तब 1978 में कनपुर का अधिवेशन हुआ, जिसमें सभी बड़े नेताओं ने शिरकत की। यहीं से सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका गया। इंदिरा गांधी ने पदयात्रा भी की। उस वक्त कांग्रेस को शहर अध्यक्ष नरेश चंद्र चतुर्वेदी थे। कांग्रेस ने 1980 में फिर वापसी की। इंदिरा गांधी फिर प्रधानमंत्री बनीं और विश्वनाथ प्रताप सिंह यूपी के मुखमंत्री। इसी दौरान आरिफ मोहम्मद खान भी जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

राजीव गांधी को भी दौड़े आए

1989 में कांग्रेस के फिर बुरे आए। बोफोर्स मुद्दे पर विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस से अलग हो गए और विपक्ष का नया कुनबा बनाने के सूत्रधार बने। वह प्रधानमंत्री बन गए और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। तब राजीव गांधी कानपुर आए। सुबह उनकी पदयात्रा शुरू हुई और फिर कब शाम और रात बीत गई पता ही नहीं चला। हजारों की भीड़ उनके स्वागत को रात भर इंतजार करती रही थी। वह अपने कपड़े भी लेकर नहीं आए थे। तब श्रीप्रकाश जायसवाल ने उन्हें अपना कुर्ता दिया था। इसके बाद राजीव गांधी तो नहीं रहे, लेकिन 1991 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री बने।

कानपुर की बड़ी भूमिका

स्वतंत्रता के बाद हो या पहले कानपुर की कांग्रेस के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका रही। स्वतंत्रता से पहले गणेश शंकर विद्यार्थी यहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने। कानपुर के  श्रीप्रकाश जायसवाल भी इस कुर्सी पर बैठे। अब एक बार फिर कांग्रेस को कानपुर की याद आई है। भीड़ जुटाने के लिए खासतौर पर शहर अध्यक्ष की कुरसी के दावेदारों को टारगेट दिए गए हैं। जो ज्यादा भीड़ लाएगा, उसकी अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी की जा सकती है और इस ‘ऑफर’ पर सब जुट भी गए हैं।