ऐसे कैसे चलेगी, बढ़ेगी और लड़ेगी कांग्रेस

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पुर्नगठन की कवायद की धीमी, गुटबाजी तेज

शैलेश अवस्थी

यूपी में अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही कांग्रेस अभी तक जिलों में कमेटियों के पुर्गठन का काम भी पूरा नहीं कर सकी है। फ्रंटल संगठन तो किस बियावान में विलीन हैं, कोई बताने वाला ही नहीं है। इस बीच गुटबाजी ने पार्टी नेतृत्व की नाक में दम कर रखा है और इससे निपटने की कोई ठोस कार्ययोजना भी नहीं दिख रही है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यदि अब संगठन को नहीं संभाला गया तो यह टुकड़ा-टुकड़ा होकर बिखर सकता है।

हालिया लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी को महासचिव बनाकर यूपी में डेरा जमाने के लिए भेजा गया, तो कार्यकर्ताओं में नया जोश उभरा। किसी ने प्रियंका गांधी को इंदिरा गांधी का अवतार कहा तो किसी ने उन्हें परिवर्तन का शुभ मुहूर्त। उम्मीद की नाव पर सवार कार्यकर्ता एक बार फिर निकल पड़े और चुनाव नतीजे आते ही नाव फिर हिचकोले लेने लगी। कुछ दिन खामोशी के बाद प्रियंका गांधी ने अचानक आक्रामक रूख दिखाया और यूपी सरकार को कुछ मुद्दों पर घेरने की कोशिश की। एलान कर दिया कि वह अब यूपी छोड़कर जाने वाली नहीं हैं, यहीं प्रवास करेंगी, नए सिरे से रणनीति बनाएंगी और कांग्रेस की वापसी तक चैन की सांस नहीं लेंगी। लखनऊ में आवास भी तय दिया।

इसी बीच विधायक अजय कुमार लल्लू को उत्तर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। नए पुराने कई नेताओं को आशा थी कि उन्हें सूबे की कमेटी में दमदार पद दिए जाएंगे, लेकिन प्रियंका ने तय किया कि नए युवा चेहरों को तरजीह दी जाएगी, कमेटी छोटी होगी और एसा ही हुआ भी। बस टसल यहीं से शुरू हो गई। ओहदे के लिए ललक रहे नेताओं ने काम शुरू कर दिया, धड़े बनने लगे, कान भरे जाने लगे, दिल्ली में बैठे कांग्रेस के कुछ “स्टार लीडर” भी सक्रिय हो गए और कटाजुज्झ शुरू हो गई। अनुशासनहीनता में निष्काषित किए गए 11 नेताओं ने तो सीधे आलाकमान को ही चुनौती दे डाली। यहां तक कह दिया कि प्रदेश नेतृत्व ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया और खुद अनुशासनहीनता की। एक तरह से यह सीधे प्रियंका गांधी को चुनौती है। ये नेता अब सोनिया गांधी से गुहार लगा रहे हैं और इससे पता चलता है कि कांग्रेस में किस तरह धड़ेबाजी है।

इस सबके बीच जिला कमेटियों के गठन की कवायद मंद पड़ गई। कुछ जिलों में तो विवाद इस कदर है कि खुद प्रियंका गांधी को सीधे हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। कानपुर शहर की कमेटी के दावेदारों के बीच इस तरह खींचतान चली कि प्रियंका गांधी ने खुद इन सबको तलब किया। सबसे बात की और उनकी सुनी। उनके सामने ही कुछ दावेदारों ने दिल्ली में राजनीति करने वाले कुछ बड़े स्थानीय नेताओं को हार के लिए कसूरवार ठहरा दिया। इसके बाद लगा कि शहर कमेटी का नया अध्यक्ष घोषित हो जाएगा, पर एक महीना बीतने को है, इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ।

संगठन में व्यवस्था के मद्देनजर कांग्रेस की प्रदेश में 124 जिला समितियां हैं, इसमें अभी सिर्फ 64 ही घोषित हुई हैं। अभी 60 जिला और शहर अध्यक्ष घोषित होने हैं। कांग्रेस की आत्मा सेवादल, महिला, युवा, सहित कई फ्रंटल इकाइयों की कुर्सियों में दीमक लग गई है, कोई अरसे से इनमें नहीं बैठाया गया है। इन सभी मुद्दों पर कोई नेता कुछ बोलने से बच रहा है। हां, वे जरूर मुखर हैं, जिन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। सवाल यह है कि बिना मजबूत संगठन कांग्रेस, भाजपा का गढ़ बन चुकी भाजपा से कैसे लड़ेगी। इसके लिए संगठन की ताकत के साथ हौसला, शौर्य, समर्पण, त्याग औऱ तपस्या चाहिए। क्या अब पार्टी में एसे नेता बचे हैं ? हां, समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है, लेकिन नगाड़खाने में तूती की आवाज कौन सुने।

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