मोदी के मंत्र पर भारी पड़ रहा “जुगाड़तंत्र”
ऐसे तो नहीं धुलेंगे पाप, मिल सकता श्राप
शैलेश अवस्थी
गंगा मां के बेटे को खुश करने के लिए सूबे की समूची सरकार दिन-रात जुटी है। दिल, दिमाग और दौलत खपा रही है। गंगा की तरफ जा रही गंदगी पर अस्थायी पैबंद पैबस्त किए जा रहे हैं, ताकि वह कम से कम 24 घंटे तो अपने पुत्र की आंखों को सुकून दे सके। साथ ही सरकारी अफसर भी छाती ठोंक के कह सकें देखिए, हमने आपकी मां को किस तरह चंगा कर दिया है और अब वह कि फिर अविरल और निर्मल हैं। मां का दिल तो मोम सा होता है, वह पिघल जाएगी और बेटे से कोई गिला-शिकवा नहीं करेगी। लेकिन क्या बेटा अपनी मां के अंतरमन में उतर कर उसकी मुस्कान में छिपे दर्द को समझ सकेगा?
याद कीजिए 2014 को जब नरेंद्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ने पहुंचे थे तो बहुत भावुक होकर गंगा की तरफ देखकर कहा था कि “मुझे मां ने बुलाया है। उसकी परवाह करना, सेवा करना और फिर से अविरल-निर्मल करना मेरा धर्म है।“ मां तो मां होती है, उसने मोदी को दिल से आर्शीवाद दिया और मोदी प्रधानमंत्री की कुरसी पर जा विराजे। शायद मोदी समझ गए यह सब गंगा मां के आशीष से संभव हुआ है। उन्हें वाराणसी के उस पवित्र तट पर किया गया अपना वादा याद रहा और तत्काल “नमामि गंगे” योजना को धरातल पर उतार दिया। गंगा के कायाकल्प का काम तेजी से शुरू हुआ। मां के लिए कोई लायक बेटा कहीं खजाने का मोह करता है। खोल दिया कोषागार और प्रण किया कि मोक्षदायिनी का स्वाभाविक स्वरूप जरूर लौटाएंगे।
किस्मत ने कुछ एसा साथ दिया कि यूपी में भी मोदी के दल की सरकार बन गई है और गंगा मां का एक और भक्त इस सूबे की सबसे ऊंची कुरसी पर बैठ गया। कुंभ में कुछ अस्थायी और कुछ स्थायी प्रयोजन करके उसने गंगा को आचमन लायक तो बना ही दिया, लेकिन कुछ दिन बाद हालात फिर जस के तस होने लगे। प्रयागराज में भी न जाने कितने नाले अभी भी गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं, जिन्हें मोड़ने की सरकारी कोशिश की जा रही है।

यही हाल कानपुर में बह रही गंगा का भी है। कई नाले रोज लाखों लीटर गंदगी से गंगा को बदरंग कर रहे हैं। इन नालों को मोड़ने का “अस्थायी जुगाड़” किया जा रहा है। परमिया नाला कितनी गंदगी बहा रहा है। मैगजीन घाट, रानीघाट, गोलाघाट, सत्ती चौरा, डबका, वाजिदपुर नाला अविरल गंदगी गंगा में बहा रहा है, जिसे रास्तों में गड्ढे बनाकर या फिर बड़े पाइप डालकर सीवर लाइनों की तरफ मोड़ा जा रहा है। जिस सीसामऊ नाले को स्थायी रूप से टैप करने का दावा किया था, वह भी गाहे-बगाहे करोड़ों लीटर गंदगी गंगा में धकेल देता है। गंगा तटों पर बनी बस्तियों में गड्ढा शौचालयों की गंदगी भी सीधे गंगा में समाती रही है। जरूरत के मुताबिक शौचालयों का न बनाया जाना भी गंगा के लिए बड़ी समस्या है। दक्षिण क्षेत्र के कई बड़े मोहल्लों में अभी तक सीवर लाइनें ही नहीं हैं। पिछले चार दशक में गंगा को निर्मल करने के नाम पर कई हजार करोड़ रुपये बहा दिए गए पर कई जगह तो हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ गए। भ्रष्टाचार की न जाने कितनी जांचें दफन हो गईं, न जाने कितनी सरकारें बदल गईं और न जाने कितनी परियोजनाएं बनीं और बिगड़ीं।
अब एक बार फिर नरेंद्र मोदी से उम्मीद है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या सिर्फ उन्हें दिखाने के लिए ही पूरी कवायद है ? पिछले एक महीने से सरकारी महकमा गंगा को संवारने, तटों को सजाने में जुटा है। बांधों से 12 हजार क्यूसिक पानी गंगा में छोड़ा गया है ताकि दाग धोए जा सकें। 14 दिसंबर को मोदी के आने तक कई हजार क्यूसिक पानी और छोड़ा जाएगा ताकि गंगा अपने उद्गम स्थल जैसी सुंदर दिखे। शानदार मोटर वोट मंगवाई गई है, जिस पर सवार मोदी गंगा पर चौतरफा नजर डाल सकें। शुरुआत अटल घाट से करेंगे तो उसे सजाने के लिए खास किस्म के पत्थर मंगवाए गए हैं। रातोरात फर्श तैयार किया गया है। कुछ समय के लिए ही सही, गंगा कितना गर्वान्वित हो रही होंगी, अपने पुत्र के रुतबे पर। डर से ही सही, जिम्मेदार महकमा जुटा तो है। एसा नहीं कि मोदी सब समझते न हों, लेकिन यह भी सच है कि कुछ न कुछ तो गंगा में हलचल है, कुछ न कुछ तो हो रहा है। गंगा का मोल समझ आ रहा है। महकमे को भी शायद समझ आ गया है कि गंगा से गुनाह किया तो पाप नहीं धुल पाएंगे। याद रहे मोक्ष मृत्यु के बाद नहीं, जीते जी मिलता है।
भगीरथ ने तो एक हजार साल तपस्या की और गंगा को पृथ्वी पर उतार कर अपने पुरखों को तार दिया, लेकिन अब इस मोक्षदायिनी के दुख की चिंता जरूरी है। गंगा है तो जीवन है, खेत-खलिहान हैं, सांस है, समृद्धि है, सम्मान है। तो फिर उस पर जहर क्यों उगला जा रहा ? इसके जिम्मेदार नागरिक भी तो हैं और वह इससे नहीं बच सकते। गंगा किताबी ज्ञान तो हैं, लेकिन उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन क्या कर्तव्य समझा जाता है ? यह बड़ी बात है कि गंगा के लिए ही प्रधानमंत्री कानपुर आ रहे हैं और उनके साथ रहेगी जिम्मेदार कैबिनेट मंत्रियों, पांच सूबे के मुख्यमंत्रियों और बड़े अफसरों की टीम। सबके लिए पलक पांवड़े बिछाए जा रहे हैं। बनावट, सजावट और दिखावट पर ही करोड़ों बहाए जा रहे हैं। कितना अच्छा नजारा होगा। कितना सुकून मिलेगा जब मोदी पूरी निष्ठा से सच में सच्चे मन से और ईमानदारी से सवाल करेंगे, तब बैठक में मौजूद जिम्मेदारों में से कोई एक दूसरे पर जिम्मेदारी नहीं थोप सकेगा, हटो-बचो नहीं चल पाएगा, एक-एक पाई का हिसाब होगा। अंजुरी भर गंगाजल हाथ में लेकर जवाब तो देना होगा। तब क्या झूठ निकलेगा मुंह से ? सोच लो, सच बोलना ही होगा। अगर दामन साफ है तो दाग को धोने की जरूरत ही नहीं होती। मोदी को गुस्सा आ गया तो कोई “लाइफ-लाइन” नहीं होगी। बचना मुश्किल होगा। मोदी है तो गंगा का फिर अविरल और निर्मल होना मुमकिन है। शायद यही आवाज है गंगा मइया की…। और गंगा मां की यह सदा पुत्र मोदी के कानों में यहां जरूर गूंजेगी। क्या गंगा पुत्र भीष्म की तरह मोदी भी प्रण पर अटल रहेंगे ? मां गंगा से किया गया वादा पूरा करेंगे ? सरकारी महकमा जितनी मशक्कत मोदी को खुश करने के लिए कर रहा है, उतना दिमाग गंगा को चंगा करने में लगा दे तो फिर वह भारत के 130 करोड़ लोगों को दिल जीत लेगा। क्योंकि गंगा के साथ अस्था, आत्मा और जीवन जुड़ा है। 14 दिसंबर को बैठक के बाद जब मोदी के यहां से चले जाएंगे और उसके बाद भी यदि गंगा की इसी तरह चिंता की गई तो सब अच्छा हो जाएगा, वरना यह दौरा भी एक शानदार “सरकारी इवेंट” बनकर रह जाएगा।