“एक कहानी मैं लिखता हूं, एक कहानी तू भी लिख”…

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अपने मजबूत इरादों से साकार कीजिए 2020

शैलेश अवस्थी

आज दिन है नए साल के आगाज से अंजाम तक की कहानी लिखने का। बनाइये नई योजनाएं, नई कहानियां और लिख डालिए नए भारत की इबारत। पहचानिये चालों को, नक्कालों को, नाराजगियों को। इरादों की मजबूत नीव डालिए और फिर खड़ी कर दीजिए सफलता की नई इमारत। हो सकता है कि 2020 के पहले दिन का सूरज कोहरे की वजह से आपको न दिखे, लेकिन वह बेताब है आपके इरादों को उर्जा से भरपूर करने को। अंधेरे की मनमानी तो तब तक ही चलती है, जब धरती पर किरन नहीं आ जाती और वह आती ही है, उसे कोई नहीं रोक सकता।

अतीत को लिपटाए रखने का मतलब होता है, अपने भविष्य को खो देना। इसलिए जरूरी है कि अतीत से सीखिए और आगे की सुंदर पटकथा लिख डालिए। 2019 की शुरुआत देश के लिए दुख लेकर आई थी, जब पुलवामा हमले में भारत के 49 जांबाज पीठ पर वार से शहीद हो गए, पर यह कुर्बानी बेकार नहीं गई। चंद दिनों में ही भारत के हवाई हमले ने पाकिस्तान के आतंकी शिविरों में वह कहर ढाया, जिससे उसके पैरों से धरती खिसक गई और दुनिया के इतिहास में भारतीय शौर्य की एक और अमिट कहानी लिख गई। आतंक से दुखी देशों के जख्म पर किसी हद तक मरहम लगा। भारत की ताकत देख बड़े ताकतवर देश भी नतमस्तक हुए।

लोकसभा के आम चुनाव हुए और भाजपा ने 303 सीटें पाकर जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता की मुहर लगा दी। इसके पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ गवां चुकी भाजपा उल्लास से भर उठी और फिर अपने घोषणापत्र पर बुलेट गति से काम शुरू कर दिया। पहले तीन तलाक बिल, फिर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए बिल पास कर विपक्षी खेमे में खलबली मचा दी। विपक्ष के कुछ दलों के नानकुर के बीच पूरे देश ने इसे स्वीकार किया। इसके बाद राम मंदिर पर फैसले के बाद तो भाजपा का छाती ठोंक कर यह कहना स्वाभाविक रहा कि वह अपने एजेंडे को कितनी जल्दी पूरा कर रही है। और यह ठीक भी है। सतर्कता और किसी हद तक स्वीकारिता के बीच सब शांति से निपट गया।

अब शायद भाजपा ने सोचा कि गोटें बिल्कुल सटीक बैठ रही हैं और तभी नागरिकता संशोधन बिल ले आई। इसे अमित शाह और उनकी टीम की रणनीति ने लोकसभा और राज्यसभा से पास करवाने में सफल रही। राष्ट्रपति ने भी इस पर मुहर लगाने में देर नहीं की। बस, अब यहीं से तूफान खड़ा हो गया। विपक्ष ने इसे मौका समझ लपक लिया और फिर “बयानबहादुर” सक्रिय हो गए। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मना रहा देश हिंसा से जल उठा। एक सिरा संभालो तो दूसरा छूट जाता। एक के बाद एक कई राज्यों में बवाल होने लगा। शंकाएं और संभावनाएं फैलाई जाने लगीं। “वाट्सएप यूनीवर्सिटी” ने आग में घी का काम किया। जब तक इसे रोका जाता, हिंसा पर उतारू गुरू घंटालों के मंसूबे काम कर गए।

नागरिक संशोधन विधेयक ठीक तरह से जनता को समझाने में शायद केंद्र और प्रदेश की सत्तारूढ़ सरकारें कामयाब नहीं हो सकीं। समझाने, शंकाएं दूर करने और हकीकत बताने में देर हो गई। बेहतर होता कि सत्ता से जुड़े जनप्रतिनिधि और समूचा सरकारी तंत्र जनता के बीच जाता। गोष्ठियों, इश्तिहारों और सबूतों के साथ विश्वास की पैठ बनाता तो शायद झगड़ों से बचा जा सकता था। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है तो उसके सवालों का जवाब देना, शंका का समाधान करना और उसके हित की बात करना सत्ता का दायित्व है। खैर, जो हुआ, उस पर विलाप करने से क्या फायदा। इससे सत्ता सबक ले और अब नागरिक संशोधन बिल पर विस्तार से समझाए।

हमें भी आंख बंद कर किसी के उकसाने पर आने की जरूरत नहीं है। विचार कीजिए, समझिए और तब अपनी राय व्यक्त कीजिए। कोई भी समाधान हिंसा के रास्ते नहीं होता। कानून में आस्था रखिए। धैर्य रखिये, संसद है, संविधान है, चुनाव है, सब कुछ आपके हाथ में है। अधीरता ठीक नहीं, कानून में आस्था रखिये। गोडसे को महान बताने वालों जरा गांधी को एक बार पढ़ लीजिये, सावरकर पर टिप्पणी करने से पहले जरा उनकी जिंदगी पर गौर कर लीजिये। फिर शायद आपका सोच बदल जाए।

इन सबके बीच झारखंड में हुए चुनाव का नतीजा आ गया और वहां नई राजनीतिक कहानी लिखी गई। इसके पहले महाराष्ट्र में भी भाजपा से सत्ता खिसक गई, हरियाणा में बैशाखी का सहारा लेना पड़ा। अब मंथन चिंतन होगा। 2020 में दिल्ली और बिहार में भी चुनाव है। नए सियासी दोस्त, दुश्मन बनेंगे, नए सियासी समीकरण गढ़े जाएंगे। इस साल उथल-पुथल के बीच भी देश मजबूत हुआ है।

अब 2020 बड़ी चुनौती वाला है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वह चुनौतियों को चुनौती देते हैं। यह किसी हद तक सही भी है। फैसले लेना और उस पर अडिग रहना तो कोई मोदी से सीखे। हो सकता है कि कभी नतीजे पूरी तरह सकारात्मक न हों, लेकिन कुछ न करने से तो बेहतर है कि कुछ किया जाए। असफलता से अनुभव होगा और सफलता से कीर्ति बढ़ेगी। और नरेंद्र मोदी एसा करते रहे हैं। देश ने उन पर विश्वास किया है, सत्ता सौंपी है तो आस्था भी रखिये। विपक्ष को भी सकारात्मक होना होगा। लोकतंत्र में सवाल जरूर उठने चाहिए, लेकिन सिर्फ विरोध के लिए विरोध से अशांति होती है। सवाल राजनेताओं की साख का भी है और यह मुद्दतों में मशक्कत से बनती है।

नए साल में बड़ी चुनौती आर्थिक सुस्ती को दूर करना है। इस पर पूरा फोकस होना चाहिए। आर्थिक विकास दर 4.5 फीसदी तक लुढ़कना बड़ी चिंता है। एसा नहीं कि सरकार सो रही है, पर बेहतर हो कि मन बड़ा करे, विरोधी भी अगर विद्वान हैं, तो उनसे सहयोग लीजिए। यदि इस पर जोर नहीं दिया तो “5 ट्रिलियन इकोनॉमी” का सपना कैसे पूरा होगा ? आम आदमी के लिए रोटी, कपड़ा और मकान जरूरी है। सुनिश्चित करना होगा कि उन तक सरकारी योजनाएं पहुंच रही है या नहीं। सीमाएं सुरक्षित हैं, हमारे जवान मुस्दैत हैं। उन पर भारत को पूरा भरोसा है। चिंता अंदर के आतंकियों से निपटने की है और इनसे कड़ाई से निपटना होगा।

तो नए उत्साह, उमंग और उदारता से नए साल का स्वागत कीजिए और कुछ संकल्प भी लीजिए। संकल्प अपने स्वास्थ्य, परिवार, समाज और देश के लिए हों। अपने हौसले से जीवन की एसी पटकथा लिखें कि आप पर सब गर्व करें। रुकिए नहीं, चलते रहिए, कभी तो मंजिल मिलेगी ही। सहयोग लीजिए, साथ चलिए। अधिकार चाहिए तो कर्तव्य भी कीजिए। और अंत में……कवि गोपालदास नीरज की इन पंक्तियों के साथ आपको नए साल की शुभकामनाएं….

मजहब इस देश में अब एसा चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए,

तेरे लिए मेरे दिल में दर्द हो एसा कि तू रहे भूखा तो मुझसे भी न खाया जाए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं…।