इतने अनाड़ी तो नहीं हैं शरद पवार

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भतीजा खेल कर गया और चचा को भनक भी नहीं

महाराष्ट्र में शाह ने दी मात, फडणवीस फिर सीएम

शैलेश अवस्थी

आज सुबह अचानक राजभवन में देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण करता देख राजनीतिक पंडित भी चकरा गए। बड़ा सवाल यह कि क्या इसके पीछे एनसीपी प्रमुख शरद पवार का “पावर गेम” है या फिर वाकई अजित पवार ने चाचा को गच्चा दे दिया है ? इस पूरे खेल में कच्चा खिलाड़ी साबित हुई कांग्रेस को तो समझ ही नहीं आ रहा कि अब वह क्या करे और कैसे अपने को मासूम साबित करे।

कल रात शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस सत्ता का सपना देखकर सोए थे और सुबह नींद खुली तो ताज छिना नजर आया। राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहा है कि क्या चतुर सुजान शरद पवार तक को इसकी भनक नहीं लगी या फिर वह भोला बनने की कोशिश कर रहे हैं ? कांग्रेस का भी एक धड़ा मान रहा है कि अजित पवार ने शरद पवार को गच्चा नहीं दिया बल्कि शरद पवार ने एक बार फिर कांग्रेस को धोखा दिया है। वरना मनु सिंघवी क्यों कहते कि ‘पवार तुसी ग्रेट हो’ और शिवसेना-एनसीपी की प्रेस कांफ्रेंस से कांग्रेस क्यों नदारद रहती। यह भी सही है कि एसे ही नहीं कहा जाता है कि शरद पवार को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुकिन है।

अब जरा चुनाव नतीजे आने के बाद पिछले एक महीने के राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालिए। शरद पवार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात और संसद में नरेंद्र मोदी की ओर से एनसीपी की तारीफ। क्या कांग्रेस को इससे कुछ समझ नहीं आ रहा था ? यह भी गौर करने वाली बात है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान शरद पवार और अजित पवार के भ्रष्टाचार की फाइल खुलना। इन पर ईडी का शिकंजा भी। अब जब शिवसेना ने भाजपा से रिश्ता तोड़ा तो सत्ता के समीकरण नए सिरे से बनने लगे। दिखावे में भाजपा यह कर किनारे हो गई जिसे सरकार बनाना है बना ले। शिवसेना और कांग्रेस को यह समझ बैठी कि भाजपा ने महाराष्ट्र की राजनीति की तरफ से आंखें मूंद ली हैं। हकीकत तो यह है कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की चालों पर नजर रखे भाजपा खामोशी से वक्त का इंतजार कर रही थी। अंदरखाने में कहा जा रहा है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने शरद को “बाइज्जत सेट” कर लिय़ा था। अब शरद की चिंता थी कि शिवसेना से मोहब्बत की पींगे बढ़ा चुकने के बाद उससे ब्रेकअप कैसे करें। एसे में अजित पवार ने उनकी मुश्किल आसान कर देवेंद्र फडणवीस से जुगलबंदी कर ली।

अजित पवार का दावा है कि एनसीपी के ज्यादातर विधायक उनके साथ हैं और शपथ ग्रहण के दौरान इसकी हल्की झलक भी उन्होंने दिखा दी। दूसरी तरफ, शरद पवार अभी उद्रव ठाकरे के साथ बैठ कर वफा की कसमें खा रहे हैं। यह भी कह रहे हैं कि अजित पर एक्शन लेंगे। दूसरी तरफ,  महाराष्ट्र की राजनीति पर लगातार नजर रखने वाला एक खेमा यह भी कह रहा है कि अजित पवार कई बार शरद पवार की कुछ नीतियों पर विरोध जता चुके हैं। कुछ मामलों में उनसे सहमत नहीं थे और अंदर ही अंदर अपनी खिचड़ी पका रहे थे। गौर कीजिये, यदि शिवसेना के साथ एनसीपी सरकार बनाती, तब भी अजित पवार उपमुख्यमंत्री बन सकते थे। तो उन्होंने भाजपा से क्यों हाथ मिलाया ? क्या इसके पीछे उन पर लटक रही गिरफ्तारी की तलवार है या फिर वह अपना अलग अतिस्त्व बना रहे हैं ? बूढ़े हो चले शरद पवार की राजनीतिक बागडोर अपने हाथ लेने की तैयारी कर रहे हैं ? यह सब तो कयास हैं, सच के लिए अभी इंतजार करना होगा। पर यह भी तल्ख हकीकत है कि सत्ता के लिए न जाने कितने बार जन्म के रिश्तों को दरकिनार ही नहीं किया गया, उन्हें खत्म कर दिया गया। भाजपा से हाथ मिलाने के बाद फिलहाल चचा और भतीजा, दोनों को ही कवच मिलने की उम्मीद है। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने आज कहा कि वे हतप्रभ हैं। पार्टी और परिवार टूट गया है। इस पूरे सीन में कांग्रेस की सबसे ज्यादा किरकरी हुई है। विचारधारा को तिलांजलि देकर सत्ता के लिए शिवसेना से हाथ मिलाया पर अब हालत माया मिली न राम वाली हो गई है। मजे की बात है कि एनसीपी और कांग्रेस के राजनीतिक मुखबिर ताजा हालात भांपने में या तो नाकाम रहे या फिर अपने आकाओं को धोखे में रखा।

सवाल है कि महाराष्ट्र की राजनीति के पितामह शरद पवार क्या गच्चा खा गए या फिर परदे के पीछे से भाजपा की हां में हां मिलाकर एक बार वह फिर सत्ता के सूत्रधार बने हैं ? एक बार फिर साबित हो गया कि फिलहाल मोदी और शाह की जोड़ी को राजनीतिक मात देना आसान नहीं है। नई सरकार के सामने क्या चुनौतियां होंगी, कितने दिन चलेगी यह तो वक्त ही बताएगा पर फिलहाल तो जो जीता वो सिकंदर।

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