आखिर क्यों रो रही है प्याज से सरकार

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विकास वाजपेयी
प्याज के आसमान छूती कीमतों ने पूरे देश में कोहराम मचा रखा है विपक्षी पार्टियां कीमतों में इस उछाल से सरकार को घेरने में किसी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहती है तो छत्तिसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनाव के समय सरकार की आखों में आंसू साफ दिखाई दे रहे है। काफी देरी के बाद सरकार के ग्रहमंत्री अमित शाह ने गुरूवार को प्याज की बढ़ती कीमतों पर एक उच्च स्तरीय बैठक कर के सब कुछ ठीक करने के संकेत तो जरूर दिये है लेकिन देखा जाए तो इस मामले में सरकार की तरफ से काफी देर हो चुकी है।
केंद्र की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने हलांकि बढ़ती कीमतों में अंकुश लगाने के लिए कई कदम जरूर उठाए है जिसमें जमाखोरो के खिलाफ छापेमारी के साथ बड़े व्यापारियों की भंडारण सीमा 500 से घटाकर 250 क्विंटल की गई है तो छोटे व्यापारियों की सीमा 100 से घटा कर 50 क्विंटल की गई है और इसके साथ ही तुर्की और मिस्र देशो से 1.20 लाख टन आयात का कदम भी उठाया है लेकिन इन सब कदमों को उठाने में सरकार से काफी देर भी पुई है जिसके चलते सरकार को कीमतों की आग में झुलसना पड़ सकता है।
सरकार को पहले से ही पता था कि पहले देर से बारिश और फिर बाढ़ की वजह से तीन लाख हेक्टेयर के मुकाबले इस बार लगभग ढ़ाई लाख हेक्टेयर में ही प्याज की बुआई संभव हो पायी है और इस वजह से खरीफ के सीजन में प्याज का उत्पादन 70 लाख टन के मुकाबले 52 लाख टन तक सीमित हो गया है। इन सब कारणों की वजह से 50 हजार टन की रोजाना खपत वाले इस देश में ये संकट तो आना ही था। अब इससे इस बात का अंदाजा लगाना कठिन नहीं होगा कि अखिर दूसरे देशों से आने वाली प्याज की ये खेप भारत में ऊट के मुह में जीरा साबित होने वाला है।
सरकार ये तो बार बार कहती है कि 2022 तक किसानों आमदनी को दोगने स्तर पर पहुंचाने का लक्ष्य है लेकिन उसके लिए सार्थक कदम उठाने की आवशकता है। आपको भी ताज्जुब होगा कि देश में 8000 शीतग्रह है लेकिन इसमें से 90 प्रतिशत शीतग्रहों में केवल आलू का भंडारण होता है बाकी 10 प्रतिशत में प्याज और अन्य बागवानी फसलों का। सरकार को इसके लिए शीघ्र कदम उठाने की आवशकता है जिससे आने वाले समय में इस तरह के संकट से निजात पाई जा सके। इसका इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस वर्ष सरकार ने प्याज का 57000 टन का बफर स्टाँक बनाया था लेकिन ये देश की खपत के हिसाब से लगभग एक दिन का ही है। इस समस्या को देखते हुए सरकार को लगभग एक महिने का बफर स्टाँक बनाना होगा। सरकार की ये परेशानी अभी हाल ही में सुलझती नजर नहीं आती। प्याज की बढ़ी कीमतों में जनवरी के महिने से असर दिखाई पड़ सकता है जब नई फसल बाजार में दाखिल होगी।