कम नहीं हैं चुनौतियां, सबको कैसे रखेंगे संतुष्ट
राजनीतिक चेले मचल रहे हैं बड़े पदों के लिए
निशंक न्यूज
कानपुर। बुधवार देर रात भाजपा ने कानपुर शहर और आसपास जिलों में नए अध्यक्ष नियुक्त कर दिए। कानपुर उत्तर में सुनील बजाज और दक्षिण में बीना आर्या की ताजपोशी की गई। अब इन जिलाध्यक्षों के सामने संगठन को चलाने की चुनौतियां भी हैं।
भाजपा ने संगठन की व्यवस्था के मद्देनजर कानपुर को तीन जिलों में बांटा है। अब उत्तर में सुनील बजाज, दक्षिण में बीना आर्या और ग्रामीण जिले में कृष्ण मुरारी शुक्ला अध्यक्ष होंगे। कानपुर देहात जिले में अविनाश चौहान को कुर्सी मिली है। कानपुर उत्तर जिला बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां लंबे समय तक जिला महामंत्री रहे सुनील बजाज को अध्यक्ष बनाया गया है। भाजपा की राजनीति में यूं तो सुनील हर बड़े नेता के सामने विनम्र रहते हैं, लेकिन उन्हें पूर्व जिलाध्यक्ष सुरेंद्र मैथानी का करीबी माना जाता है। मैथानी ही 2004 में इन्हें भाजपा में लाए थे। उनकी कोशिश से ही वह पहले भाजपा व्यापार प्रकोष्ठ के महामंत्री बने, फिर जिले में कोषाध्य़क्ष और फिर महामंत्री और अब अध्यक्ष।
जब भाजपा केंद्र और प्रदेश दोनों जगह काबिज है, तब सूबे के सबसे बड़े जिले कानपुर का अध्यक्ष बनना किसी बड़े रुतबे से कम नहीं है। इसके पहले सुरेंद्र मैथानी इस कुर्सी पर सात साल तक ठसक के साथ डटे रहे। विधायक बनने के बाद अध्यक्ष की कुर्सी खाली हुई तो इस पर शहर के हर बड़े नेता की नजर ठहर गई। मंत्री, सांसद और विधायक भी अपने खास को इस पर बैठाने के लिए जुट गए। कुल 40 दावेदारों ने अर्जी लगा दी। दिल्ली दरबार तक सिफारिशी घोड़े दौड़ने लगे और आखिर में इन सब पर मैथानी भारी पड़े। सूत्र बताते हैं कि सुनील बजाज की ताजपोशी में उनका बड़ा हाथ है। साथ सुनील की निर्विवाद छवि और विनम्रता ने भी काम आसान कर दिया।
अब सुनील के सामने भाजपा के सभी गुटों को साथ लेकर चलने की बड़ी चुनौती भी है। कमेटी में पदों के लिए उनके पास पहुंचने वाली सिफारिशें उन्हें बेचैन कर सकती हैं। इसी के साथ लखनऊ और दिल्ली में बैठे आकाओं को भी साधना बड़ा काम है। इसके लिए उन्हें मैथानी की तर्ज पर फुल टाइम पॉलीटिक्स करनी होगी। इसके पीछे अपने बचपन के मित्र और राजनीतिक पालनहार मैथानी को संतुष्ट रखना होगा।
उधर, बीना आर्या अनुभवी हैं। पार्षद और पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। दक्षिण क्षेत्र में एक से बढ़कर दमदार और ऊपर तक पकड़ रखने वाले नेता रहते हैं। अब हर किसी के राजनीतिक चेलों की शानदार ओहदे के लिए महात्वाकांक्षाएं कुचालें मार रही हैं। एसे में बीना के सामने भी बड़ी चुनौती है। इसी परीक्षा से ग्रामीण जिले के मुरारी को भी गुजरना होगा। अब वक्त बताएगा कि कौन कितना सफल होता है।