अब तो समझिये बेबस आंसू की ताकत

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दुखियारी का जज्बा देख मौत भी हारी, देखे दुनिया सारी

कुलदीप दोषी करार दिए गए, सजा का एलान 20 को

यह इंसाफ एक सबक है मद में इतराने वालों के लिए

शैलेश अवस्थी

अदालत में दोष सिद्ध होने के बाद कुलदीप सिंह सेंगर फूट-फूट कर रोने लगे और अब अहसास हुआ होगा कि किसी अबला के आंसू की भाषा अनसुनी करने का नतीजा क्या होता है। इस आह, इस दर्द, इस अपमान में इतना बल होता है कि पहाड़ जैसा रसूख भी मिट्टी में मिल जाता है। और कुलदीप के साथ एसा ही हुआ। यह न्याय एक सबक है कि उन राजनेताओं, रसूखदारों और दौलतमंदों के लिए जो अचानक मिली एसी ताकत से इतराए फिरते हैं।

कहते हैं कि सीधे, सपाट और सुगम रास्ते से जो मिलता है, उसका अंत भी तत्काल होता है। जैसा अन्न, वैसा मन। यानी आपकी जैसी कमाई, जैसा चाल-चलन होगा, वैसा ही फल मिलेगा। दिक्कत तो यह है कि बबूल बोने वाले आम की उम्मीद कर बैठते हैं। जरा सा कुदरत मेहरवान क्या हो जाती है कि पूरी कायनात को अपनी जागीर समझ लेते हैं और फिर जमीन पर पैर ही नहीं रखते। कुलदीप भी एसे ही पेड़ थे, जिसके पत्ते फड़फड़ाते रहते थे, पर जड़ें हिली हुई थीं, या यूं कहें कि थी ही नहीं। जरा सोचिये मां-बाप ने क्या सोच के नाम रखा होगा कुलदीप। बेटा नाम रोशन करेगा। जब पहली बार कुलदीप प्रधान बने होंगे तो परिवार कितना खुश हुआ होगा। और फिर बसपा, सपा और भाजपा की चौखट पर सिर नवा चार बार उन्नाव से विधायक बने। इसी के साथ बड़ा धनालय भी खड़ा करते गए। भोर में आंख खुलते ही कितने लोग पैगलगी के लिए खड़े रहते होंगे, कितने बुजुर्ग हाथ जोड़ते होंगे, कितने युवा साथ फोटो खिंचवाने में इतरा जाते होंगे। होली-दिवाली उपहारों का पहाड़ खड़ा हो जाता होगा। तारीफ में कसीदे पढ़ने वालों की लाइन लगी रहती होगी।

अपने गले में हर कदम पड़ने वाली मालाओं से शायद वे यह समझ बैठे कि अब तो वह इस धरती के मानव नहीं रह गए, महामानव हो गए। बस, इसी सोच ने उनकी उल्टी गिनती शुरू कर दी। सोचा होगा कि यह मासूम, गरीब बच्ची उनका क्या बिगाड़ लेगी। चेले उनके भौकाल का जिक्र कर उन्हें और मदमस्त बना रहे होंगे। कहते होंगे कि हुजूर, उसकी क्या औकात, दो मिनट में हवा हो जाएगी, आप तो चिंता न करो, बस आदेश करो, निपटा देंगे सब। सत्ता के नशे में चूर कुलदीप ने विवेक खो दिया और उनकी मुंहचुपड़ी बातों पर यकीन कर लिया। कलाई में कलावों का गट्ठर लपेटने वाले कुलदीप ने भुला दिया कि मां जगदंबा को भी महिषासुर ने भी अबला समझ कर हंसी में उड़ा दिया था। उसके चेले भी उसे गुमराह करते रहे और सभी को पता कि महिषासुर का अंत किस तरह हुआ। रावण से बड़ा विद्वान, भक्त, ज्योतिषी, वैभवशाली और ताकतवार कौन था, पर उसके अहम ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। तो फिर इन कुलदीप जैसों का क्या बिसात।

इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी बेबस, गरीब और अहसाय के आंसुओं की कद्र नही की गई, सिर्फ बर्बादी ही मिली है। आंसू आत्मा की जुबान होते हैं, गरीब की फरियाद होते हैं, बेबसी की पुकार होते हैं। एसे आंसू नहीं पोछे जाते, तो वे समंदर बन जाते हैं और फिर उनसे जो ज्वार उठता है, एसी तबाही मचाता है कि सैलाब में मजबूत से मजबूत पहाड़ भी धाराशाई हो जाते हैं। इसलिए ध्यान रहे कि यदि आपकी वजह से किसी के भी आंसू आते हैं तो ठहर जाइये, उन्हें पढ़िये और तब आगे बढ़िए। जरा सोचिए, उन्नाव की पीड़िता, जो हर तरह से कुलदीप की सताई हुई थी, कितना कष्ट झेला। पिछले तीन साल में कुलदीप के ताप में उसके पिता, चाची और मौसी इस कदर झुलसे, उनकी मौत हो गई। पीड़िता को दुर्घटना में मारने की कोशिश की गई, लेकिन ऊपर वाले उसे इतनी शक्ति दे दी कि वह अपने शोषण के खिलाफ लड़ाई को अंजाम तक ले जा सके। और यह दिख भी रहा है। याद रहे जब तक आपका भाग्य साथ दे रहा है, पाप छिपे रहते हैं और जिस दिन आप हद पार कर गए, उस दिन आपके कर्मों का हिसाब हो जाता है।

आज तीस हजारी कोर्ट में बहस के बाद तय हो गया कि 20 दिसंबर सजा का एलान हो जाएगा। सेंगर पर गंभीर आरोप साबित हुए हैं। यह संदेश है, उनके लिए भी जिनके पाप अभी छिपे हैं, उनके पास मौका है प्रायश्चित का, वरना उनका अंजाम भी एसा ही होगा। यदि बच भी गए तो कुदरत इंसाफ जरूर करेगी। उनके लिए भी सबक है जो यह मान बैठे हैं कि उनकी ताकत अतुलनीय है और उनके लिए भी जो रसूख को स्थायी समझ कर इतरा रहे हैं। अंत में इस बहादुर बेटी को चरणों में नमन। इस बेटी ने अपने अथक प्रयास और विकल्प रहित संकल्प के जरिए मौत तक को लौट जाने को मजबूर कर दिया। इसने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से इंसाफ की जंग तो जीती ही, साथ ही उन सबके लिए भी प्रेरणा बन गई, जो किसी ने किसी रूप में कहीं न कहीं रसूखदारों की सताई हैं। उन पीड़ितों के दिलों में भी ठंडक पहुंची होगी, जो कभी किसी हैवान का शिकार बनी होंगी। अंत में कबीर दास जी के इस दोहे के अर्थ, मर्म और भाव जरूर समझलिजिए।

दुर्बल को न सताइये, जा की मोटी हाय

बिना की जीव की श्वास से लोह भसम हो जाय

-लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।