गोडसे पर अपने सोच पर करा रहीं अपनी पार्टी की फजीहत
प्रधानमंत्री की बात का भी मान नहीं रखा, फिर दोहराई गल्ती
शैलेश अवस्थी
भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने एक बार फिर नाथूराम गोडसे को “देशभक्त” बताकर देश ही नहीं, पूरी दुनियां के उन करोड़ों लोगों की आस्था को चोट पहुंचाई है, जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन दर्शन को मानते, समझते, सीखते और जीते हैं। एक तरफ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में महात्मा गांधी का जिक्र कर उन्हें नमन करते हैं और दूसरी तरफ उनके ही दल की सांसद प्रज्ञा महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे का महिमामंडन करती हैं। सवाल लाजिमी है कि यह क्या है, क्यों है और कैसे है ? गलती दोहराने पर क्या प्रज्ञा ठाकुर पर कोई कार्रवाई होगी या फिर इसी तरह उनकी जुबान आग उगलेगी ?
प्रज्ञा ठाकुर तो साध्वी हैं। इस नाते माना जाता है कि उन्हें शास्त्रों का ज्ञान है, धार्मिक ग्रंथों को आत्मसात किया होगा। उनके मर्म, धर्म और कर्म को भलीभांति समझती होंगी। ग्रंथ यह भी तो सिखाते हैं कि मृदु बोलो, विनम्र रहो, किसी को ठेस न पहुंचाओ, हिंसा मत करो, किसी को दुख मत दो, धीर बनो, गंभीर बनो, लोभ मत करो और मोह में मत पड़ो। उनके गले में पड़ी रुद्राक्ष की मालाएं क्या यह नहीं सिखातीं कि सबको जोड़ कर रखो ? क्या उनके तन का भगवा उन्हें नहीं बताता कि धर्म क्या है ? तो क्या प्रज्ञा का ज्ञान इन ग्रंथों से बड़ा है ? लोकतंत्र में हरकिसी को अपनी बात कहने का हक है, लेकिन किसी जिम्मेदार आसन पर बैठकर कोई कभी भी, कुछ भी एसा बोल सकता है जिससे जनमानस को ठेस और दुख पहुंचे। पौराणिक कथाएं बताती हैं कि जरूरत पड़ी तो साधु-संतों ने राजाओं का मार्गदर्शन ही नहीं किया, उन्हें राजधर्म पर चलने के लिए मजबूर भी कर दिया। लेकिन प्रज्ञा का यह कैसा आचरण है। अब यह तो प्रज्ञा ही बता सकती हैं कि उन्हें महात्मा गांधी से इतनी नफरत क्यों है और नाथूराम गोडसे पर इतनी आस्था क्यों ? अब तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी गांधी पर एसी भाषा बोलने से कतराता है। भाजपा भी समझ गई है कि यह देश गांधी के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकता। दुनिया महात्मा गांधी के “दर्शन” पर मुग्ध है और प्रज्ञा को नाथूराम गोडसे का “दर्शन” दिव्य लगता है।
प्रज्ञा ठाकुर की पहचान हिंदुत्व राजनीति की फायर ब्रांड नेत्री के रूप में है, लेकिन सांसद बनने के बाद उन्हें क्या अपने शब्दों पर नियंत्रण नहीं करना चाहिये क्या, जैसा कि भाजपा के अन्य बड़े नेता करते रहे और अभी भी कर रहे हैं ? तो क्या प्रभा ठाकुर पार्टी लाइन से अलग जा रही हैं या फिर उन्हें एसा करने की छूट मिली है ? यह सवाल किसी के भी जेहन में आ सकता है। अब भाजपा को इसका जवाब जरूर देना चाहिये। चुनाव के दौरान भोपाल में जब प्रज्ञा ठाकुर गोडसे को देशभक्त कहा था, तब नरेंद्र मोदी को गुस्सा आया था और उन्होंने कहा था कि वह प्रज्ञा ठाकुर को कभी माफ नहीं कर सकते।
इसके बाद प्रज्ञा ठाकुर जीत कर ससद पहुंच गईं। अभी हाल में ही उन्हंे रक्षा कमेटी का सदस्य भी बना दिया गया। इस पर भी मोदी सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। और कल फिर प्रज्ञा ने गृहमंत्री अमित शाह के सामने उस संसद में, जहां महात्मा गांधी का चित्र लगा है, वहां गोडसे को देशभक्त कह दिया। संसद में शोरशराबा हुआ तो स्पीकर ने इस कथन को कार्यवाही से निकाल दिया। सवाल है कि अगर नरेंद्र मोदी और भाजपा को प्रज्ञा के इस कथन से नाराजगी है तो क्या उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा ? उन पर कोई सख्त कार्रवाई की जाएगी ? अगर भाजपा एसा करती है तो निश्चित ही उसका मान बढ़ेगा और यदि प्रज्ञा को फिर माफ कर दिया गया तो सवाल जिंदा रहेगा और भाजपा कहीं न कहीं कटघरे में रहेगी। खबर है कि प्रज्ञा को रक्षा कमेटी से हटा गया है पर क्या यह इसे “सजा” कहेंगे।
प्रज्ञा ही नहीं, नेताओं ने कई बार मर्यादा को ताक में रखकर बयानबाजी की है। चाहे तो कांग्रेस के दिग्विजय, शशि थुरूर, हों या आरजेडी के लालू यादव या फिर भाजपा के गिरिराज और सपा के प्रिय आजम खां। लेकिन गांधी, जिसे भारत राष्ट्रपिता कहता हो और दुनिया के लगभग हर देश में उनके अनुयायी हों, उस महात्मा के हत्यारे को देशभक्त कहना, ये ओछी राजनीति और नहीं तो और क्या है…..।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)