शैलेश अवस्थी
यदि इस बार अरविंद केजरीवाल दिल्ली का चुनाव जीतेंगे तो वह एक केस स्टडी के साथ राजनीति के बड़े नायक के रूप में उभरेंगे। इस छोटे चुनाव की बड़ी अहमियत इसलिए भी है कि कई राज्य गंवा चुकी भाजपा के लिए इस बार नाक का सवाल है। यही कारण है कि भाजपा ने प्रधानमंत्री सहित अपने सभी बड़े-छोटे नेताओं को इस समर में उतार दिया है।
कुछ भी कहो, केजरीवाल ने अकेले ही भाजपा और कांग्रेस को दौड़ा रखा है। वे अपने काम के दम पर मैदान में हैं और इसी दावे पर वोट भी मांग रहे हैं। उनको मिल रहे समर्थन ने भाजपा को भी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। अब भाजपा ही नहीं, कांग्रेस के भी घोषणापत्र में “मुफ्त” का जिक्र है। केजरीवाल ने पिछले एक-डेढ़ साल से अपनी रणनीति बदली है। उन्होंने अपनी पूरी ताकत जनता के काम और अपने वादे पूरे करने में झोंक दी। वह न तो मोदी को कोसते हैं और न ही किसी भाजपाई या फिर कांग्रेस को। वह तो बस अपना काम गिना रहे हैं। शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली, पानी, परिवहन, यातायात और बुजुर्गों को तीर्थयात्रा जैसी सुविधाएं मुहैया करवाए जाने पर जिताने की गुजारिश कर रहे हैं। वह न तो शाहीनबाग को तवज्जो दे रहे और न ही जेएनयू पर बात कर रहे हैं। वह न तो धर्मनिरपेक्ष शब्द का इस्तेमाल कर रहे और न ही हिंदू-मुसलान का। वह हर विरोध और तीखे सवाल पर बस मुस्कुरा देते हैं। इसी अदा पर वह भोले दिखने लगते हैं।
खास बात यह कि मीडिया भी उन्हें पर्याप्त स्थान दे रहा। अब न तो उनका मजाक बनाया जा रहा और न ही उन पर व्यंग्य वाण चलाए जा रहे। वह चुपचाप प्रचार कर रहे हैं। अपने को दिल्ली का बड़ा बेटा बताकर संवेदना भी बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी यह अदा दिल्ली की जनता को किसी हद तक भा भी रही है। अब यह बात अलग है कि दिल्ली के दिल में क्या चल रहा है। दूसरी तरफ भाजपा आक्रामक है। शाहीनबाग और राष्ट्रवाद के मुद्दे प्रमुखता से उठा रही है। उनके नेताओं के भाषण इसी के इर्द-गिर्द हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रैली की शुरूआत कर दी है। अमित शाह तो डेरा ही डाले हैं। केंद्र सरकार कई मंत्री भाजपा शासित या समर्थित राज्यों के मुख्यमंत्री और कई सांसद भी चुनाव प्रचार में जुटे हैं।
कांग्रेस तो जैसे लड़ ही नहीं रही। चर्चा भी कम है। मतदान से पहले राहुल और सोनिया गांधी की रैलियां प्रस्तावित हैं। लेकिन सोनिया गांधी की तबीयत खराब हो गई तो शायद वह प्रचार के लिए न जा सकें। अंदरखाने में चर्चा है कि आम आदमी पार्टी को मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने अपने चुनावी हथियार छिपा दिए हैं। यह तो तय है कि यदि कांग्रेस कमजोर रही तो केजरीवाल को ताकत मिलेगी और तब भाजपा का रास्ता ज्यादा मुश्किल हो जाएगा। जानकार बताते हैं कि दिल्ली के चुनाव में भाजपा की एसी रणनीति और आक्रमकता कभी नहीं रही। यह भी है कि झारखंड और दिल्ली गवां चुकी भाजपा अब बहुत चिंतित और सतर्क है। 2019 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी हाथ से निकल गए थे, लेकिन लोकसभा चुनाव में रिकार्ड बहुमत मिलने के बाद भाजपा का उत्साह फिर सातवें आसमान पर पहुंच गया।
नतीजे तो 11 फरवरी को आएंगे। बहुत कुछ तस्वीर 8 फरवरी को मतदान के दिन भी साफ हो सकती है। लेकिन यह तो तय है कि यदि आम आदमी पार्टी की फिर वापसी होती है तो केजरीवाल बड़े नेता के रूप में उभरेंगे। उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी और इसी के साथ उनका जनाधार भी। तब शायद वह अपनी पार्टी को देश के अन्य राज्यों तक विस्तार दें। उनकी जीत के बाद वह केस स्टडी होंगे। काम पर बूते पर अकेले दिल्ली फतेह करने पर इतिहास बनेगा। उनकी रणनीति, उनके तौर-तरीके और उनके रास्ते पर चलने वाले बढ़ेंगे। राजनीति बदलेगी। नए तरीके की राजनीति चलन में आएगी। यह सब जानने और देखने के लिए 11 फरवरी तक इंतजार करना होगा।